हमने इसे पहले भी देखा होगा—स्टीवन स्पीलबर्ग की 1993 की फिल्म जुरासिक पार्क में, जहां ‘डी-एक्सटिंक्शन’ (विलुप्त प्रजातियों को पुनर्जीवित करने) के प्रयोग के बाद हाहाकार मच जाता है। आज के दौर में, जब विज्ञान और तकनीक तेजी से आगे बढ़ रहे हैं, विज्ञान कथा और वास्तविकता के बीच की रेखा धुंधली होती जा रही है।
इसी हफ्ते, टेक्सास की बायोटेक कंपनी Colossal Biosciences ने दावा किया कि उसने डायर वुल्फ को विलुप्ति से वापस ला दिया है। यह प्रजाति करीब 12,500 साल पहले उत्तरी अमेरिका के जंगलों और दक्षिण अमेरिका के सवाना में पाई जाती थी। यानी, हम आइस एज (हिमयुग) की बात कर रहे हैं—जब विशालकाय जानवर, बदलता मौसम और इंसानों का संघर्ष चरम पर था।
आम ग्रे वुल्फ की तुलना में डायर वुल्फ का सीना चौड़ा, दांत बड़े, जबड़े मजबूत और थूथन अधिक उभरा हुआ होता है। यह जानवर तेज दौड़ने वाला नहीं था, लेकिन इसके काटने की शक्ति किसी भी कुत्ते की प्रजाति में सबसे ज्यादा मानी जाती थी।
आज, तीन डायर वुल्फ के बच्चे—रोमुलस, रेमस और खालेसी—अमेरिका के एक 2,000 एकड़ के इकोलॉजिकल रिजर्व में घूम रहे हैं।
वैज्ञानिकों ने कैसे किया यह कमाल?
Colossal Biosciences के वैज्ञानिकों ने 13,000 साल पुराने एक दांत और 72,000 साल पुरानी कान की हड्डी से डीएनए निकालकर उसका अनुक्रमण (सीक्वेंस) किया।
इसके बाद, CRISPR जीन-एडिटिंग तकनीक की मदद से इन नमूनों को ग्रे वुल्फ के जीनोम के साथ मिलाया गया। इस जेनेटिक मटीरियल को एक पालतू कुत्ते के अंडे में डाला गया और भ्रूण को सरोगेट कुत्तियों के गर्भ में विकसित किया गया।
कंपनी ने एक बयान में कहा, “यह हमारे लिए न सिर्फ एक मील का पत्थर है, बल्कि विज्ञान, संरक्षण और मानवता के लिए एक बड़ी छलांग भी। हमारा लक्ष्य साफ था—CRISPR तकनीक का इस्तेमाल कर विलुप्त प्रजातियों को वापस लाना।”
तीन नए जीवन: रोमुलस, रेमस और खालेसी
- रोमुलस और रेमस (नर शावक) का जन्म 1 अक्टूबर 2024 को हुआ। ये अभी चार फीट (122 सेमी) लंबे और 80 पाउंड (36 किलो) वजन के हैं। पूरी तरह विकसित होने पर इनकी लंबाई छह फीट (183 सेमी) तक पहुंच सकती है।
- खालेसी (मादा शावक) का जन्म 30 जनवरी 2025 को हुआ और यह तीन महीने की है।
- इन तीनों में सफेद कोट, बड़े शरीर और चौड़े सिर जैसी विशेषताएं देखी गई हैं।
डायर वुल्फ को वापस क्यों लाया गया?
Colossal Biosciences के वैज्ञानिकों का मानना है कि डी-एक्सटिंक्शन न सिर्फ जेनेटिक इंजीनियरिंग की सीमाओं को तोड़ता है, बल्कि संरक्षण के प्रयासों को भी नई दिशा दे सकता है।

उनका कहना है कि जैव विविधता पृथ्वी पर जीवन के लिए अहम है। अगर हमने तुरंत कदम नहीं उठाए, तो इंसान भी विलुप्त होने वाली प्रजातियों की सूची में शामिल हो सकता है।
क्या उठ रहे हैं सवाल?
हालांकि Colossal Biosciences ने डायर वुल्फ को ‘डी-एक्सटिंक्ट’ बताया है, लेकिन कई विशेषज्ञों का मानना है कि ये सिर्फ जेनेटिकली मॉडिफाइड ग्रे वुल्फ हैं, न कि असली डायर वुल्फ।
इसके अलावा, डायर वुल्फ आधुनिक ग्रे वुल्फ से संबंधित भी नहीं हैं और न ही उनके पूर्वज।
पारिस्थितिकी पर क्या होगा प्रभाव?
- फायदे: डायर वुल्फ जैसे शिकारियों के वापस आने से पारिस्थितिकी संतुलन बहाल हो सकता है। यह शिकार की आबादी को नियंत्रित करके खाद्य श्रृंखला को मजबूत कर सकता है।
- नुकसान: यह आधुनिक ग्रे वुल्फ और कोयोट जैसे शिकारियों के साथ प्रतिस्पर्धा कर सकता है। साथ ही, शिकार की वे प्रजातियां जो इतने बड़े शिकारियों के बिना विकसित हुई हैं, उन पर खतरा मंडरा सकता है।
कुछ लोगों का यह भी कहना है कि विलुप्त हो रही प्रजातियों को बचाने पर ध्यान देना चाहिए, न कि पहले ही विलुप्त हो चुके जानवरों को वापस लाने पर।
भविष्य की योजनाएं
Colossal Biosciences की टीम अभी और भी प्रजातियों को वापस लाने की योजना बना रही है, जिनमें शामिल हैं:
- थाइलासिन (तस्मानियन टाइगर)
- वूली मैमथ
- डोडो पक्षी
कंपनी की चीफ साइंटिफिक ऑफिसर डॉ. बेथ सैपिरो का कहना है, “प्राचीन डीएनए शोध से हम भविष्य के पारिस्थितिकी तंत्र को बेहतर बना सकते हैं।”
क्या आपको लगता है कि विलुप्त प्रजातियों को वापस लाना सही है? कमेंट में बताएं!
सऊदी राजदूत से प्रेम प्रसंग और गिरफ्तारी: मेघना आलम मामले का विश्लेषण