BY: Yoganand Shrivastva
भुवनेश्वर/दीघा: पश्चिम बंगाल के तटीय शहर दीघा में हाल ही में बने जगन्नाथ मंदिर को लेकर दो राज्यों के बीच टकराव की स्थिति बन गई है। उड़ीसा सरकार ने मंदिर में स्थापित मूर्तियों के निर्माण में उपयोग की गई लकड़ी की जांच के आदेश जारी कर दिए हैं। विवाद इस बात को लेकर है कि क्या इस लकड़ी का उपयोग नियमों के अनुसार हुआ है या नहीं।
क्या है पूरा मामला?
पश्चिम बंगाल के दीघा में हाल ही में बनाए गए इस जगन्नाथ मंदिर को लेकर उड़ीसा और बंगाल के बीच राजनीतिक और सांस्कृतिक विवाद खड़ा हो गया है। ओडिशा सरकार का कहना है कि जगन्नाथ मंदिर की मूर्तियों में परंपरागत रूप से ‘दारु ब्रह्म’ (पवित्र लकड़ी) का उपयोग होता है, जो विशेष धार्मिक प्रक्रिया के तहत चुनी जाती है। ऐसे में उन्होंने यह सवाल उठाया है कि क्या दीघा के मंदिर में इन धार्मिक मानकों का पालन किया गया।
राजनीतिक तापमान बढ़ा
यह विवाद अब केवल धार्मिक दायरे में नहीं रहा, बल्कि राजनीतिक मोड़ भी ले चुका है। इस मुद्दे पर बीजेपी नेता दिलीप घोष ने मुख्यमंत्री ममता बनर्जी से मुलाकात की, जिससे सियासी हलचल तेज हो गई है। उड़ीसा सरकार द्वारा दी गई जांच की मंजूरी को कुछ लोग धार्मिक विरासत की सुरक्षा मान रहे हैं, तो कुछ इसे राजनीति से प्रेरित कदम बता रहे हैं।
क्या कहती है परंपरा?
उड़ीसा में जगन्नाथ संस्कृति हजारों वर्षों पुरानी है, जहां हर 12 साल में नवकलेवर के दौरान नई मूर्तियाँ बनाई जाती हैं, जिनमें पवित्र लकड़ी का खास महत्व होता है। ऐसे में अगर बिना विधिवत प्रक्रिया के मूर्तियाँ स्थापित की गईं हैं, तो यह परंपरा और भावनाओं दोनों का उल्लंघन माना जा सकता है।
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