विशेष रिपोर्ट, खन्ना सैनी
वृंदावन, मथुरा: मथुरा की पावन नगरी वृंदावन में एक अद्भुत और अलौकिक भक्ति कथा सामने आई है। हरियाणा के रोहतक जिले की युवती ज्योति, जो अब ‘इंदुलेखा’ के नाम से जानी जाती हैं, ने सांसारिक जीवन का त्याग कर भगवान बांके बिहारी जी को अपना सर्वस्व समर्पित कर दिया है। उन्होंने स्वयं भगवान से आध्यात्मिक विवाह किया और अपने जीवन को पूरी तरह भक्ति और सेवा में समर्पित कर दिया।
इंदुलेखा ने बताया कि यह विवाह किसी परंपरागत रस्म या सामाजिक मान्यता का पालन नहीं था, बल्कि उनके पूर्ण समर्पण और ईश्वर प्रेम का परिणाम है। वे कहती हैं, “जब मैंने ठाकुर जी को पति रूप में स्वीकार किया, तो मेरा जीवन ही बदल गया। वे अब मेरे आराध्य नहीं, मेरे प्राण हैं।”
विवाह के कुछ समय बाद एक दिव्य अनुभव में भगवान बांके बिहारी ने उन्हें घुंघरू उपहार में दिए, जिन्हें वे आज भी अपने नृत्य और सेवा के दौरान पहनती हैं। इस अलौकिक घटना ने स्थानीय श्रद्धालुओं में गहरा भाव पैदा किया है।
अब इंदुलेखा का संपूर्ण जीवन ठाकुर जी की सेवा, भजन और रास नृत्य में व्यतीत होता है। उनकी भक्ति इतनी प्रबल और सच्ची है कि लोग उन्हें ‘कलयुग की मीरा’ कहने लगे हैं। वृंदावन की गलियों में जब इंदुलेखा घुंघरू पहनकर मंदिर में नृत्य करती हैं, तो ऐसा प्रतीत होता है मानो राधा-कृष्ण की दिव्य लीलाएं जीवित हो उठी हों।
इंदुलेखा की भक्ति और समर्पण देखने दूर-दूर से श्रद्धालु आते हैं। कई युवा उनके उदाहरण से प्रेरित होकर ईश्वर के प्रति प्रेम और समर्पण के मार्ग पर चलने का संकल्प लेते हैं।
इंदुलेखा की यह कहानी न केवल एक महिला की आध्यात्मिक यात्रा है, बल्कि उस अटूट विश्वास और प्रेम का प्रतीक भी है, जो भक्त और भगवान के बीच गहरा संबंध स्थापित करता है — ठीक उसी तरह जैसे मीरा ने अपने आराध्य को अपना जीवनसाथी मान लिया था।
इंदुलेखा का संदेश: सच्चा भक्ति और प्रेम केवल शब्दों में नहीं, बल्कि कर्म और समर्पण में प्रकट होता है। उनके जीवन से यह सीख मिलती है कि ईश्वर को समर्पित होने का अनुभव मनुष्य के जीवन को दिव्य बना सकता है।





