समाजवादी पार्टी (सपा) के राज्यसभा सांसद रामजीलाल सुमन ने मार्च 2025 में संसद में 16वीं सदी के मेवाड़ के राजपूत शासक राणा सांगा (संग्राम सिंह प्रथम) के बारे में विवादास्पद बयान दिए। इन बयानों में राणा सांगा को “गद्दार” करार दिया गया और यह आरोप लगाया गया कि उन्होंने मुगल सम्राट बाबर को इब्राहिम लोदी को हराने के लिए भारत बुलाया। इन टिप्पणियों से व्यापक विवाद, विरोध प्रदर्शन और हिंसा भड़क उठी। नीचे सुमन के दावों, ऐतिहासिक संदर्भ, प्रतिक्रियाओं और बयानों की सटीकता का विस्तृत फैक्ट-चेक दिया गया है, जो उपलब्ध स्रोतों और ऐतिहासिक साक्ष्यों पर आधारित है।
रामजीलाल सुमन ने क्या कहा?
21 मार्च, 2025 को राज्यसभा में एक चर्चा के दौरान, रामजीलाल सुमन ने निम्नलिखित बयान दिए, जैसा कि कई स्रोतों ने बताया:
- दावा 1: राणा सांगा ने बाबर को इब्राहिम लोदी को हराने के लिए भारत बुलाया। सुमन ने कहा, “बाबर को भारत कौन लाया? राणा सांगा ने उसे इब्राहिम लोदी को हराने के लिए बुलाया।”
- दावा 2: यदि भारतीय मुसलमानों को बाबर की संतान कहा जाता है (जैसा कि सुमन ने आरोप लगाया कि बीजेपी नेता कहते हैं), तो हिंदुओं को राणा सांगा की संतान होना चाहिए, जिन्हें उन्होंने “गद्दार” कहा। उन्होंने कहा, “अगर मुसलमानों को बाबर की संतान कहा जाता है, तो हिंदुओं को गद्दार राणा सांगा की संतान होना चाहिए।”
- बयान का संदर्भ: सुमन का बयान बीजेपी के उस कथित narrative का जवाब था, जिसमें भारतीय मुसलमानों को “बाबर की संतान” के रूप में चित्रित किया जाता है। उन्होंने तर्क दिया कि भारतीय मुसलमान बाबर को नहीं, बल्कि पैगंबर मुहम्मद और सूफी परंपरा को मानते हैं। उन्होंने यह भी सुझाव दिया कि यदि बाबर की आलोचना की जाती है, तो राणा सांगा जैसे ऐतिहासिक व्यक्तियों की भी जांच होनी चाहिए।
सुमन ने बाद में 27 मार्च, 2025 को स्पष्ट किया कि उनका इरादा धार्मिक या जातिगत भावनाओं को ठेस पहुंचाना नहीं था। उन्होंने कहा, “मेरा बयान न तो किसी जाति के खिलाफ था, न किसी वर्ग के खिलाफ, न ही किसी धर्म के खिलाफ। मैं उन सभी को नमन करता हूं जिन्होंने इस देश की मिट्टी के लिए अपने प्राणों का बलिदान दिया।” हालांकि, उन्होंने माफी मांगने से इनकार कर दिया और कहा कि उनके बयान “ऐतिहासिक तथ्यों” पर आधारित थे और “इतिहास को नकारा नहीं जा सकता।”
ऐतिहासिक संदर्भ: राणा सांगा और बाबर
सुमन के दावों की सटीकता जांचने के लिए, आइए राणा सांगा, बाबर और उनके बीच संबंधों के ऐतिहासिक रिकॉर्ड की जांच करें, जो स्थापित स्रोतों और ऐतिहासिक विद्वानों पर आधारित है।
राणा सांगा कौन थे?
- राणा सांगा (संग्राम सिंह प्रथम, 1472–1528) मेवाड़ के राजपूत शासक (1508–1528) थे और सिसोदिया वंश से थे। उन्हें भारतीय इतिहास में उनकी वीरता, राजपूत कबीलों को एकजुट करने और विदेशी आक्रमणों का विरोध करने के लिए जाना जाता है।
- उन्होंने दिल्ली सल्तनत, मालवा और गुजरात के सुल्तानों और बाद में बाबर के खिलाफ कई युद्ध लड़े। उनका सबसे प्रसिद्ध युद्ध खानवा का युद्ध (1527) था, जहां उन्होंने राजपूतों के एक संघ के नेतृत्व में बाबर के खिलाफ लड़ाई लड़ी, लेकिन बाबर की बेहतर तोपखाने और रणनीति के कारण हार गए।
- अपनी हार के बावजूद, राणा सांगा को राजपूत शौर्य का प्रतीक माना जाता है। उनके शरीर पर 80 से अधिक घाव थे, और उन्होंने एक हाथ, एक पैर और एक आंख खोने के बावजूद युद्ध जारी रखा।

क्या राणा सांगा ने बाबर को भारत बुलाया?
- ऐतिहासिक साक्ष्य: यह दावा कि राणा सांगा ने बाबर को इब्राहिम लोदी को हराने के लिए “बुलाया” था, पानीपत की पहली लड़ाई (1526) से पहले की घटनाओं की एक विवादित व्याख्या से उपजा है, जिसमें बाबर ने इब्राहिम लोदी को हराकर मुगल साम्राज्य की स्थापना की।
- बाबर का लेख: अपनी आत्मकथा बाबरनामा में, बाबर ने उल्लेख किया कि उन्हें विभिन्न भारतीय शासकों, जिनमें इब्राहिम लोदी के विरोधी शामिल थे, से दूत मिले। कुछ इतिहासकारों का मानना है कि राणा सांगा, जो लोदी के प्रतिद्वंद्वी थे, ने दिल्ली सल्तनत के खिलाफ गठबंधन की संभावना तलाशने के लिए बाबर को दूत भेजे हो सकते हैं। हालांकि, बाबरनामा या समकालीन स्रोतों में यह स्पष्ट साक्ष्य नहीं है कि सांगा ने बाबर को भारत पर आक्रमण करने या मुगल शासन स्थापित करने के लिए स्पष्ट रूप से “बुलाया”।
- राणा सांगा के मकसद: ऐतिहासिक विवरणों से पता चलता है कि राणा सांगा का लक्ष्य लोदी की शक्ति को कमजोर करना था ताकि वह उत्तरी भारत में अपना प्रभाव बढ़ा सकें। यदि उन्होंने बाबर से संपर्क किया, तो यह संभवतः रणनीतिक था, यह उम्मीद करते हुए कि बाबर लोदी को हराने के बाद मध्य एशिया लौट जाएगा, क्योंकि बाबर शुरू में फरगाना का एक सरदार था। सुमन का यह दावा कि सांगा ने बाबर को “लुटेरा” माना और सोचा कि वह भारत छोड़ देगा, इस व्याख्या से कुछ हद तक मेल खाता है, लेकिन यह उस समय की जटिल राजनीतिक गतिशीलता को सरल करता है।
- प्रति-साक्ष्य: पानीपत में बाबर की जीत के बाद, सांगा और बाबर के बीच संबंध बिगड़ गए। सांगा ने राजपूत कबीलों को एकजुट किया और खानवा में बाबर के खिलाफ युद्ध लड़ा। यह दर्शाता है कि सांगा का इरादा बाबर को भारत में स्थायी रूप से बस*।
- विद्वानों की सहमति: अधिकांश इतिहासकार, जैसे सतीश चंद्रा और आर.सी. मजूमदार, तर्क देते हैं कि राणा सांगा ने बाबर के लोदी के खिलाफ अभियान को परोक्ष रूप से प्रोत्साहित किया हो सकता है, लेकिन इसे “निमंत्रण” कहना अतिशयोक्ति है। सांगा का प्राथमिक लक्ष्य लोदी की शक्ति को कम करना था, न कि मुगल शासन को सक्षम करना। सांगा को इसके लिए “गद्दार” कहना एक व्यक्तिपरक निर्णय है जो 16वीं सदी के भारत के खंडित राजनीतिक परिदृश्य को नजरअंदाज करता है, जहां गठबंधन अक्सर व्यावहारिक होते थे।
क्या राणा सांगा “गद्दार” थे?
- ऐतिहासिक दृष्टिकोण: “गद्दार” शब्द का अर्थ है अपनी राष्ट्र या लोगों के साथ विश्वासघात। 16वीं सदी के भारत में कोई एकीकृत “राष्ट्र” नहीं था, बल्कि विभिन्न राज्यों का एक समूह था, जिनके हित आपस में टकराते थे। राणा सांगा के कार्य क्षेत्रीय शक्ति की गतिशीलता से प्रेरित थे, न कि किसी राष्ट्रीय कारण के साथ विश्वासघात। खानवा में बाबर के खिलाफ उनकी बाद की लड़ाई मेवाड़ और राजपूत हितों की रक्षा के प्रति उनकी प्रतिबद्धता को दर्शाती है।
- सांस्कृतिक सम्मान: राजस्थान और राजपूतों के बीच, राणा सांगा एक वीर व्यक्तित्व हैं, जिन्हें उनके बलिदानों और विदेशी आक्रमणकारियों के खिलाफ प्रतिरोध के लिए सम्मानित किया जाता है। उन्हें “गद्दार” कहना इन समुदायों के लिए गहरा अपमानजनक है, जैसा कि विरोध प्रदर्शनों से स्पष्ट है।
फैक्ट-चेक सारांश
- दावा: राणा सांगा ने बाबर को इब्राहिम लोदी को हराने के लिए बुलाया
- निर्णय: आंशिक रूप से सटीक लेकिन भ्रामक।
- विवरण: इस बात के कुछ साक्ष्य हैं कि राणा सांगा ने इब्राहिम लोदी का मुकाबला करने के लिए बाबर को दूत भेजे हो सकते हैं, लेकिन “बुलाया” शब्द उनकी भूमिका को बढ़ा-चढ़ाकर पेश करता है। सांगा के राजनयिक कदम रणनीतिक थे, जिनका उद्देश्य एक प्रतिद्वंद्वी को कमजोर करना था, न कि मुगल शासन को सक्षम करना। बाबर के खिलाफ उनकी बाद की लड़ाई इस कथन का खंडन करती है कि यह जानबूझकर किया गया विश्वासघात था।
- दावा: राणा सांगा “गद्दार” थे, और हिंदू उनकी संतान हैं
- निर्णय: गलत और भड़काऊ।
- विवरण: राणा सांगा को “गद्दार” कहना एक व्यक्तिपरक व्याख्या है जो ऐतिहासिक सहमति द्वारा समर्थित नहीं है। उनके कार्य उस युग की राजनीतिक चालबाजी के लिए विशिष्ट थे। यह दावा कि हिंदू “गद्दार” की संतान हैं, बीजेपी के कथन का जवाब देने के लिए एक अलंकारिक अतिशयोक्ति है, लेकिन इसका कोई ऐतिहासिक आधार नहीं है और यह राजपूत और हिंदू भावनाओं के लिए अपमानजनक है।
प्रतिक्रियाएं और परिणाम
सुमन के बयानों ने राजपूत समुदायों और बीजेपी नेताओं से तीखी आलोचना, विरोध प्रदर्शन और हिंसा को जन्म दिया। नीचे इस विवाद के परिणामों का विस्तृत विवरण दिया गया है:
विरोध और हिंसा
- 26 मार्च, 2025: करणी सेना, एक राजपूत संगठन, के सदस्यों ने उत्तर प्रदेश के आगरा में सुमन के आवास पर हमला किया। उन्होंने पथराव किया, वाहनों को क्षतिग्रस्त किया और खिड़कियों के शीशे तोड़े, जिसके बाद पुलिस के साथ उनकी झड़प हुई। एक पुलिस इंस्पेक्टर घायल हुआ, और पुलिस ने भीड़ को तितर-बितर करने के लिए लाठीचार्ज किया।
- एफआईआर और गिरफ्तारियां: आगरा पुलिस ने दंगा, हत्या का प्रयास और घर में घुसने के आरोप में “अनियंत्रित भीड़” के खिलाफ एफआईआर दर्ज की। कुछ करणी सेना के सदस्यों को गिरफ्तार किया गया, लेकिन बाद में उन्हें रिहा कर दिया गया।
- इनामी धमकियां:
- 27 मार्च को, श्री राष्ट्रीय राजपूत करणी सेना मेवाड़ इकाई ने सुमन की “जीभ काटने” वाले को 5.51 लाख रुपये का इनाम देने की घोषणा की।
- 30 मार्च को, अलीगढ़ में एक हिंदू संगठन के नेता, जिनकी पहचान मोहन के रूप में हुई, ने सुमन की हत्या के लिए 25 लाख रुपये का इनाम घोषित किया, जिससे तनाव और बढ़ गया।
राजनीतिक प्रतिक्रियाएं
- बीजेपी: भारतीय जनता पार्टी ने सुमन के बयानों को “शर्मनाक” और राजपूतों और हिंदुओं का अपमान करार दिया। राजस्थान के मुख्यमंत्री भजनलाल शर्मा जैसे नेताओं ने कार्रवाई और माफी की मांग की, और राणा सांगा के बलिदानों पर जोर दिया। केंद्रीय मंत्री एसपी सिंह बघेल और बीजेपी सांसद कंगना रनौत ने भी सुमन की आलोचना की, जिसमें रनौत ने “स्वाभिमान और स्वतंत्रता के प्रतीक” का अपमान करने के लिए माफी की मांग की।
- समाजवादी पार्टी: सपा प्रमुख अखिलेश यादव ने सुमन का बचाव किया और तर्क दिया कि उन्होंने “ऐतिहासिक तथ्यों” का उल्लेख किया था और बीजेपी इतिहास का राजनीतिक लाभ के लिए दुरुपयोग कर रही थी। यादव ने स्पष्ट किया कि सपा राणा सांगा की वीरता पर सवाल नहीं उठाती, लेकिन सुमन को निशाना बनाए जाने का आरोप लगाया क्योंकि वह दलित हैं।
- राजपूत नेता: कांग्रेस के प्रताप सिंह खाचरियावास और राजस्थान की उपमुख्यमंत्री दिया कुमारी सहित विभिन्न दलों के राजपूत नेताओं ने सुमन के बयानों को राजस्थान के इतिहास के लिए अपमानजनक बताया।
- सपा की अंबेडकर वाहिनी: सपा की दलित शाखा ने सुमन के लिए बढ़ी हुई सुरक्षा की मांग की और आरोप लगाया कि हमले जातिगत आधार पर किए गए। उन्होंने जिला मजिस्ट्रेटों और राष्ट्रपति को ज्ञापन सौंपे।
कानूनी कार्रवाइयां
- 11 अप्रैल, 2025 को, सुमन ने इलाहाबाद उच्च न्यायालय का रुख किया और अपने और अपने परिवार के लिए बढ़ी हुई सुरक्षा की मांग की, क्योंकि उनके आवास पर हमला हुआ था और करणी सेना से लगातार धमकियां मिल रही थीं। उन्होंने हिंसा की निष्पक्ष जांच की भी मांग की।
- 12 अप्रैल को, राणा सांगा की जयंती के अवसर पर, आगरा में सुमन के आवास के बाहर भारी पुलिस तैनाती की गई ताकि आगे के विरोध प्रदर्शनों को रोका जा सके।
सोशल मीडिया की भावनाएं
- एक्स पर कुछ उपयोगकर्ताओं, विशेष रूप से राजपूत या हिंदू भावनाओं से जुड़े लोगों ने तीव्र आक्रोश व्यक्त किया। उदाहरण के लिए, @MrSinha_ और @MumbaichaDon जैसे उपयोगकर्ताओं ने सुमन के बयानों को राणा सांगा का अपमान बताया और उनके इरादों की जांच की मांग की।
- कुछ पोस्ट, जैसे @TheChronology__ की, ने आरोप लगाया कि सुमन का बयान हिंदुओं के बीच जातिगत युद्ध शुरू करने के लिए एक “टूलकिट” का हिस्सा था, हालांकि इस दावे का कोई सबूत नहीं है और यह अनुमान आधारित प्रतीत होता है।
विश्लेषण: विवाद क्यों?
- सांस्कृतिक संवेदनशीलता: राणा सांगा राजस्थान और राजपूतों के बीच एक पूजनीय व्यक्तित्व हैं, जो प्रतिरोध और बलिदान का प्रतीक हैं। उन्हें “गद्दार” कहना राजपूत गौरव और हिंदू विरासत पर हमला माना गया, खासकर सुमन के हिंदू संतानों के बारे में व्यापक दावे के संदर्भ में।
- राजनीतिक ध्रुवीकरण: यह विवाद भारत के ध्रुवीकृत राजनीतिक परिदृश्य को दर्शाता है, जहां ऐतिहासिक कथाओं का हथियार के रूप में उपयोग किया जाता है। सुमन के बयान बीजेपी के कथित मुसलमानों को “बाबर की संतान” के रूप में चित्रित करने के जवाब में थे, लेकिन राजपूत मतदाताओं, जो उत्तर प्रदेश और राजस्थान में महत्वपूर्ण हैं, को अलग करने के कारण यह उल्टा पड़ गया।
- जातिगत गतिशीलता: सुमन, जो एक प्रमुख दलित नेता हैं, को सपा ने जातिगत हमलों का निशाना बताया। इससे मामला और जटिल हो गया, क्योंकि सपा ने अपने दलित और राजपूत मतदाताओं के बीच संतुलन बनाने की कोशिश की।
- ऐतिहासिक गलत बयानी: सांगा को “गद्दार” के रूप में चित्रित करके, सुमन ने एक जटिल ऐतिहासिक घटना को सरल कर दिया, जिसमें 16वीं सदी में एकीकृत भारतीय पहचान की कमी और सांगा के बाबर के खिलाफ बाद के प्रतिरोध को नजरअंदाज किया गया।
रामजीलाल सुमन के राणा सांगा के बारे में बयान आंशिक रूप से ऐतिहासिक घटनाओं पर आधारित हैं, लेकिन वे भ्रामक और भड़काऊ हैं। यह दावा कि सांगा ने बाबर को “बुलाया” एक अतिशयोक्ति है, और उन्हें “गद्दार” कहना गलत और अपमानजनक है, खासकर उनकी पूजनीय स्थिति को देखते हुए। यह विवाद इतिहास को राजनीतिक हथियार के रूप में इस्तेमाल करने के खतरों को उजागर करता है, क्योंकि इससे हिंसा, धमकियां और सांप्रदायिक तनाव पैदा हुए हैं। सुमन के बयान और करणी सेना जैसे समूहों की अति प्रतिक्रियाएं दोनों ही ध्रुवीकृत समाज में भड़काऊ बयानबाजी के जोखिमों को दर्शाती हैं।




