गर्मी ने जोर पकड़ा है और भोपाल में पानी की किल्लत बढ़ती जा रही है। भोपाल नगर निगम (BMC) के मुताबिक, अप्रैल में पानी के टैंकरों की मांग में 50% की बढ़ोतरी हुई है।
क्या हो रहा है?
- मांग बढ़ी: मार्च में BMC को रोज 100–150 टैंकर की जरूरत पड़ती थी, लेकिन अप्रैल में यह संख्या लगभग 300 तक पहुंच गई।
- टैंकर कम, मांग ज्यादा: पूरे शहर की 21 जोन में सिर्फ 72 टैंकर हैं (हर जोन में औसतन 3–4)। यह संख्या जरूरत से कहीं कम है।
- सबसे बुरा हाल: करोंद, अयोध्या बाईपास, छोला मंदिर, ऐशबाग और कोलार जैसे इलाकों में हालात सबसे खराब हैं।
BMC पूरी मांग क्यों नहीं पूरा कर पा रहा?
BMC का दावा है कि नर्मदा पाइपलाइन में पानी की कमी नहीं, लेकिन वितरण व्यवस्था चरमरा गई है। नतीजा—लोगों को प्राइवेट टैंकर लेना पड़ रहा है, जिनकी कीमत 1,000–1,500 रुपये प्रति टैंकर तक है।
लोग क्या कह रहे हैं?
ऐशबाग के चंदबाद इलाके की रहने वाली शोभा बताती हैं:
“हर गर्मी में यही हाल होता है। पाइपलाइन से पानी नहीं आता, इसलिए हमें टैंकरों पर निर्भर रहना पड़ता है। लेकिन टैंकर भी मुश्किल से मिलते हैं।”
BMC का जवाब
अतिरिक्त आयुक्त वरुण अवस्थी मानते हैं कि 72 टैंकर पर्याप्त नहीं, लेकिन दावा करते हैं कि 80–90% मांग पाइपलाइन से पूरी हो जाती है। हालांकि, लोगों को इस पर भरोसा नहीं, और वे स्थायी समाधान चाहते हैं।
बड़ी तस्वीर क्या है?
यह सिर्फ भोपाल की समस्या नहीं—पूरे भारत में गर्मियों में ऐसे हालात होते हैं। सवाल यह है कि हर साल यही संकट क्यों आता है? कोई स्थायी व्यवस्था क्यों नहीं?
फिलहाल, भोपाल के लोगों को बेहतर इंफ्रास्ट्रक्चर या मॉनसून की बारिश का इंतजार है।
यह मामला क्यों अहम है?
- पानी की कमी से रोजमर्रा की जिंदगी प्रभावित होती है।
- प्राइवेट टैंकरों की ऊंची कीमतें गरीबों पर बोझ डालती हैं।
- जलवायु परिवर्तन के कारण गर्मियां और भीषण हो रही हैं।
आगे क्या?
अगर BMC टैंकरों की संख्या नहीं बढ़ाता या पाइपलाइन व्यवस्था ठीक नहीं करता, तो हालात और बिगड़ सकते हैं। तब तक, भोपालवासियों को गर्मी के इस पानी संकट से जूझना पड़ेगा।
सूचित रहें। सजग रहें।





