दशहरा विशेष: रावण असुरों का राजा था, फिर भी क्यों माना गया ब्राह्मण?

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BY: Yoganand Shrivastava

भारत में दशहरा या विजयादशमी का पर्व केवल एक त्योहार नहीं है, बल्कि यह सत्य और असत्य, धर्म और अधर्म के संघर्ष का प्रतीक भी है। इस दिन रावण दहन का महत्व अत्यधिक है। रावण, जो कि असुरों का राजा था, उसे अक्सर लोग केवल एक दुष्ट शासक के रूप में जानते हैं। लेकिन रामायण और पुराणों के अनुसार, रावण केवल असुर नहीं था, बल्कि वह एक ज्ञानी, विद्वान, संगीतज्ञ और योग में निपुण ब्राह्मण योग्य व्यक्ति भी था। रावण का जन्म लंका के असुरों के राजा विश्रवा और माता कुम्भिनी के घर हुआ। उसके पिता विश्रवा ब्राह्मण कुल से थे, इसलिए रावण को जन्म से ही ब्राह्मण योग्य माना गया। रावण ने अपने जीवन की शुरुआत में ही संस्कृत, वेद, मंत्र, आयुर्वेद और युद्ध कला का अध्ययन किया। उसके गुरु पंचमीश्वर और रिष्यशाला ने उसे वेद, मंत्र और युद्ध कला की शिक्षा दी। इसके अलावा रावण ने वीणा वादन, संगीत और योग में भी महारत हासिल की। प्रारंभिक जीवन में उसने धर्म, संस्कार और भक्ति का पालन किया और भगवान शिव की कठोर तपस्या की। शिव ने उसकी तपस्या से प्रभावित होकर उसे वरदान दिया कि वह कई देवताओं के समान शक्तिशाली बन सकता है। इस प्रकार रावण का जन्म, शिक्षा और तपस्या उसे ब्राह्मण योग्य बनाती थी।

राज्य और अहंकार का उदय

रावण के जन्म के बाद उसने लंका पर शासन किया और असुरों का राजा बन गया। उसकी रणकौशल, युद्ध क्षमता, प्रशासनिक क्षमता और विद्या उसे अन्य असुरों से अलग बनाती थी। रावण का साम्राज्य इतना विशाल और शक्तिशाली था कि देवता और अन्य राज्य भी उसकी शक्ति से प्रभावित हुए। उसने शिव की भक्ति और कठोर तपस्या से अपार ज्ञान और बल अर्जित किया। लेकिन विद्या और शक्ति के साथ-साथ उसके अंदर अहंकार और अधर्म का उदय भी हुआ। रावण ने अपनी शक्ति का दुरुपयोग करना शुरू किया और अपने अहंकार में अंध होकर अन्य राजाओं और देवताओं पर अत्याचार, हिंसा और दमन किया। उसकी सबसे बड़ी भूल और अधर्म का प्रतीक था सीता हरण, जिसमें उसने भगवान राम की पत्नी सीता का हरण कर लिया। इस कृत्य ने न केवल उसका पतन निश्चित किया, बल्कि उसे धर्म और नीति की राह से पूरी तरह भटका दिया। हालांकि रावण विद्वान और ब्राह्मण योग्य था, लेकिन उसने अपने ज्ञान और शक्ति का दुरुपयोग किया। यही कारण है कि रावण को ब्राह्मण होने के बावजूद दुष्ट शासक के रूप में याद किया जाता है।

युद्ध और वध: धर्म की विजय

अंततः रावण का पतन भगवान राम के नेतृत्व में हुआ। रामायण के अनुसार, भगवान राम ने राम-सेतु का निर्माण कर लंका पर आक्रमण किया और रावण के साम्राज्य को चुनौती दी। रावण ने अपनी पूरी सेना और शक्ति का प्रदर्शन किया, लेकिन उसके अधर्म और अहंकार के कारण वह धर्म के मार्ग पर नहीं चल सका। विजयदशमी के दिन भगवान राम ने रावण का वध कर सत्य और धर्म की जीत का प्रतीक स्थापित किया। इस घटना से यह संदेश मिलता है कि कितनी भी शक्ति और विद्या हो, यदि उसका उपयोग अधर्म और अहंकार में किया जाए तो उसका विनाश निश्चित है। दशहरा का पर्व हमें यही सिखाता है कि असत्य और अहंकार की शक्ति अस्थायी है, जबकि सत्य, धर्म और मर्यादा की विजय अनिवार्य है। रावण का जीवन हमें यह भी सिखाता है कि ज्ञान, शक्ति और भक्ति का सही उपयोग करना चाहिए, अहंकार और अधर्म से बचना चाहिए, और हमेशा धर्म के मार्ग पर चलना चाहिए। रावण का जीवन केवल चेतावनी नहीं बल्कि प्रेरणा भी है, जो हमें यह याद दिलाता है कि जीवन में सत्य और धर्म की राह हमेशा सर्वोच्च है।

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