BRICS का करारा जवाब: 2022 से शुरू हुई वैश्विक कहानी अब निर्णायक मोड़ पर

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BY: Yoganand Shrivastva

नई दिल्ली: पिछले कुछ वर्षों में वैश्विक मंच पर एक नया अध्याय लिखा जा रहा है। BRICS यानी ब्राजील, रूस, भारत, चीन और साउथ अफ्रीका ने पश्चिमी देशों के दबाव के खिलाफ एकजुट होकर अपनी ताकत दिखाई है। ये देश, जो कभी अपने बीच मतभेदों के कारण अलग-थलग दिखते थे, अब मिलकर वैश्विक अर्थव्यवस्था और शक्ति संतुलन में बदलाव ला रहे हैं। यह कदम केवल कूटनीतिक नहीं, बल्कि दुनिया के आर्थिक और राजनीतिक समीकरण बदलने वाला माना जा रहा है।

2022 से शुरू हुई यह कहानी

2022 में रूस पर लगाए गए पश्चिमी प्रतिबंधों ने BRICS देशों को नई दिशा दी। उस समय रूस के लगभग 300 अरब डॉलर के विदेशी मुद्रा भंडार को पश्चिमी देशों ने जब्त कर लिया था। इस घटना ने विकासशील देशों को सचेत किया कि उनकी संपत्तियां पश्चिमी देशों के नियंत्रण में सुरक्षित नहीं हैं। इसी अनुभव ने BRICS देशों को अमेरिकी डॉलर पर निर्भरता कम करने और आपसी व्यापार बढ़ाने की मुहिम तेज करने के लिए प्रेरित किया।

अमेरिका और यूरोप का दबाव

पश्चिमी देशों ने BRICS देशों पर कई तरह के आर्थिक और राजनीतिक दबाव डाले। अमेरिका ने चीन और भारत पर भारी टैरिफ लगाए, जबकि ब्राजील और साउथ अफ्रीका को भी विभिन्न माध्यमों से चेतावनी दी गई। यूरोपीय संघ ने भी रूस से तेल खरीदने पर भारत को रोकने की कोशिश की। इन सभी कदमों के बावजूद BRICS देशों ने अपनी रणनीति और एकजुटता को मजबूत किया।

BRICS की सामूहिक प्रतिक्रिया

BRICS देशों ने आपसी सहयोग को नई ऊंचाइयों पर ले जाने के कई कदम उठाए हैं।

  • भारत की पहल: राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार अजीत डोवाल ने रूस का दौरा किया और प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने ब्राजील के राष्ट्रपति लूला दा सिल्वा से फोन पर बातचीत कर व्यापार बढ़ाने का लक्ष्य तय किया।
  • रूस की पहल: राष्ट्रपति पुतिन ने भारत, चीन और साउथ अफ्रीका के नेताओं से फोन पर चर्चा की, ताकि सहयोग और व्यापारिक संबंध मजबूत हों।
  • चीन का रुख: चीन ने BRICS में सहयोग को बढ़ावा देने के लिए भारत का दौरा किया और स्पष्ट किया कि संगठन टकराव नहीं, बल्कि सहयोग के लिए है।
  • ब्राजील और साउथ अफ्रीका: ब्राजील के राष्ट्रपति लूला ने अमेरिकी दबाव को खारिज किया और साउथ अफ्रीका ने अपनी संप्रभुता पर जोर दिया।

डी-डॉलराइजेशन: ग्लोबल अर्थव्यवस्था में नया मोड़

BRICS देशों ने डॉलर पर निर्भरता कम करने के लिए महत्वपूर्ण कदम उठाए हैं। भारत और रूस के बीच तेल का व्यापार रुपये में हो रहा है, जबकि चीन और रूस ने व्यापार के 80% हिस्से को रूबल और युआन में निपटाना शुरू किया। BRICS की न्यू डेवलपमेंट बैंक और BRICS पे जैसी पहलें इस दिशा में और मजबूती ला रही हैं।

विशेषज्ञों के अनुसार, अमेरिकी डॉलर का दबदबा जल्द खत्म नहीं होगा, लेकिन BRICS की इस एकजुटता से वैश्विक व्यापार और वित्तीय तंत्र में एक बहुपक्षीय व्यवस्था की दिशा मजबूत हो रही है।

क्यों ऐतिहासिक है BRICS का यह उभार?

BRICS अब केवल एक आर्थिक गठबंधन नहीं है, बल्कि यह पश्चिमी देशों के एकध्रुवीय प्रभुत्व को चुनौती देने वाला एक मंच बन चुका है। यह संगठन वैश्विक दक्षिण के अन्य देशों के लिए भी प्रेरणा का स्रोत है और मल्टीपोलर विश्व की दिशा में बदलाव ला रहा है। अब सवाल यह है कि क्या BRICS अपनी एकजुटता के बल पर इस वैश्विक कहानी को निर्णायक अंजाम तक पहुंचा पाएगा।

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