हरियाणा आने वाले समय में राजनीति का कुरुक्षेत्र बनने वाला है। ओलिंपिक में अपने खिलाडियों के शौर्य के दम पर और खेत में किसानों के मेहनत और परिश्रम पर देश ही नहीं विदेश में अपनी गौरवगाथा का गान कराने वाले हरियाणा में आगामी एक अक्टूबर को लोकतंत्र के महापर्व मनाया जायेगा। जाहिर है इस महापर्व में अपना परचम लहराने के लिए सभी राजनैतिक दल चुनावी शतरंज पर रणनीति के मोहरों से शह और मात की तैयारी कर रहे हैं।
लाल परिवारों’ का प्रभाव फायदेमंद होगा?
बीजेपी का मानना है कि ‘लाल परिवारों’ का प्रभाव उनके लिए फायदेमंद होगा। खासकर इसलिए क्योंकि उन्हें सत्ता विरोधी लहर का सामना करना पड़ सकता है। हालांकि, यह रणनीति कितनी सफल होगी, यह अभी देखना बाकी है। क्योंकि लोकसभा चुनाव के नतीजे बता रहे हैं कि इन परिवारों का प्रभाव कम हो रहा है। बीजेपी ने पहले भी देवी लाल और बंसी लाल के साथ चुनाव लड़ा है और सरकारें बनाई हैं। 2014 के लोकसभा चुनावों में बीजेपी ने कुलदीप बिश्नोई की पार्टी हरियाणा जनहित कांग्रेस के साथ गठबंधन किया था। हरियाणा की राजनीति में लाल परिवारों का प्रभाव कम नहीं आंका जा सकता। ये परिवार सत्ता में हों या न हों, लेकिन प्रभावशाली बने रहते हैं। बीजेपी के साथ उनका गठबंधन दोनों पक्षों के लिए फायदेमंद है।
11 विधानसभा क्षेत्रों में प्रभाव
यह देखना होगा कि लाल परिवारों का समर्थन बीजेपी को कितनी मदद कर पाता है। हालांकि उनके पास अपने-अपने क्षेत्रों में प्रभाव है, लेकिन यह देखना होगा कि क्या यह बीजेपी को चुनाव जिताने के लिए पर्याप्त होगा। कुलदीप बिश्नोई का बिश्नोई समुदाय पर खासा प्रभाव है और यह समुदाय 11 विधानसभा क्षेत्रों में अपना प्रभाव रखता है। देवी लाल के बेटे रणजीत सिंह के जरिए बीजेपी किसानों का समर्थन हासिल करने की उम्मीद कर सकती है, जो किसान आंदोलन, पहलवानों के विरोध प्रदर्शन और अग्निवीर योजना को लेकर बीजेपी से नाराज हैं।
किरण चौधरी कितनी रहेंगी प्रभावी?
बंसी लाल की बहू किरण चौधरी ने 2005 से अब तक एक भी चुनाव नहीं हारा है। उनके ससुर का परंपरागत विधानसभा क्षेत्र तोशाम में उनका काफी प्रभाव है। बीजेपी को हरियाणा में जीत के लिए कड़ी मेहनत करनी होगी।लाल परिवारों के साथ उसके गठबंधन से पता चलता है कि पार्टी राज्य में अपना आधार बढ़ाने के लिए हर संभव प्रयास कर रही है। यह देखना दिलचस्प होगा कि क्या लाल परिवारों का समर्थन बीजेपी के लिए फायदेमंद साबित होता है या नहीं। हालांकि 2019 के लोकसभा चुनाव में जहां बीजेपी ने सभी 10 सीटें जीती थीं वहीं, 2024 लोकसभा चुनाव में बीजेपी को 5 सीटों से संतोष करना पड़ा।