BY: Yoganand Shrivastva
मुंबई: मां-बेटे का रिश्ता दुनिया का सबसे अनमोल और पवित्र संबंध माना जाता है। इसी रिश्ते को जीवित रखने और परिवार की विरासत को आगे बढ़ाने की कोशिश में एक बेबस मां ने बॉम्बे हाईकोर्ट का दरवाजा खटखटाया है। उनका उद्देश्य है अपने मृत बेटे के फ्रीज किए गए शुक्राणु (स्पर्म) को हासिल कर पाना, ताकि वह किसी माध्यम से अपने बेटे की संतान का सपना साकार कर सके।
कोर्ट ने दिए स्पर्म सुरक्षित रखने के निर्देश
यह संवेदनशील मामला बॉम्बे हाईकोर्ट की जस्टिस मनीष पिताले की एकल पीठ के समक्ष सुनवाई में आया। सुनवाई के दौरान अदालत ने संबंधित फर्टिलिटी सेंटर को स्पष्ट निर्देश दिए हैं कि जब तक याचिका का निपटारा नहीं हो जाता, तब तक मृत युवक के स्पर्म को नष्ट या क्षतिग्रस्त न किया जाए। कोर्ट ने यह आदेश यह कहते हुए दिया कि यदि स्पर्म नष्ट हो गया, तो याचिका का पूरा उद्देश्य ही समाप्त हो जाएगा।
कैंसर पीड़ित बेटे ने मरने से पहले रखवाए थे स्पर्म
याचिकाकर्ता की ओर से दी गई जानकारी के अनुसार, उनका बेटा कैंसर से पीड़ित था और बीमारी के इलाज के दौरान ही उसने अपने शुक्राणुओं को सुरक्षित रखने के लिए एक फर्टिलिटी क्लिनिक में जमा करवाया था। दुर्भाग्यवश, बाद में उसका निधन हो गया। जब बेटे की मां ने क्लिनिक से स्पर्म देने का अनुरोध किया, तो केंद्र ने यह कहते हुए मना कर दिया कि मृत व्यक्ति के स्पर्म को उसके परिजनों को देना नियमों के विरुद्ध है।
मां की भावनात्मक अपील, कानून के समक्ष नई चुनौती
मां ने कोर्ट से अपील की कि वह अपने बेटे की स्मृति और परिवार को आगे बढ़ाने के उद्देश्य से स्पर्म प्राप्त करना चाहती हैं। मामला अब अदालत में विचाराधीन है और यह तय किया जाना बाकी है कि क्या कानूनी और नैतिक दृष्टिकोण से एक मां को यह अधिकार दिया जा सकता है।
जटिल कानूनी और नैतिक पहलू
यह मामला कई कानूनी और नैतिक सवाल खड़े करता है:
- क्या मृतक के परिजनों को बिना उसकी लिखित अनुमति के उसका जैविक पदार्थ (जैसे स्पर्म) उपयोग करने का अधिकार है?
- यदि बेटे ने अपनी मृत्यु से पहले ऐसी किसी योजना या वसीयत का उल्लेख नहीं किया, तो क्या यह कदम न्यायसंगत माना जाएगा?
- क्या एक मां को बेटे के स्पर्म का उपयोग कर संतान प्राप्त करने की अनुमति दी जा सकती है?