मुख्य बातें:
- मदुरै बेंच ने दी Dindigul स्थित TASMAC दुकान को बंद करने की हिदायत
- स्कूल के मात्र 30 मीटर दूरी पर थी शराब की दुकान
- सरकार की दलीलों को कोर्ट ने किया खारिज
- संविधान के अनुच्छेद 47 का हवाला देते हुए राज्य की नीति पर सवाल
मामले की पृष्ठभूमि
तमिलनाडु के डिंडिगुल शहर में त्रिची रोड पर स्थित एक सरकारी शराब दुकान (TASMAC outlet) को लेकर विवाद गहराया, जब स्थानीय निवासी पी. वेत्रिवेल ने मद्रास हाईकोर्ट की मदुरै बेंच में याचिका दाखिल की। उनका तर्क था कि शराब की यह दुकान एक स्कूल से मात्र 30 मीटर की दूरी पर है, जिससे छात्रों को स्कूल आते-जाते असुविधा का सामना करना पड़ता है।
राज्य सरकार की सफाई और कोर्ट की प्रतिक्रिया
राज्य सरकार ने जवाब देते हुए कहा कि दुकान नगर निगम क्षेत्र के अंतर्गत है, जहाँ शराब दुकानों और शैक्षणिक संस्थानों के बीच कम से कम 50 मीटर की दूरी का नियम लागू होता है, लेकिन यह नियम केवल रिहायशी क्षेत्रों पर लागू होता है, न कि व्यावसायिक क्षेत्रों पर।
हालाँकि, कोर्ट ने सरकार की इस दलील को खारिज करते हुए स्पष्ट किया कि विद्यालय के पास शराब की दुकान से बच्चों और अभिभावकों को वास्तव में असुविधा होती है और यह सार्वजनिक हित के विरुद्ध है।
संविधानिक मूल्यों की याद दिलाई
कोर्ट ने राज्य की नीतियों पर तीखा प्रहार करते हुए कहा:
“एक ओर सरकार जनस्वास्थ्य के नाम पर अस्पतालों की संख्या बढ़ा रही है, और दूसरी ओर शराब की दुकानें भी चला रही है। यह कल्याणकारी राज्य की अवधारणा से मेल नहीं खाता।”
कोर्ट ने भारतीय संविधान के अनुच्छेद 47 का हवाला दिया, जिसमें राज्य को नशीले पदार्थों पर रोक लगाने और जनस्वास्थ्य सुधार की दिशा में कार्य करने की बात कही गई है।
राजस्व बनाम जनहित: कोर्ट की नाराज़गी
कोर्ट ने कहा कि चाहे सत्ताधारी DMK हो या विपक्षी AIADMK, दोनों ही सरकारें शराब बिक्री को राजस्व का मुख्य स्रोत मानती रही हैं। वर्ष 2024-25 में तमिलनाडु सरकार को TASMAC से ₹48,344 करोड़ की कमाई हुई, जो पिछले वर्ष से ₹2,483 करोड़ अधिक है।
पूर्व मुख्यमंत्री जयललिता द्वारा शुरू किए गए शराबबंदी अभियान का हवाला देते हुए कोर्ट ने कहा कि उन्होंने 500 दुकानों को बंद किया था और शराब बिक्री की समय सीमा भी घटाई थी। DMK सरकार ने भी इसी तरह के वादे किए, लेकिन व्यवहार में शराब बिक्री में वृद्धि ही हुई है।
शराबबंदी की दिशा में ठोस कदम की मांग
राज्य सरकार का कहना है कि पूर्ण शराबबंदी व्यावहारिक नहीं है क्योंकि पड़ोसी राज्यों से शराब की उपलब्धता बनी रहती है, जिससे अवैध व्यापार को बढ़ावा मिल सकता है। लेकिन कोर्ट ने इस तर्क को कमजोर बताते हुए दोहराया कि हाल ही में हुई जहरीली शराब की घटनाएं, जिनमें करीब 80 लोगों की मौत हुई, राज्य की नीतियों पर पुनर्विचार की आवश्यकता को दर्शाती हैं।
अगली सुनवाई: 18 जून को होगी रिपोर्ट पेश
मद्रास हाईकोर्ट ने इस मामले की अगली सुनवाई 18 जून 2025 को तय की है, जिसमें राज्य सरकार को अनुपालन रिपोर्ट प्रस्तुत करनी होगी।
निष्कर्ष: जनहित पहले या राजस्व?
यह मामला सिर्फ एक दुकान बंद करने तक सीमित नहीं है, बल्कि यह प्रश्न उठाता है कि क्या राज्य सरकारें राजस्व के लालच में जनहित की अनदेखी कर रही हैं? मद्रास हाईकोर्ट ने स्पष्ट संदेश दिया है — राज्य की नीतियां संविधान के अनुरूप होनी चाहिए, और जनता के स्वास्थ्य को प्राथमिकता मिलनी चाहिए।
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