by: vijay nandan
बेंगलुरु: कर्नाटक की राजधानी में एक महिला के साथ अब तक के सबसे चौंकाने वाले साइबर फ्रॉड में से एक सामने आया है। ठगों ने खुद को सरकारी एजेंसियों का अधिकारी बताकर महिला को डिजिटल अरेस्ट किया और महीनों तक मानसिक दबाव में रखकर लगभग 32 करोड़ रुपये हड़प लिए। पुलिस ने मामला दर्ज कर जांच शुरू कर दी है।
कैसे शुरू हुआ ठगी का खेल?
पीड़िता के अनुसार यह घटनाक्रम 15 सितंबर 2024 की सुबह 11 बजे शुरू हुआ, जब उसे एक कॉल आया।
कॉल करने वाले ने खुद को डीएचएल कंपनी का कर्मचारी बताया और आरोप लगाया कि पीड़िता ने मुंबई के अंधेरी सेंटर से एक पार्सल बुक किया था, जिसमें बरामद..
- 3 क्रेडिट कार्ड
- 4 पासपोर्ट
- एमडीएमए जैसे ड्रग्स
पीड़िता ने साफ कहा कि वह तो कभी मुंबई गई ही नहीं। इसी बहाने कॉल को एक कथित सीबीआई अधिकारी के पास ट्रांसफर कर दिया गया।

सीबीआई अधिकारी बनकर किया डराने-धमकाने का खेल
कॉल पर आए नए व्यक्ति ने खुद को सीबीआई का अधिकारी बताया और कहा कि “सबूत आपके खिलाफ हैं।” अगर आपने किसी को बताया तो आपकी जान को खतरा हो सकता है। आपके परिवार को भी फंसाया जा सकता है। डर के माहौल में पीड़िता को कहा गया कि वह किसी से बात न करे और तुरंत स्काइप ऐप इंस्टॉल करे।
स्काइप पर डिजिटल अरेस्ट: कैमरा ऑन, बाहर जाना मना !
ठगों ने स्काइप के माध्यम से महिला पर 24 घंटे नजर रखने का नाटक किया। मोहित हांडा नाम के एक व्यक्ति ने कहा कि वह घर में नजरबंद है और कैमरा बंद नहीं कर सकती। अगले दो दिनों तक उस पर लगातार नजर रखी गई।
फिर प्रदीप सिंह नाम का दूसरा आदमी सामने आया, जिसने कभी नर्म तो कभी डराने वाले तरीके से बात की। इसके बाद राहुल यादव नाम का व्यक्ति लगभग एक हफ्ते तक पीड़िता की डिजिटल निगरानी करता रहा। इस पूरे समय महिला न तो बाहर निकल पाई, न किसी को कुछ बता सकी। वह परिवार से दूर मानसिक तनाव में रही और सिर्फ घर से काम कर पाई।
मानसिक तनाव से हुई बीमार, फिर भी देना पड़ा अपडेट, लगातार धमकियों और दबाव से पीड़िता शारीरिक और मानसिक रूप से कमजोर हो गई। वह एक महीने तक बिस्तर पर रही। डॉक्टरों से इलाज कराया गया। इसके बावजूद स्काइप पर उसे नियमित अपडेट देना पड़ा। ठगों ने उसे विश्वास दिलाया कि 25 फरवरी 2025 तक सारे पैसे वापस कर दिए जाएंगे, लेकिन बाद में नए-नए नामों पर टैक्स और शुल्क के बहाने और राशि मांगते रहे।
पुलिस जांच जारी
पीड़िता की शिकायत पर मामला दर्ज कर लिया गया है। पुलिस डिजिटल अरेस्ट जैसे बड़े साइबर फ्रॉड के इस मामले को गंभीरता से जांच रही है। प्रारंभिक जांच में पता चला है कि यह एक संगठित साइबर गिरोह का काम है, जो सरकारी एजेंसियों का नाम लेकर लोगों को मजबूर करता है।





