ग्वालियर रेलवे स्टेशन पर गांजा जब्ती के एक चर्चित मामले में विशेष एनडीपीएस कोर्ट ने दो आरोपियों को बरी कर दिया है। कोर्ट ने यह निर्णय नारकोटिक्स ब्यूरो की जांच में गंभीर खामियों और साक्ष्य के अभाव के चलते सुनाया।
क्या है पूरा मामला?
- तारीख: 14 नवंबर 2021
- स्थान: ग्वालियर रेलवे स्टेशन, प्लेटफॉर्म नंबर 2
- गिरफ्तारी: राजस्थान के जयपुर निवासी बजरंगलाल शर्मा (40) और पांचूराम सैनी (56) को गांजा तस्करी के आरोप में गिरफ्तार किया गया।
- बरामदगी: 12.666 किलोग्राम गांजा बरामद हुआ था।
गिरफ्तारी के बाद मामला विशेष न्यायालय (NDPS कोर्ट) पहुंचा, जहां नारकोटिक्स ब्यूरो की जांच रिपोर्ट में कई खामियां उजागर हुईं।
9 दिन तक गांजे के सैंपल कहां रहे? कोई जवाब नहीं
कोर्ट की जांच में सामने आया कि जब्त गांजे के सैंपल 15 नवंबर से 23 नवंबर 2021 तक “संदिग्ध स्थिति” में थे। इस दौरान:
- नारकोटिक्स ब्यूरो यह स्पष्ट नहीं कर सका कि इन 9 दिनों में सैंपल किसकी निगरानी में थे।
- NDPS एक्ट की धारा 52-A के तहत जो कार्रवाई होनी चाहिए थी, उसमें 3 साल की देरी हुई।
- एजेंसी अदालत को इस देरी का भी कोई संतोषजनक स्पष्टीकरण नहीं दे पाई।
गवाही में सामने आए विरोधाभास
- तत्कालीन अवर श्रेणी लिपिक प्रदीप कुमार ने बताया कि उन्हें 16 नवंबर को दो सैंपल और एक सीलबंद लिफाफा दिल्ली ले जाने का निर्देश मिला।
- मालखाना प्रभारी रजनीश शर्मा ने बताया कि उन्हें 24 नवंबर को आरपीएफ के सब-इंस्पेक्टर आरएस राजावत द्वारा दो सीलबंद पैकेट सौंपे गए।
इन बयानों से स्पष्ट हुआ कि सैंपल की देखरेख को लेकर कोई स्पष्ट रिकॉर्ड मौजूद नहीं है।
कोर्ट का निर्णय: संदेह का लाभ देते हुए आरोपमुक्त
इन सभी खामियों और साक्ष्य की कमी को देखते हुए कोर्ट ने:
- पूरी जांच को “संदिग्ध” करार दिया।
- आरोपियों को साक्ष्य के अभाव में बरी कर दिया।
क्या है NDPS एक्ट की धारा 52-A?
यह धारा जब्त किए गए नशीले पदार्थों के निपटान और उनकी सुरक्षित जांच प्रक्रिया को सुनिश्चित करती है। इस केस में यही प्रक्रिया गंभीर रूप से बाधित हुई।
नतीजा: जांच एजेंसियों की लापरवाही से आरोपी छूटे
यह मामला न केवल एक न्यायिक निर्णय है, बल्कि नारकोटिक्स विभाग की कार्यप्रणाली पर भी बड़ा सवाल खड़ा करता है। समय पर सही प्रक्रिया न अपनाने से पूरे केस की नींव ही कमजोर हो गई।
ग्वालियर रेलवे स्टेशन पर हुई गांजा जब्ती का यह मामला एक उदाहरण है कि जांच एजेंसियों की लापरवाही कैसे गंभीर अपराधों में भी आरोपियों को बचने का मौका दे सकती है। यह न्याय प्रणाली के लिए एक चेतावनी भी है कि तकनीकी और प्रक्रियात्मक सावधानी बरतना कितना आवश्यक है।