होलिका दहन से चार दिन पहले आने वाली आमलकी एकादशी को रंगभरी एकादशी भी कहा जाता है। यह फाल्गुन मास की अंतिम एकादशी होती है, जिसके बाद चैत्र मास का प्रारंभ होता है। हिंदू धर्म में यह दिन अत्यंत शुभ माना जाता है और इसका विशेष महत्व होता है, खासकर वाराणसी में काशी विश्वनाथ मंदिर में इसे विशेष रूप से मनाया जाता है।
रंगभरी एकादशी का महत्व
रंगभरी एकादशी का संबंध भगवान विष्णु और भगवान शिव दोनों से है। इस दिन आंवले के वृक्ष की पूजा की जाती है, क्योंकि आंवला भगवान विष्णु को अत्यंत प्रिय है। वहीं, इस दिन भगवान शंकर और माता पार्वती के गौना (गृह प्रवेश) का उत्सव भी मनाया जाता है। मान्यता है कि इस दिन भगवान शिव माता पार्वती को विवाह के बाद पहली बार अपने घर लाते हैं, और इसी खुशी में भक्तों द्वारा गुलाल और फूलों से होली खेली जाती है।
वाराणसी में रंगभरी एकादशी के दिन बाबा विश्वनाथ की विशेष बारात निकाली जाती है, जिसमें हजारों भक्त शामिल होते हैं। इसे काशी की पहली होली भी कहा जाता है।
रंगभरी एकादशी की पूजा विधि
इस दिन व्रत और पूजन करने से भगवान विष्णु और भगवान शिव की कृपा प्राप्त होती है। पूजा विधि इस प्रकार है:
- प्रातः काल स्नान कर स्वच्छ वस्त्र धारण करें।
- भगवान विष्णु और शिव-पार्वती का पूजन करें।
- आंवले के वृक्ष की पूजा करें और दीप जलाएं।
- शुद्ध घी का दीपक जलाकर विष्णु सहस्त्रनाम का पाठ करें।
- गुलाल, फूल और रंगों से भगवान शिव-पार्वती की होली खेलें।
- रात्रि जागरण और भजन-कीर्तन करें।
- अगले दिन पारण कर व्रत का समापन करें।
रंगभरी एकादशी 2025 की तिथि और शुभ मुहूर्त
रंगभरी एकादशी 2025 में XX मार्च को मनाई जाएगी। पूजा और व्रत का शुभ मुहूर्त इस प्रकार रहेगा:
एकादशी तिथि प्रारंभ: XX मार्च, सुबह XX:XX बजे
एकादशी तिथि समाप्त: XX मार्च, सुबह XX:XX बजे
व्रत पारण का समय: XX मार्च, प्रातः XX:XX बजे से XX:XX बजे तक
(सटीक तिथि और मुहूर्त के लिए पंचांग देखें)
रंगभरी एकादशी से जुड़ी पौराणिक कथा
पौराणिक मान्यता के अनुसार, भगवान विष्णु ने राजा मान्धाता को इस एकादशी का व्रत करने की सलाह दी थी, जिससे उन्हें मोक्ष की प्राप्ति हुई। इसके अलावा, माता पार्वती के विवाह के बाद जब भगवान शिव उन्हें कैलाश लेकर गए, तब देवताओं और गणों ने उनकी गुलाल और फूलों से आरती कर स्वागत किया। इसी परंपरा को रंगभरी एकादशी के रूप में मनाया जाता है।
रंगभरी एकादशी का आध्यात्मिक और सांस्कृतिक महत्व
- भगवान शिव और माता पार्वती के विवाह उत्सव का पर्व।
- रंगों और भक्ति के माध्यम से शिव-पार्वती की कृपा प्राप्त करने का दिन।
- वाराणसी में काशी विश्वनाथ की बारात और रंगभरी होली का आयोजन।
- आध्यात्मिक उन्नति और मोक्ष प्राप्ति का शुभ अवसर।
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