मध्य प्रदेश की राजधानी भोपाल में नवाबी इतिहास को लेकर विवाद गरमाने लगा है। नगर निगम अध्यक्ष किशन सूर्यवंशी ने मुख्यमंत्री डॉ. मोहन यादव समेत राज्य सरकार के कई मंत्रियों को पत्र लिखकर हमीदिया अस्पताल, कॉलेज और स्कूल सहित कई संस्थानों के नाम बदलने की माँग की है। उनका तर्क है कि ये संस्थान पाकिस्तान समर्थक माने जाने वाले नवाब हमीदुल्लाह के नाम पर हैं और इन्हें देशभक्तों के नाम से जोड़ा जाना चाहिए।
नाम परिवर्तन की मांग क्यों उठी?
नगर निगम अध्यक्ष किशन सूर्यवंशी ने हाल ही में एक आधिकारिक पत्र लिखकर कहा:
- नवाब हमीदुल्लाह को पाकिस्तान समर्थक माना गया है
- उनकी संपत्ति को सरकार ने “शत्रु संपत्ति” घोषित किया है
- ऐसे में उनके नाम पर चल रहे संस्थानों को देश के प्रति वफादार और राष्ट्रभक्त व्यक्तित्वों के नाम पर रखा जाना चाहिए
इसके अलावा, नगर निगम परिषद की बैठक में अशोका गार्डन का नाम बदलकर ‘राम बाग’ करने का प्रस्ताव भी रखा गया है।
किन संस्थानों के नाम बदलने की मांग है?
- हमीदिया अस्पताल
- हमीदिया कॉलेज
- हमीदिया स्कूल
- अशोका गार्डन (नया नाम: राम बाग)
नगर निगम अध्यक्ष ने इस विषय में स्वास्थ्य मंत्री राजेंद्र शुक्ल, उच्च शिक्षा मंत्री और स्कूल शिक्षा मंत्री को भी संबोधित किया है।
क्या है ‘शत्रु संपत्ति’ का मामला?
नवाब हमीदुल्लाह पर आरोप है कि उन्होंने विभाजन के समय पाकिस्तान का समर्थन किया था। भारत सरकार ने उनकी संपत्ति को “शत्रु संपत्ति” की श्रेणी में रखा है। इसी आधार पर किशन सूर्यवंशी का कहना है कि:
“यदि सरकार नवाब की संपत्ति को शत्रु संपत्ति मानती है, तो फिर उनके नाम पर संस्थान क्यों चल रहे हैं?”
राजनीतिक और सामाजिक असर
भोपाल में इस मुद्दे को लेकर समाज के विभिन्न वर्गों में चर्चा तेज हो गई है। कुछ लोग इसे ऐतिहासिक पहचान मिटाने का प्रयास बता रहे हैं, जबकि अन्य इसे देशभक्ति से जोड़कर समर्थन कर रहे हैं।
संभावित परिणाम:
- राजनीतिक माहौल में गर्माहट
- स्थानीय इतिहास और पहचान पर बहस
- नाम बदलने के फैसले से जुड़ी कानूनी और प्रशासनिक प्रक्रियाएं
क्या कहती है नगर निगम परिषद?
नगर निगम की बैठक में इस प्रस्ताव को रखने के बाद इसे पारित करने की प्रक्रिया जल्द शुरू हो सकती है। यदि सरकार सहमत होती है, तो आने वाले महीनों में इन संस्थानों के नाम आधिकारिक रूप से बदल सकते हैं।
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निष्कर्ष
भोपाल में नाम बदलने की यह मांग केवल एक प्रशासनिक कार्यवाही नहीं, बल्कि इतिहास, राजनीति और राष्ट्रवाद के त्रिकोण में फंसा एक बड़ा मुद्दा बन चुकी है। आने वाले समय में यह देखना दिलचस्प होगा कि राज्य सरकार इस पर क्या निर्णय लेती है और इसका सामाजिक व राजनीतिक प्रभाव क्या पड़ता है।





