बिहार फतह की तैयारी में राहुल गांधी, बेगूसराय यात्रा से चुनावी बिगुल का आगाज़

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Preparations to conquer Bihar? Congress blew the election bugle with Rahul-Kanhaiya's Jugalbandi in Begusarai

‘पलायन रोको, नौकरी दो’ कांग्रेस का नया कार्ड

BY: Vijay Nandan

बिहार की राजनीति में एक बार फिर हलचल देखने को मिली जब राहुल गांधी और कन्हैया कुमार एक साथ मंच पर दिखाई दिए। “पलायन रोको, नौकरी दो” यात्रा के तहत जब कन्हैया कुमार बेगूसराय पहुंचे, तो राहुल गांधी ने भी उनकी इस यात्रा में हिस्सा लेकर कांग्रेस की रणनीति को नया आयाम दिया।

बेगूसराय में राहुल की मौजूदगी के क्या हैं संकेत?

बिहार में विधानसभा चुनाव की सरगर्मियों के बीच राहुल गांधी का एक बार फिर राज्य दौरा सियासी मायने रखता है। ‘पलायन रोको, नौकरी दो’ यात्रा में कन्हैया कुमार के साथ उनकी मौजूदगी इस बात का साफ संकेत है कि कांग्रेस बिहार में संगठन को मज़बूती देने के साथ-साथ नए चेहरों को आगे लाकर जमीन पर पकड़ बनाना चाहती है।

बेगूसराय में आयोजित इस जनसभा में राहुल गांधी की मौजूदगी केवल एक औपचारिकता नहीं थी, बल्कि यह कांग्रेस की उस रणनीति की झलक थी जिसमें वो बिहार में फिर से दमदार वापसी का रास्ता तलाश रही है। राहुल गांधी की यह यात्रा उनकी हालिया बिहार यात्राओं में तीसरी है, जो बताती है कि इस बार पार्टी राज्य को हल्के में नहीं ले रही।

राहुल ने बेगूसराय को चुनकर एक खास संदेश भी देने की कोशिश की है—कन्हैया कुमार जैसे जमीनी नेता के साथ खड़े होकर उन्होंने युवा मतदाताओं और परिवर्तन की चाह रखने वालों को सीधा अपील किया है।

बेगूसराय, जो कभी वामपंथ का गढ़ रहा है और जहां से खुद कन्हैया कुमार चुनाव लड़ चुके हैं, वहां राहुल की उपस्थिति ने कांग्रेस के आगामी विधानसभा चुनाव में इरादों को साफ कर दिया है। इस मंच से राहुल ने न सिर्फ बेरोजगारी और पलायन जैसे मुद्दों को उठाया, बल्कि ये भी संकेत दे दिया कि बिहार में पार्टी अब सिर्फ गठबंधन की सवारी नहीं करेगी, बल्कि अपनी सियासी पकड़ भी बनाएगी।

युवाओं को साधने की कोशिश में कांग्रेस

“पलायन रोको, नौकरी दो” यात्रा के जरिए कांग्रेस पहली बार राज्य में एक बड़े स्तर पर युवाओं को जोड़ने की कोशिश कर रही है। यह यात्रा बिहार के कई जिलों से होते हुए बेगूसराय पहुंची, जहां राहुल गांधी की मौजूदगी ने इस अभियान को नया राजनीतिक बल दिया।

क्या चुनाव लड़ेंगे कन्हैया कुमार?

इस सवाल का जवाब फिलहाल औपचारिक रूप से नहीं दिया गया है, लेकिन राजनीतिक संकेत स्पष्ट हैं। कांग्रेस अगर चाहती है कि कन्हैया बिहार की राजनीति में असरदार चेहरा बनें, तो विधानसभा चुनाव लड़वाना एक स्वाभाविक कदम होगा। साथ ही, अगर वह विधानसभा चुनाव नहीं लड़ते, तो भविष्य में उन्हें लोकसभा से फिर मैदान में उतारने की योजना बन सकती है।

बेगूसराय में सियासी गणित और कन्हैया की पकड़

बेगूसराय, जहां से कन्हैया पहले चुनाव लड़ चुके हैं, उनकी सामाजिक और राजनीतिक ज़मीन है। यहां भूमिहार मतदाताओं की बड़ी संख्या है और कन्हैया खुद भी इसी जातीय समूह से आते हैं। कांग्रेस इस सामाजिक समीकरण को अपने पक्ष में करना चाहती है। यह इलाका वामपंथी प्रभाव वाला रहा है, और कन्हैया की पृष्ठभूमि को देखते हुए कांग्रेस यहां अपने संगठन को मजबूती देना चाहती है।

नजरें भविष्य पर

राहुल गांधी और कन्हैया कुमार की जोड़ी कांग्रेस के नए सियासी फॉर्मूले की झलक दिखाती है। युवा चेहरा, स्थानीय मुद्दे और रोजगार जैसे ज्वलंत विषयों पर केंद्रित यह यात्रा कांग्रेस के लिए एक संभावनाओं से भरा प्रयोग है। आने वाले चुनाव में यह प्रयोग कितनी सफलता दिलाएगा, यह तो वक्त बताएगा।

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