BY: Yoganand Shrivastva
नई दिल्ली – हाल ही में पहलगाम में हुए आतंकी हमले के बाद पाकिस्तान की ओर से परमाणु हमले की धमकियाँ सुर्खियों में हैं। लेकिन भारत के पास एक ऐसा हथियार है जो किसी भी पारंपरिक परमाणु हथियार से कहीं अधिक ताकतवर है – हाइड्रोजन बम। यह बम अपनी भीषण ऊर्जा और विनाश क्षमता के कारण पूरी दुनिया में सबसे घातक हथियारों में गिना जाता है।
1998 के परमाणु परीक्षण और हाइड्रोजन बम की दस्तक
11 और 13 मई, 1998 को भारत ने पोखरण में पांच भूमिगत परमाणु परीक्षण किए, जिससे विश्वभर में हलचल मच गई। तत्कालीन प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी ने इसे भारत की सुरक्षा नीति में ऐतिहासिक उपलब्धि बताया। इन परीक्षणों में से एक परीक्षण को थर्मोन्यूक्लियर (हाइड्रोजन बम) बताया गया।
हालाँकि, दुनिया के कुछ विशेषज्ञों ने इन परीक्षणों की तीव्रता पर संदेह जताया, लेकिन भारत की वैज्ञानिक बिरादरी का मानना था कि भारत ने 1996 तक ही हाइड्रोजन बम की तकनीक में महारत हासिल कर ली थी। वैज्ञानिक आर. चिदंबरम इसे “98 विंटेज” हाइड्रोजन बम कहते थे।
हाइड्रोजन बम बनाम परमाणु बम: फर्क क्या है?
परमाणु बम नाभिकीय विखंडन (nuclear fission) पर आधारित होता है, जिसमें भारी परमाणु टूटते हैं। वहीं, हाइड्रोजन बम नाभिकीय संलयन (nuclear fusion) पर काम करता है, जिसमें हल्के तत्व मिलकर भारी तत्व बनाते हैं और अत्यधिक ऊर्जा उत्पन्न होती है। यही कारण है कि हाइड्रोजन बम, परमाणु बम से सैकड़ों गुना अधिक शक्तिशाली होता है।
कितनी ताकत है हाइड्रोजन बम में?
हाइड्रोजन बम की ताकत का अंदाजा इसी से लगाया जा सकता है कि यह हिरोशिमा पर गिराए गए बम से 1000 से 1500 गुना ज्यादा शक्तिशाली हो सकता है। 1961 में रूस द्वारा विस्फोट किया गया जार बम अब तक का सबसे शक्तिशाली हाइड्रोजन बम था, जिसकी ताकत 50 मेगाटन TNT के बराबर थी।
भारत और हाइड्रोजन बम
भारत ने 1998 में हाइड्रोजन बम का परीक्षण कर यह जता दिया कि वह परमाणु संलयन आधारित हथियार बनाने की क्षमता रखता है। भारत के अलावा अमेरिका, रूस, फ्रांस, चीन, ब्रिटेन, इज़रायल और उत्तर कोरिया भी ऐसे बम बना चुके हैं।
वैज्ञानिक सिद्धांत और काम करने का तरीका
हाइड्रोजन बम में ड्यूटेरियम (Deuterium) और ट्रिटियम (Tritium) जैसे हाइड्रोजन आइसोटोप्स का उपयोग होता है। ये अत्यधिक तापमान और दबाव में एक-दूसरे से मिलते हैं और भारी तत्व बनाते हैं, जिससे भारी मात्रा में ऊर्जा निकलती है। यह प्रक्रिया वही है जो सूरज में होती है – यानी यह एक कृत्रिम ‘सूर्य’ जैसा विस्फोट करता है।
क्या होता है विस्फोट के समय?
हाइड्रोजन बम विस्फोट के दौरान:
- इतनी तेज़ रोशनी निकलती है कि इंसान अंधा हो सकता है।
- तापमान 50 लाख डिग्री सेल्सियस तक पहुँच जाता है।
- सुपरसोनिक शॉक वेव्स उत्पन्न होती हैं जो कई किलोमीटर तक हर चीज़ को तबाह कर देती हैं।
- यह कुछ ही सेकंड में पूरे शहर को राख में बदल सकता है।
हाइड्रोजन बम का इतिहास
हाइड्रोजन बम के जनक माने जाने वाले वैज्ञानिक एडवर्ड टेलर ने अमेरिका के लिए 1 नवंबर, 1952 को पहला परीक्षण किया था। लेकिन इसकी परिकल्पना 1940 के दशक में जे. रॉबर्ट ओपेनहाइमर और उनके साथियों ने कर ली थी।
हाइड्रोजन बम न केवल सैन्य शक्ति का प्रतीक है, बल्कि यह पूरी मानवता के लिए चेतावनी भी है। वैज्ञानिक लगातार इस बात पर जोर देते हैं कि ऐसे हथियारों का इस्तेमाल केवल आखिरी विकल्प के तौर पर ही किया जाए, क्योंकि इनका प्रभाव पीढ़ियों तक रहता है।