BY: MOHIT JAIN
ग्वालियर की 120 साल पुरानी नैरोगेज ट्रेन अब सिर्फ सफर नहीं, बल्कि इतिहास की सैर कराएगी। यह ट्रेन सिंधिया रियासत के समय 1899 में शुरू हुई थी और कभी ग्वालियर से श्योपुर तक चली जाती थी। हालांकि पांच साल पहले इसे बंद कर दिया गया था, लेकिन अब रेलवे इसे हेरिटेज लुक में पर्यटकों के लिए चलाने की तैयारी कर रहा है। योजना के तहत ट्रेन दो कोच में घोसीपुरा, मोतीझील से होते हुए बामौर गांव तक चलेगी।
रेलवे इस प्रोजेक्ट के तहत इसे इंदौर के पातालपानी–कालाकुंड हेरिटेज ट्रैक के बाद देश का नया हेरिटेज सेक्शन बनाने पर काम कर रहा है। इसके साथ ही यह ऐतिहासिक ट्रैक इतिहास प्रेमियों और रेल यात्रा के शौकीनों के लिए आकर्षण का केंद्र बनेगा।
हेरिटेज बनने की प्रक्रिया और विशेषताएं

गुरुवार को रेलवे बोर्ड की हेरिटेज एक्जीक्यूटिव डायरेक्टर आशिमा मेहरोत्रा और डीडी राजेश कुमार ने ग्वालियर में इस हेरिटेज सेक्शन का सर्वे किया। ग्वालियर लाइट रेलवे (जीएलआर) के नाम से शुरू हुई इस नैरोगेज का ट्रैक कभी ग्वालियर से शिवपुरी, भिंड और श्योपुरकलां तक फैला था।
इस ट्रेन की खासियत इसकी चौड़ाई है। आम तौर पर ब्रॉडगेज 1.6 मीटर और मीटरगेज 1 मीटर होती है, जबकि पातालपानी–कालाकुंड की नैरोगेज 0.7 मीटर की है। ग्वालियर–श्योपुर नैरोगेज इससे भी पतली 0.61 मीटर की है, जो इसे देश की सबसे पतली नैरोगेज बनाती है।
रेलवे अधिकारियों का कहना है कि हेरिटेज स्टेटस मिलने के बाद यह ट्रैक न केवल पर्यटकों को आकर्षित करेगा, बल्कि ग्वालियर की रेल यात्रा और सिंधिया रियासत के इतिहास को भी जीवित रखेगा।





