BY: Yoganand Shrivastva
राजस्थान हाई कोर्ट ने एक दुष्कर्म मामले को निपटाते हुए टिप्पणी की कि विवाह केवल एक सामाजिक परंपरा नहीं, बल्कि एक अत्यंत पवित्र और आध्यात्मिक बंधन है। कोर्ट ने अपने फैसले में स्पष्ट किया कि शादी सांसारिक नियमों से ऊपर होती है और इसे धर्म निभाने का माध्यम माना जाता है।
रेप पीड़िता ने आरोपी से की शादी
राजस्थान में एक रेप पीड़िता ने अपने ही आरोपी से विवाह कर लिया। इस विवाह के बाद हाई कोर्ट ने दर्ज मुकदमा समाप्त कर दिया। कोर्ट ने कहा कि विवाह भारतीय संस्कृति में एक विशेष स्थान रखता है, और इस पवित्र बंधन को मुकदमेबाजी के माध्यम से बाधित नहीं किया जाना चाहिए। हालांकि, अदालत ने यह भी स्पष्ट कर दिया कि भविष्य में अन्य मामलों में इस निर्णय को मिसाल के तौर पर नहीं लिया जा सकता।
जज ने फैसले में क्या कहा?
लाइव लॉ की रिपोर्ट के अनुसार, जज ने कहा,
“विवाह दो व्यक्तियों का केवल शारीरिक मिलन नहीं, बल्कि भावनात्मक और आध्यात्मिक एकता भी है। हिंदू शास्त्रों के अनुसार, विवाह को धर्म (कर्तव्य), अर्थ (संपत्ति) और काम (इच्छाओं) की पूर्ति के एक साधन के रूप में देखा जाता है। यह एक साधारण सामाजिक बंधन नहीं है, बल्कि एक गहन धार्मिक संस्कार है।”
मामला क्या था?
पीड़िता ने पुलिस को बताया था कि उसकी आरोपी से जान-पहचान सोशल मीडिया के जरिए हुई थी। दोस्ती बढ़ने के बाद युवक ने शादी का वादा कर उसके साथ शारीरिक संबंध बनाए। लड़की गर्भवती हो गई, लेकिन आरोपी ने उसे गर्भपात की गोलियां देकर बातचीत बंद कर दी। इसके बाद पीड़िता ने पुलिस में रिपोर्ट दर्ज कराई। पुलिस कार्रवाई के बाद आरोपी शादी के लिए राजी हो गया और दोनों ने विवाह कर लिया।
शादी के बाद आरोपी ने कोर्ट में याचिका दायर कर मुकदमा रद्द करने की मांग की। अदालत ने सुनवाई करते हुए सुप्रीम कोर्ट के कई पुराने फैसलों का हवाला दिया, जिनमें शादी के बाद रेप केस खत्म किए गए थे। कोर्ट ने देखा कि पीड़िता अब आरोपी और उसके परिवार के साथ संतोषजनक वैवाहिक जीवन बिता रही है और केस को आगे बढ़ाने की उसकी कोई इच्छा नहीं है।
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