BY: Yoganand Shrivastva
नई दिल्ली। सुप्रीम कोर्ट ने दिल्ली के महरौली स्थित आशिक़ अल्लाह दरगाह और सूफी संत बाबा शेख फ़रीदुद्दीन की चिल्लागाह को लेकर बड़ा निर्देश दिया है। अदालत ने साफ कर दिया है कि इस स्थल पर न तो कोई तोड़फोड़ होगी और न ही कोई नया निर्माण किया जाएगा।
सुनवाई के दौरान उठे सवाल
जस्टिस बी.वी. नागरत्ना और जस्टिस आर. महादेवन की बेंच ने मामले की सुनवाई की। अदालत ने दिल्ली विकास प्राधिकरण (DDA) से पूछा कि वह इस ढांचे को गिराना क्यों चाहता है। इस पर DDA के वकील ने तर्क दिया कि यह क्षेत्र वन भूमि में आता है और दरगाह के पास अतिरिक्त निर्माण होने पर उन्हें आपत्ति है।
एएसआई की रिपोर्ट और दलीलें
याचिकाकर्ता की ओर से पेश वकील निज़ाम पाशा ने कहा कि भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण (ASI) ने इस दरगाह को 12वीं सदी का ऐतिहासिक स्मारक माना है। ऐसे में किसी धार्मिक समिति की सहमति या असहमति का कोई महत्व नहीं है। पाशा ने यह भी दावा किया कि यहां अवैध निर्माण का कोई सबूत नहीं है।
DDA ने अदालत से कहा कि वे केवल उसी हिस्से को सुरक्षित रखेंगे जिसे एएसआई संरक्षित स्मारक घोषित करेगा।
हाई कोर्ट से सुप्रीम कोर्ट तक मामला
यह विवाद तब शुरू हुआ जब दिल्ली हाई कोर्ट में एक जनहित याचिका दायर कर दरगाह और चिल्लागाह को तोड़े जाने से रोकने की मांग की गई। हाई कोर्ट ने याचिका खारिज करते हुए कहा था कि ये ढांचे संरक्षित स्मारकों की श्रेणी में नहीं आते। इसके बाद ही यह मामला सुप्रीम कोर्ट पहुंचा।
सुप्रीम कोर्ट का स्पष्ट निर्देश
सुप्रीम कोर्ट ने आदेश देते हुए कहा कि दरगाह और चिल्लागाह की मौजूदा स्थिति में कोई भी छेड़छाड़ नहीं होगी। न तो यहां कोई तोड़फोड़ की जाएगी और न ही कोई नया निर्माण किया जाएगा। कोर्ट के इस आदेश से फिलहाल महरौली के इन धार्मिक और ऐतिहासिक ढांचों को सुरक्षा मिल गई है।





