सुप्रीम कोर्ट ने बुधवार को एक अहम फैसले में न्यायमूर्ति यशवंत वर्मा के खिलाफ एफआईआर दर्ज कराने की याचिका को खारिज कर दिया। याचिका में आरोप था कि वर्मा के दिल्ली स्थित आवास पर 14 मार्च 2025 को आग लगने की घटना के बाद बड़ी मात्रा में बेहिसाबी नकदी मिली थी।
न्यायमूर्ति अभय एस. ओका और न्यायमूर्ति उज्ज्वल भुयान की पीठ ने याचिकाकर्ता मैथ्यू जे. नेडुंपुरा से कहा कि चूंकि इस मामले में पहले ही तीन सदस्यीय जजों की समिति ने रिपोर्ट सौंप दी है, इसलिए फिलहाल कोई न्यायिक आदेश नहीं दिया जा सकता।
🏛️ क्या है पूरा विवाद?
- 14 मार्च 2025 को न्यायमूर्ति वर्मा के आवास पर आग लगने के बाद कथित रूप से बेहिसाबी नकदी के बंडल बरामद हुए।
- इस घटना ने न्यायिक प्रणाली पर सवाल खड़े कर दिए।
- सुप्रीम कोर्ट ने मामले की जांच के लिए तीन सदस्यीय आंतरिक समिति गठित की थी।
- जांच के बाद न्यायमूर्ति वर्मा को उनके मूल हाईकोर्ट – इलाहाबाद वापस भेज दिया गया।
⚖️ याचिकाकर्ताओं की मांग क्या थी?
- याचिकाकर्ता नेडुंपुरा और उनके दो सहयोगियों का कहना था कि:
- जांच समिति ने विपरीत टिप्पणियां दर्ज की थीं।
- इस आधार पर भारतीय न्याय संहिता 2023 के तहत भ्रष्टाचार और अन्य अपराधों की एफआईआर दर्ज होनी चाहिए।
लेकिन सुप्रीम कोर्ट ने स्पष्ट रूप से कहा कि पहले राष्ट्रपति और प्रधानमंत्री के समक्ष प्रतिनिधित्व किया जाए, और यदि कोई कार्रवाई नहीं होती है, तभी अदालत में दोबारा आया जाए।
“आप पहले प्रधानमंत्री और राष्ट्रपति को आवेदन दें, अगर कोई कार्रवाई नहीं होती तो फिर हमारे पास आइए,” — न्यायमूर्ति ओका।
📝 अब तक की कार्यवाही में क्या हुआ?
- अप्रैल 2025 में भी इसी याचिका को अदालत ने खारिज किया था, क्योंकि उस समय आंतरिक जांच प्रक्रिया चल रही थी।
- 3 मार्च 2025 को जांच समिति ने अपनी रिपोर्ट तत्कालीन मुख्य न्यायाधीश न्यायमूर्ति संजीव खन्ना को सौंप दी थी।
- इसमें कुछ आपत्तिजनक सामग्री की पुष्टि की गई थी।
- 8 मई 2025 को CJI खन्ना ने यह रिपोर्ट राष्ट्रपति और प्रधानमंत्री को भेज दी, साथ में:
- न्यायमूर्ति वर्मा का स्पष्टीकरण
- जांच समिति की विस्तृत टिप्पणियां
🧾 क्या हो सकता है अगला कदम? – महाभियोग की संभावना
सुप्रीम कोर्ट की आंतरिक प्रक्रिया के अनुसार:
- यदि कोई न्यायाधीश CJI द्वारा इस्तीफा देने के कहने पर इस्तीफा नहीं देता, तो
- CJI राष्ट्रपति और प्रधानमंत्री को महाभियोग की प्रक्रिया शुरू करने की सिफारिश कर सकते हैं।
यानी अभी न्यायालय ने एफआईआर के लिए आदेश नहीं दिया है, लेकिन मामला राष्ट्रपति और प्रधानमंत्री के पाले में है, और वे आवश्यक कार्रवाई कर सकते हैं।
⚖️ न्यायपालिका की जवाबदेही पर फिर छिड़ी बहस
इस मामले ने फिर से कुछ अहम सवालों को जन्म दिया है:
- क्या केवल आंतरिक जांच ही पर्याप्त है जब आरोप इतने गंभीर हों?
- क्या न्यायपालिका को भी सार्वजनिक जवाबदेही के दायरे में लाना चाहिए?
- जनता को पारदर्शिता और निष्पक्षता का अधिकार क्यों न मिले, खासकर जब बात जजों पर लगे आरोपों की हो?
✅ निष्कर्ष: अब निगाहें कार्यपालिका पर टिकी हैं
सुप्रीम कोर्ट ने याचिका को खारिज कर यह स्पष्ट कर दिया है कि इस समय कोई सीधा आदेश नहीं दिया जा सकता। अब सारी जिम्मेदारी कार्यपालिका यानी राष्ट्रपति और प्रधानमंत्री की है कि वे इस मामले पर क्या कदम उठाते हैं।
जब तक उनसे कोई प्रतिक्रिया नहीं आती, तब तक महाभियोग या आपराधिक मामला दर्ज करने की प्रक्रिया अधर में बनी रहेगी।





