सतपुड़ा टाइगर रिजर्व की खूबसूरत वादियां उस समय डरावनी हकीकत में बदल गईं, जब महाराष्ट्र से आए एक परिवार की गाड़ी रात के सन्नाटे में खराब हो गई। जंगल के बीचों-बीच, गहराती रात में 16 लोग फस गए जिसमें महिलाएं, बुजुर्ग और छोटे बच्चे शामिल थे।
क्या हुआ था उस रात?
- महाराष्ट्र का परिवार पचमढ़ी से लौट रहा था
- रैनीखेड़ा जंगल क्षेत्र में गाड़ी का अल्टीनेटर फेल हो गया
- हेडलाइट बंद होते ही घना अंधेरा और जंगल का सन्नाटा छा गया
- किसी भी मोबाइल नेटवर्क की पहुँच नहीं थी
घबराहट और डर का माहौल
परिवार की हालत चिंताजनक हो गई। अंधेरा इतना गहरा था कि पास खड़े व्यक्ति तक को देखना संभव नहीं था। महिलाएं और बच्चे घबरा गए थे। इसी बीच, किसी तरह नेटवर्क पकड़कर डायल-100 पर कॉल किया गया।
डायल 100 पर कॉल और रेस्क्यू की शुरुआत
रात करीब 2:30 बजे, कॉल AMR सिस्टम के जरिए भोपाल कंट्रोल रूम पहुंचा। तत्काल माहुलझिर थाना और झिरपा चौकी को सतर्क किया गया।
मौके पर पहुँची पुलिस टीम:
- झिरपा चौकी प्रभारी रविंद्र पवार
- प्रधान आरक्षक दिनेश यादव
- आरक्षक मयंक पटेल
- पायलट संजय चौबे
- ग्राम रक्षा समिति सदस्य सोनू विश्वकर्मा
टीम ने बिना समय गंवाए रेस्क्यू ऑपरेशन शुरू किया।
जंगल का खौफ, लेकिन पुलिस का हौसला
सतपुड़ा टाइगर रिजर्व उस क्षेत्र में आता है जहां वन्यजीवों की गतिविधि अधिक रहती है, खासकर रात में। इसके बावजूद, पुलिस ने साहस दिखाते हुए घने जंगल में वाहन की लोकेशन ट्रेस की।
🔸 1 घंटे की मशक्कत के बाद सभी 16 लोगों को सुरक्षित निकाला गया।
🔸 पुलिस ने सभी को झिरपा चौकी लाकर गर्म पानी और प्राथमिक सहायता दी।
🔸 इसके बाद नई गाड़ी से सभी को नागपुर के लिए रवाना किया गया।
भावुक हुए पर्यटक: “हमने उम्मीद छोड़ दी थी”
राहुल डोगने और नीलम दलाल, जो नागपुर से थे, ने कहा:
“रात के करीब 12:30 बजे हमारी गाड़ी बंद हो गई। इतना अंधेरा था कि हाथ को हाथ नहीं सूझ रहा था। हमें लगा अब कोई उम्मीद नहीं बची। लेकिन जिस तरह से पुलिस आई और हमें बचाया, वो हमारे जीवन की सबसे बड़ी राहत थी।”
एक साहसी रात, जो याद बन गई
इस घटना ने यह साबित किया कि संकट के समय अगर तुरंत रेस्पॉन्स मिले तो बड़ी घटनाएं भी टाली जा सकती हैं। सतपुड़ा की रात भले ही भयावह रही, लेकिन पुलिस की सतर्कता और साहस ने एक परिवार की जिंदगी को सुरक्षित किया।