BY: Yoganand Shrivastva
नई दिल्ली: भारत की कूटनीतिक रणनीति के जवाब में अब पाकिस्तान ने भी दुनिया भर में अपने पक्ष को रखने की तैयारी कर ली है। हाल ही में भारत सरकार ने एक बहुपक्षीय प्रतिनिधिमंडल की घोषणा की थी, जो अंतरराष्ट्रीय मंचों पर पाकिस्तान की आतंकी गतिविधियों को उजागर करेगा। इसके जवाब में, पाकिस्तान के प्रधानमंत्री शहबाज शरीफ ने भी एक उच्चस्तरीय प्रतिनिधिमंडल गठित किया है, जिसकी अगुवाई पूर्व विदेश मंत्री और पाकिस्तान पीपुल्स पार्टी (PPP) के अध्यक्ष बिलावल भुट्टो ज़रदारी करेंगे।
भारत की पहल से हड़कंप
भारत ने शनिवार को 40 सांसदों की एक टीम बनाई है जिसे सात भागों में विभाजित कर विभिन्न देशों में भेजा जाएगा। इनका मकसद वैश्विक मंचों पर पाकिस्तान के आतंक से जुड़े चेहरे को बेनकाब करना है। इस दल में सत्ता और विपक्ष दोनों के वरिष्ठ सांसद शामिल हैं।
इन सांसदों को सौंपे गए दायित्व:
- शशि थरूर (कांग्रेस): अमेरिका, ब्राज़ील, पनामा, गुयाना, कोलंबिया
- सुप्रिया सुले (एनसीपी): मिस्र, कतर, इथियोपिया, दक्षिण अफ्रीका
- रविशंकर प्रसाद (बीजेपी): मिडिल ईस्ट
- संजय कुमार झा (जेडीयू): जापान और मलेशिया
- कनिमोझी करुणानिधि (डीएमके): रूस और स्पेन
- श्रीकांत शिंदे (शिवसेना): यूएई और अफ्रीका
- जय पांडा (बीजेपी): पश्चिमी यूरोप
केंद्रीय मंत्री किरेन रिजिजू ने जानकारी दी थी कि यह प्रतिनिधिमंडल भारत की “जीरो टॉलरेंस” नीति को आतंकवाद के खिलाफ अंतरराष्ट्रीय स्तर पर प्रस्तुत करेगा।
पाकिस्तान की प्रतिक्रिया: बिलावल को सौंपी गई ज़िम्मेदारी
भारत की रणनीति से घबराए पाकिस्तान ने भी जवाबी योजना बनाई है। पीएम शहबाज शरीफ ने शनिवार को बिलावल भुट्टो को वैश्विक मंचों पर पाकिस्तान का पक्ष रखने के लिए एक प्रतिनिधिमंडल का प्रमुख नियुक्त किया। इस दल में खुर्रम दस्तगीर खान, हिना रब्बानी खार और पूर्व विदेश सचिव जलील अब्बास जिलानी जैसे चेहरे शामिल हैं।
बिलावल ने एक बयान में कहा, “प्रधानमंत्री ने मुझे अंतरराष्ट्रीय मंचों पर शांति और पाकिस्तान की स्थिति को स्पष्ट करने की जिम्मेदारी सौंपी है। यह मेरे लिए सम्मान की बात है।”
क्या असरदार होगी पाकिस्तान की पहल?
भारत की संगठित और सर्वदलीय कूटनीति की तुलना में पाकिस्तान की यह पहल कितनी प्रभावशाली होगी, इस पर सवाल उठ रहे हैं। भारत लंबे समय से अंतरराष्ट्रीय समुदाय को आतंकवाद के खिलाफ एकजुट करने की दिशा में कार्य कर रहा है और उसका यह प्रयास उसी दिशा में एक और मजबूत कदम है। दूसरी ओर, पाकिस्तान की छवि वैश्विक मंचों पर पहले से ही संदिग्ध है, ऐसे में उसका पक्ष कितना प्रभावी होगा यह देखना बाकी है।
भारत ने आतंकवाद के खिलाफ अपने कड़े रुख को और अधिक मुखर करने के लिए एक रणनीतिक अभियान शुरू किया है, जबकि पाकिस्तान इसे केवल एक ‘जवाबी कार्रवाई’ की तरह अपना रहा है। वैश्विक स्तर पर भारत की विश्वसनीयता और पाकिस्तान के रिकॉर्ड को देखते हुए यह कहना गलत नहीं होगा कि पाकिस्तान का यह प्रयास शायद ही उसे “आतंकिस्तान” की छवि से उबार पाए।