लीबिया के कर्नल मुअम्मर गद्दाफी का नाम सुनते ही ज़ेहन में एक विरोधाभासी छवि उभरती है। कभी वह गरीबों का हमदर्द नज़र आते हैं, कभी सनकी तानाशाह। उनकी ज़िंदगी में सत्ता, क्रांति, सनक और विवाद ऐसे गुथे हुए हैं कि यह समझना मुश्किल हो जाता है—आखिर असली गद्दाफी कौन थे?
इस लेख में हम जानेंगे गद्दाफी की पूरी कहानी—उनके बचपन से लेकर सत्ता के शिखर तक, उनकी अजीब आदतों से लेकर क्रांति और दुखद अंत तक।
जॉर्डन में गद्दाफी का अजीबो-गरीब कारवां
साल 2000, जॉर्डन का रेगिस्तान। करीब 600 गाड़ियों का काफिला राजधानी अम्मान की ओर बढ़ रहा था। इसी काफिले में थे लीबिया के “ब्रदर लीडर” कर्नल मुअम्मर गद्दाफी, जो 20 साल बाद जॉर्डन दौरे पर आए थे।
अचानक कारवां रुका, सुरक्षा में हड़कंप
जैसे ही गद्दाफी की गाड़ी रुकी, पूरा काफिला थम गया। जॉर्डन के सुरक्षा अधिकारी घबरा गए। उन्हें लगा कोई हमला हुआ है, लेकिन असल वजह कुछ और थी।
दूर पहाड़ी पर खड़े एक पुराने बेदूइन तंबू पर गद्दाफी की नज़र पड़ी। उन्होंने आदेश दिया—
“गाड़ी मोड़ो, मुझे वहाँ जाना है!”
एक आम महिला से मुलाकात
सुरक्षा अधिकारियों ने लाख समझाया कि यह शेड्यूल और सुरक्षा के लिए ठीक नहीं, लेकिन गद्दाफी नहीं माने। तंबू में एक बुजुर्ग महिला अपने परिवार के साथ रहती थी। उसे अंदाज़ा भी नहीं था कि कौन उसके दरवाज़े पर खड़ा है।
महिला ने गरीबी और सरकार की शिकायतें शुरू कर दीं। गद्दाफी ने चुपचाप सुना, फिर उसके सख्त, मेहनतकश हाथों को चूमते हुए बोले—
“इन हाथों ने मुझे मेरी माँ की याद दिला दी।”
जाते-जाते गद्दाफी ने महिला के तकिए के नीचे डॉलर रख दिए और जॉर्डन सरकार को आदेश दिया—
“इस परिवार के लिए पक्का घर बनाओ।”
यह था गद्दाफी का एक चेहरा—गरीबों से हमदर्दी और अपनी जड़ों से जुड़ाव।
लेकिन दूसरी ओर… गद्दाफी की सनक भी दिखी
उसी दौरे पर अरब लीग सम्मेलन में उन्हें लगा कि जॉर्डन के किंग अब्दुल्ला ने उन्हें पूरा सम्मान नहीं दिया। गुस्से में गद्दाफी ने ऐलान कर दिया—
“मैं इस सम्मेलन में हिस्सा नहीं लूंगा, अभी लीबिया लौटूंगा!”
किंग अब्दुल्ला को खुद महल से निकलकर गद्दाफी को मनाना पड़ा। लेकिन इसके बीच गद्दाफी ने क्या किया?
अपने 600 गाड़ियों के काफिले को एक आइसक्रीम दुकान पर रुकवाया और मज़े से आइसक्रीम खाई, जैसे कुछ हुआ ही न हो।
गद्दाफी: बेदूइन से ‘किंग ऑफ किंग्स’ बनने तक
1. बचपन और संघर्ष (1942)
1942, द्वितीय विश्व युद्ध के दौरान, लीबिया पर इटली का कब्ज़ा था। इसी दौरान सिर्ते के पास रेगिस्तान के एक तंबू में जन्म हुआ—
मुअम्मर अबू मिनयार अल-गद्दाफी।
- पिता: ऊँट और बकरी चराने वाले
- माँ: अनपढ़, लेकिन मेहनतकश
- बचपन: रेगिस्तान की कड़वी धूप, सर्द रातें और धूल भरी आँधियों में बीता
2. शिक्षा और क्रांति का बीज
गद्दाफी को पढ़ाई का जुनून था। घूमंतू इस्लामी शिक्षक से कुरान सीखा। स्कूल में दाखिला मिला लेकिन शहरी बच्चों ने मज़ाक उड़ाया—
“देखो, देहाती आ गया!”
इस अपमान ने गद्दाफी के भीतर गुस्से और पहचान की तलाश को जन्म दिया। मिस्र के नेता गमाल अब्दुल नासिर से प्रभावित होकर उन्होंने अरब राष्ट्रवाद की राह पकड़ी।
3. सेना में शामिल होकर क्रांति की तैयारी (1964)
1964 में गद्दाफी ने बेंगाजी मिलिट्री एकेडमी में दाखिला लिया। वहीं उन्होंने
“फ्री यूनियनिस्ट ऑफिसर्स मूवमेंट” बनाया। मकसद था लीबिया के राजा इदरीस को हटाना।
1 सितंबर 1969: जब गद्दाफी ने सत्ता संभाली
कई बार की नाकामी और बाधाओं के बाद आखिरकार 1 सितंबर 1969 को गद्दाफी ने सत्ता पलट दी।
सुबह 6:30 बजे रेडियो पर गद्दाफी की आवाज़ गूंजी—
“लीबिया के लोगो, हमने इस सड़ी-गली हुकूमत को उखाड़ फेंका है। अब लीबिया एक गणराज्य है।”
गद्दाफी का शासन: क्रांति, तानाशाही और अजीब आदतें
1. ‘ग्रीन बुक’ और जमाहीरिया का सपना (1975)
गद्दाफी ने अपनी प्रसिद्ध किताब ‘ग्रीन बुक’ में नया शासन मॉडल पेश किया:
✔ संसद फालतू
✔ राजनीतिक दल तानाशाही का जरिया
✔ जनता खुद शासन करे—सीधे लोकतंत्र
लेकिन असल में:
- सरकारी स्टोर्स खाली पड़े रहते
- निजी दुकानें बंद
- टीवी पर खिलाड़ियों के नाम की जगह नंबर से पुकारा जाता
2. गद्दाफी की अजीब आदतें
- महिला बॉडीगार्ड्स:
उनका मानना था कि महिलाएं ज़्यादा वफादार होती हैं। - विदेश दौरों में तंबू साथ ले जाना:
न्यूयॉर्क से पेरिस तक, जहां भी जाते, तंबू जरूर लगता। - अचानक गुस्सा होना:
अरब लीग सम्मेलन छोड़ने की धमकी देना आम बात थी।
2011 की क्रांति और गद्दाफी का दुखद अंत
अरब स्प्रिंग की लहर जब लीबिया पहुंची तो गद्दाफी के खिलाफ लोग सड़कों पर उतर आए। उन्होंने प्रदर्शनकारियों पर गोलियां चलवाईं, लेकिन इस बार हालात बदल चुके थे।
20 अक्टूबर 2011: गिरफ़्तारी और मौत
- गद्दाफी सिर्ते से भाग रहे थे
- नाटो के हमले में काफिला नष्ट हुआ
- गद्दाफी सीवर पाइप में छुपे मिले
- बागियों ने पकड़कर गोली मार दी
उनके आखिरी शब्द थे:
“मैंने तुम्हारा क्या बिगाड़ा?”
उनकी लाश को मीट मार्केट के फ्रीजर में रखा गया, हजारों लोगों ने देखा। बाद में एक गुमनाम कब्र में दफना दिया गया।
निष्कर्ष: गद्दाफी—एक विरोधाभास
✔ गरीबों का हमदर्द
✔ विरोधियों के लिए निर्दयी
✔ कभी अमेरिका का दुश्मन, कभी दोस्त, कभी शिकार
✔ खुद को क्रांति मानने वाला, लेकिन क्रांति की लहर में बह गया
“मैं एक क्रांति हूं!” — गद्दाफी
“और असली क्रांति ने तुम्हें ही बहा दिया।” — इतिहास
अक्सर पूछे जाने वाले सवाल (FAQs)
Q. मुअम्मर गद्दाफी कौन थे?
लीबिया के पूर्व शासक, जो 1969 से 2011 तक सत्ता में रहे। खुद को क्रांतिकारी कहते थे लेकिन विवादों और तानाशाही के लिए भी मशहूर रहे।
Q. गद्दाफी की मौत कैसे हुई?
2011 में अरब स्प्रिंग के दौरान बागियों ने उन्हें पकड़कर गोली मार दी थी।
Q. गद्दाफी की ‘ग्रीन बुक’ क्या थी?
उनकी लिखी किताब जिसमें उन्होंने नया लोकतंत्र मॉडल ‘जमाहीरिया’ पेश किया था।
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