BY: Yoganand Shrivastva
भारतीय रक्षा अनुसंधान एवं विकास संगठन (DRDO) और भारतीय नौसेना ने एक और महत्वपूर्ण उपलब्धि हासिल की है। दोनों ने मिलकर स्वदेशी रूप से विकसित मल्टी-इन्फ्लुएंस ग्राउंड माइन (MIGM) का सफल परीक्षण किया है। यह उन्नत तकनीक वाली माइन प्रणाली पानी के नीचे दुश्मन की गतिविधियों को पहचानने और उन्हें निष्क्रिय करने में पूरी तरह सक्षम है।
समुद्री सुरक्षा के लिए बड़ा कदम
MIGM को खास तौर पर इस तरह डिज़ाइन किया गया है कि यह शत्रु के जहाजों और पनडुब्बियों को पहचान सके और जरूरत पड़ने पर उन्हें ध्वस्त भी कर सके। यह प्रणाली अनेक प्रकार के सेंसरों से लैस है, जो ध्वनि, चुंबकीय क्षेत्र, और पानी में दबाव में होने वाले परिवर्तनों का विश्लेषण करती है।
एक बार नौसेना में इसे शामिल कर लिया गया तो यह प्रणाली समुद्री सीमाओं की निगरानी और सुरक्षा में बेहद उपयोगी साबित होगी। MIGM भविष्य में भारत के लिए एक मजबूत डिटरेंस (निवारक) शक्ति बन सकती है।
आत्मनिर्भर भारत की दिशा में मील का पत्थर
इस परीक्षण को भारत की स्वदेशी रक्षा क्षमताओं को मजबूत करने की दिशा में एक महत्वपूर्ण पड़ाव माना जा रहा है। DRDO ने परीक्षण का वीडियो भी साझा किया है, जिसमें पानी के नीचे माइन के विस्फोट को साफ तौर पर देखा जा सकता है।
रक्षा मंत्री ने दी बधाई
रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह ने इस सफलता के लिए DRDO और नौसेना को बधाई देते हुए कहा, “यह प्रणाली भारतीय नौसेना की अंडरवॉटर वारफेयर क्षमता को नए स्तर पर ले जाएगी।”
उत्पादन में कई संस्थाओं की भागीदारी
MIGM के निर्माण में भारत डायनेमिक्स लिमिटेड (BDL), विशाखापत्तनम, और अपोलो माइक्रोसिस्टम्स लिमिटेड जैसे संस्थान भी शामिल हैं। BDL ने जानकारी दी कि यह माइन शत्रु जहाजों से उत्पन्न ध्वनि, चुंबकीय प्रभाव और दबाव को पहचानकर अपनी प्रतिक्रिया देती है।
ऐतिहासिक दृष्टिकोण
समुद्री खदानें नौसैनिक युद्ध का हिस्सा सदियों से रही हैं। द्वितीय विश्वयुद्ध के समय ब्रिटेन, अमेरिका, जर्मनी और जापान ने समुद्र में खदानें बिछाकर दुश्मन के मार्गों को बाधित किया था। MIGM इस परंपरा को आधुनिक तकनीक के साथ आगे बढ़ाने का उदाहरण है।
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