जयशंकर ने कहा कि भारत और चीन दोनों उभरती हुई महाशक्तियां हैं, और ये पड़ोसी भी हैं। इनकी प्रगति की दिशा अलग-अलग है, लेकिन दोनों मिलकर वैश्विक व्यवस्था में गहरी भूमिका निभा रहे हैं।
“चीन का उदय हो रहा है, भारत का भी। अब दोनों अपनी-अपनी जगह और वैश्विक ताकतों के साथ एक नया संतुलन बना रहे हैं,” उन्होंने कहा।
जटिलताओं से भरा रिश्ता
भारत और चीन के रिश्तों में कई परतें हैं, जिनमें शामिल हैं:
- सीमा विवाद जो अब तक सुलझा नहीं
- आर्थिक और व्यापारिक प्रतिस्पर्धा
- राजनीतिक और सामाजिक ढांचे में अंतर
- सभ्यतागत इतिहास और समानांतर विकास
जयशंकर ने कहा कि यह रिश्ता जितना सतह पर दिखता है, उससे कहीं ज्यादा जटिल और बहुआयामी है।
सीमा विवाद बना प्रमुख मुद्दा
उन्होंने स्वीकार किया कि सीमा विवाद दोनों देशों के बीच तनाव का बड़ा कारण है।
“चीन हमारा निकटतम पड़ोसी है, लेकिन एक ऐसा पड़ोसी है जिसके साथ हमारी सीमा अब भी अनिश्चित है। यह हमारे रिश्तों में एक बड़ा कारक है।”
अलग राह पर भारत का विकास
जयशंकर ने कहा कि भारत और चीन दोनों एक अरब से अधिक जनसंख्या वाले देश हैं, लेकिन उनके विकास की दिशा और गति अलग है।
- चीन ने आधुनिकता की शुरुआत पहले की
- भारत ने अपनी राजनीतिक स्थितियों के चलते अलग रास्ता चुना
इस कारण दोनों देशों के दृष्टिकोण और चिंता के बिंदु भी अलग हैं।
यूरोप का चीन को लेकर बदलता नजरिया
जब जयशंकर से पूछा गया कि क्या यूरोप अब भी चीन के प्रति उदासीन है, तो उन्होंने कहा कि पिछले 10-15 वर्षों में काफी बदलाव आया है।
“मैंने देखा है कि यूरोप की सोच में काफी परिपक्वता आई है। अब वे चीन को पहले जैसी नजर से नहीं देखते।”
यूरोप के सभी देश एक दिशा में नहीं
जयशंकर ने यह भी कहा कि यूरोप एकरूप नहीं है। सभी देश एक ही गति या दिशा में चीन को लेकर आगे नहीं बढ़ रहे हैं।
- कुछ देश अधिक सख्त रुख अपना रहे हैं
- जबकि कुछ अब भी नरमी बरत रहे हैं
- इससे स्पष्ट है कि यूरोप के भीतर मतभेद मौजूद हैं
जब एक साक्षात्कारकर्ता ने रूस के साथ यूरोप की पुरानी स्थिति की तुलना की, तो जयशंकर मुस्कराते हुए बोले, “आप बिल्कुल सही कह रहे हैं,” जिससे दर्शकों में हंसी गूंज उठी।
बदलती दुनिया में भारत-चीन संबंध
एस. जयशंकर का यह बयान इस ओर इशारा करता है कि भारत-चीन संबंध केवल रणनीतिक या आर्थिक ही नहीं, बल्कि सभ्यतागत और वैश्विक संतुलन से भी जुड़े हैं।
इन दोनों पड़ोसी देशों की राहें अलग हैं, लेकिन उनके बीच का समीकरण आने वाले दशकों में दुनिया की दिशा तय कर सकता है।