बिहार: विधानसभा चुनाव 2025 के नतीजों में महागठबंधन को करारी हार का सामना करना पड़ रहा है। शुरुआत से ही एनडीए मजबूत बढ़त बनाए हुए है, जबकि महागठबंधन उम्मीद के मुताबिक प्रदर्शन नहीं कर पाया। इतने बड़े अंतर से हार के बाद सबसे ज्यादा सवाल तेजस्वी यादव की चुनावी रणनीति पर उठ रहे हैं।नीचे उन पाँच प्रमुख चूकों को समझिए, जिन्होंने महागठबंधन—खासकर तेजस्वी यादव—की पूरी प्लानिंग को कमजोर कर दिया।
1. कांग्रेस को साथ लेना भारी पड़ गया
तेजस्वी ने इस बार कांग्रेस को ज्यादा महत्व देते हुए महागठबंधन में शामिल किया, जो सीधे आरजेडी के लिए घाटे का सौदा साबित हुआ। कांग्रेस का बिहार में कमजोर संगठन और न्यूनतम जनाधार होने के बावजूद उसे कई सीटें दी गईं। नतीजा यह हुआ कि कांग्रेस अपनी सीटें तो नहीं जीत पाई, उल्टा आरजेडी के परंपरागत वोट भी बिखर गए।
2. सीट शेयरिंग में कांग्रेस को खुश करने में समय गंवा दिया
सीटों के बंटवारे में तेजस्वी ने कांग्रेस नेतृत्व के फैसलों का लंबे समय तक इंतजार किया। राहुल और प्रियंका गांधी की सहमति पाने की कोशिश में चुनावी तैयारी पिछड़ गई। कई मजबूत सीटें कांग्रेस को देने से आरजेडी का संगठन कमजोर हुआ और कई नेता नाराज हो गए।
3. मुकेश सहनी को अधिक महत्व देना रणनीतिक भूल बनी
VIP प्रमुख मुकेश सहनी को महागठबंधन में 10 से ज्यादा सीटें और डिप्टी सीएम पद तक का प्रस्ताव देना RJD के कोर वोटबैंक को पसंद नहीं आया। सहनी की राजनीतिक पकड़ सीमित इलाकों तक है, लेकिन उन्हें मिला बड़ा शेयर आरजेडी समर्थकों को खल गया। इस फैसले से यादव-मुस्लिम आधार पर भी असर देखा गया।
4. मूल मुद्दों से हटकर EVM और वोट चोरी जैसे आरोपों में उलझे
चुनाव प्रचार के दौरान तेजस्वी ने बेरोज़गारी, शिक्षा सुधार और स्वास्थ्य जैसी मुख्य समस्याओं से ध्यान हटाकर ‘वोट चोरी’ और ‘ईवीएम गड़बड़ी’ जैसे आरोपों पर ज़ोर दिया। इससे जनता में भ्रम की स्थिति बनी और एनडीए ने इसका फायदा उठाया, यह कहकर कि आरजेडी पहले ही हार मान चुकी है।
5. महिलाओं की भारी वोटिंग ने पूरा खेल बदल दिया
इस चुनाव में महिलाओं की भागीदारी रिकॉर्ड स्तर पर रही। नीतीश कुमार की कई योजनाएं—शराबबंदी, साइकिल व स्कूटी योजना, महिला सशक्तिकरण—ग्रामीण और शहरी महिला वोटरों पर सीधा असर डालती हैं। तेजस्वी की 10 लाख नौकरी वाली घोषणा महिलाओं तक उतनी प्रभावी ढंग से नहीं पहुंच पाई, जिससे बड़ा नुकसान हुआ।
बिहार में ऐतिहासिक मतदान
6 और 11 नवंबर को दो चरणों में हुए मतदान में 67.13% लोगों ने वोट डाला, जो 1951 के बाद सबसे अधिक मतदान है। आज मतगणना के अंतिम चरण में सभी की नज़रें इस बात पर टिकी हैं कि बिहार की अगली सरकार किसकी बनेगी, हालांकि रुझान आज की तस्वीर को लगभग साफ कर चुके हैं। तेजस्वी यादव के लिए यह चुनाव एक से बड़ा एक सबक छोड़ गया है—और यह साफ है कि उनकी रणनीति में कई मोर्चों पर गंभीर कमियां रही हैं।





