भारत सरकार द्वारा राष्ट्रीय जाति जनगणना कराने के फैसले ने एक बड़ी बहस छेड़ दी है, खासकर पसमांदा मुसलमानों को अन्य पिछड़ा वर्ग (OBC) में शामिल करने को लेकर। यह कदम राजनीतिक और सामाजिक दृष्टि से महत्वपूर्ण माना जा रहा है, क्योंकि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने पसमांदा मुसलमानों के उत्थान पर जोर दिया है। 2025 की जाति जनगणना भारत के सामाजिक-राजनीतिक परिदृश्य को बदल सकती है।
इस विस्तृत लेख में हम जानेंगे:
- पसमांदा मुसलमान कौन हैं और उन्हें OBC में शामिल करना क्यों जरूरी है?
- जाति जनगणना में उन्हें OBC मानने के राजनीतिक निहितार्थ
- बिहार और तेलंगाना के सर्वे में मुस्लिम जाति गणना के अलग-अलग तरीके
- आरक्षण नीतियों और सामाजिक न्याय पर बहस
- राजनीतिक नेताओं और विशेषज्ञों की प्रतिक्रियाएं
पसमांदा मुसलमान कौन हैं?
“पसमांदा” (फारसी शब्द, जिसका अर्थ है “पीछे छूट गए”) उन पिछड़े और दलित मुसलमानों को कहा जाता है जो सदियों से सामाजिक और आर्थिक भेदभाव का शिकार रहे हैं। अशराफ मुसलमानों (उच्च जाति के मुसलमान जो अपने को विदेशी मूल का बताते हैं) के विपरीत, पसमांदा मुसलमानों में शामिल हैं:
- अजलाफ (पिछड़े मुसलमान जो दस्तकारी या सेवा के कामों में लगे हैं)
- अरज़ाल (दलित मुसलमान जिन्हें सामाजिक बहिष्कार का सामना करना पड़ता है)
पसमांदा मुसलमानों से जुड़े आंकड़े
- सच्चर कमेटी रिपोर्ट (2006): अनुमान लगाया कि 40% मुसलमान OBC/SC/ST श्रेणी में आते हैं।
- 1871 की जनगणना: बताया कि 81% भारतीय मुसलमान निचली जातियों से थे।
- बिहार जाति सर्वे (2023): 73% मुसलमानों को पसमांदा पाया गया।
- तेलंगाना सर्वे (2025): 81% मुसलमानों को पिछड़ा बताया गया।
2025 की जाति जनगणना इन असमानताओं को आधिकारिक तौर पर मान्यता दे सकती है, जिससे इनके लिए विशेष कल्याणकारी योजनाएं बन सकेंगी।
पसमांदा मुसलमानों को OBC सूची में क्यों शामिल किया जा रहा है?
केंद्र सरकार द्वारा पसमांदा मुसलमानों को OBC में गिनने के पीछे कई कारण हैं:
1. राजनीतिक पहुंच बढ़ाना
- पीएम मोदी ने “सबका साथ, सबका विकास” के तहत पिछड़े मुसलमानों पर ध्यान दिया है।
- BJP, जिस पर अक्सर “मुस्लिम विरोधी” होने का आरोप लगता है, पसमांदा मुसलमानों को अपने वोट बैंक में शामिल करना चाहती है।
2. कानूनी और नीतिगत ढांचा
- मंडल कमीशन (1980) ने कई मुस्लिम समूहों को राज्य OBC सूचियों में शामिल किया था।
- लेकिन राष्ट्रीय जाति जनगणना से इन्हें केंद्रीय सूची में मान्यता मिलेगी, जिससे आरक्षण का लाभ मिल सकेगा।
3. सामाजिक-आर्थिक न्याय
- पसमांदा मुसलमान शिक्षा, रोजगार और राजनीतिक प्रतिनिधित्व में पिछड़े हुए हैं।
- जाति जनगणना में अलग से गिने जाने से उनके लिए आरक्षण और कल्याण योजनाएं बन सकेंगी।
बिहार बनाम तेलंगाना: जाति गणना के अलग-अलग तरीके
दो बड़े राज्यों—बिहार (2023) और तेलंगाना (2025)—ने पसमांदा मुसलमानों की गणना में अलग-अलग रुख अपनाया:
पहलू | बिहार जाति सर्वे | तेलंगाना जाति सर्वे |
---|---|---|
पसमांदा मुसलमानों का % | 73% | 81% |
सरकार | महागठबंधन (RJD-कांग्रेस) | कांग्रेस (रेवंत रेड्डी) |
BJP का नजरिया | “अधिक विश्वसनीय” | “मुसलमानों को खुश करने के लिए संख्या बढ़ाई गई” |
के. लक्ष्मण (BJP OBC मोर्चा प्रमुख) का कहना है कि तेलंगाना का सर्वे “अव्यवस्थित” था, जबकि बिहार का तरीका अधिक व्यवस्थित था।
विवाद और आलोचनाएं
हालांकि पसमांदा मुसलमानों को OBC सूची में शामिल करने का फैसला कुछ लोगों को सही लग रहा है, लेकिन आलोचकों के कुछ सवाल हैं:
1. क्या यह “फूट डालो और राज करो” की रणनीति है?
- IUML सांसद हरिस बीरन का कहना है कि BJP “मुसलमानों को बांटना” चाहती है, न कि उनका उत्थान करना।
- अली अनवर अंसारी (पसमांदा नेता) मांग करते हैं कि दलित मुसलमानों को SC सूची में शामिल किया जाए, न कि सिर्फ OBC में।
2. क्या इससे वास्तविक लाभ मिलेगा?
- सिर्फ जाति जनगणना से आरक्षण या कल्याण योजनाएं नहीं मिलेंगी।
- राजनीतिक इच्छाशक्ति की जरूरत है ताकि नीतियों को लागू किया जा सके।
3. अशराफ मुसलमानों का विरोध
- उच्च जाति के मुसलमान इस कदम का विरोध कर सकते हैं, क्योंकि उनका प्रभाव कम हो सकता है।
आगे क्या? पसमांदा मुसलमानों के लिए रास्ता
2025 की जाति जनगणना एक महत्वपूर्ण मोड़ हो सकती है, अगर:
✔ पसमांदा मुसलमानों को केंद्रीय OBC सूची में अलग उपश्रेणी मिले।
✔ आरक्षण कोटा उनके लिए समायोजित किया जाए।
✔ आर्थिक और शैक्षणिक योजनाएं उनके उत्थान के लिए बनें।
हालांकि, बिना ठोस नीतियों के यह सिर्फ एक प्रतीकात्मक कदम बनकर रह जाएगा।
पसमांदा मुसलमान और जाति जनगणना पर अक्सर पूछे जाने वाले सवाल (FAQs)
1. जाति जनगणना क्या है?
जाति जनगणना भारत में सभी जातियों की गिनती का राष्ट्रीय सर्वे है, ताकि कल्याणकारी नीतियां बनाई जा सकें।
2. पसमांदा मुसलमानों को OBC क्यों माना जा रहा है?
उनकी सामाजिक-आर्थिक पिछड़ेपन की वजह से, ताकि उन्हें OBC आरक्षण का लाभ मिल सके।
3. क्या इससे मुसलमानों को अधिक आरक्षण मिलेगा?
तभी, अगर सरकार अलग से कोटा बनाती है—वर्तमान में OBC आरक्षण 27% तक सीमित है।
4. BJP की राजनीति पर इसका क्या असर होगा?
BJP अपने “मुस्लिम विरोधी” इमेज को कम करके पिछड़े मुसलमानों को अपने पक्ष में करना चाहती है।
5. क्या किसी राज्य ने पहले ही पसमांदा मुसलमानों को OBC सूची में शामिल किया है?
हां, केरल (मप्पिला मुसलमान) और बिहार जैसे राज्यों ने कुछ मुस्लिम समूहों को OBC सूची में रखा है।
निष्कर्ष: क्या यह समावेशी विकास की दिशा में कदम है?
2025 की जाति जनगणना पसमांदा मुसलमानों के लिए एक ऐतिहासिक मोड़ हो सकती है, अगर इसके बाद वास्तविक नीतिगत बदलाव हों। हालांकि राजनीतिक मकसद साफ हैं, लेकिन यह कदम मुस्लिम समाज में जाति-आधारित सुधार की जरूरत को उजागर करता है।
फिलहाल, बहस जारी है—क्या यह सच्चे सशक्तिकरण की ओर ले जाएगा, या सिर्फ एक राजनीतिक हथकंडा बनकर रह जाएगा? इसका जवाब समय और नीति कार्यान्वयन पर निर्भर करेगा।