भारत में हर साल लाखों लोगों की मृत्यु होती है, लेकिन आधार डाटा में उनकी जानकारी अब भी सक्रिय बनी हुई है। एक आरटीआई के जवाब से सामने आया है कि UIDAI (भारतीय विशिष्ट पहचान प्राधिकरण) ने पिछले 14 वर्षों में सिर्फ 1.15 करोड़ आधार नंबर निष्क्रिय किए हैं, जबकि इस दौरान करीब 11 करोड़ मौतें हो चुकी हैं।
यह आंकड़ा न सिर्फ आधार प्रणाली की खामियों को उजागर करता है, बल्कि फर्जीवाड़े और डाटा दुरुपयोग के खतरे को भी बढ़ाता है।
RTI से खुलासा: कितने आधार नंबर हुए निष्क्रिय?
- भारत में जून 2025 तक कुल 142.39 करोड़ आधार धारक हैं।
- हर साल औसतन 83.5 लाख मौतें दर्ज की जाती हैं (2007-2019 के बीच)।
- लेकिन अब तक केवल 1.15 करोड़ आधार नंबर ही डिएक्टिवेट किए गए हैं।
- यह कुल संभावित मौतों के 10% से भी कम है।
आधार निष्क्रिय करने की प्रक्रिया क्यों है धीमी?
UIDAI के अनुसार, मृत व्यक्ति के आधार नंबर को निष्क्रिय करने की प्रक्रिया बहुत जटिल और प्रमाण-पत्र पर आधारित है। यह मुख्य रूप से इन पर निर्भर करती है:
- राज्य सरकारों द्वारा जारी मृत्यु प्रमाणपत्र
- मृतक के परिजनों द्वारा की गई सूचना
- Registrar General of India (RGI) द्वारा UIDAI को भेजे गए डाटा
प्रक्रिया कैसे काम करती है?
UIDAI ने अगस्त 2023 में नई गाइडलाइंस जारी कीं। इनके अनुसार:
- RGI की ओर से भेजे गए मृत्यु डाटा को आधार डाटाबेस से मैच किया जाता है।
- यदि नाम में 90% मिलान और लिंग में 100% मिलान होता है, तो अगली जांच की जाती है।
- यदि मृत्यु के बाद आधार का कोई उपयोग नहीं हुआ हो, तो UIDAI उसे निष्क्रिय कर देता है।
- यदि बाद में उस आधार से कोई ऑथेंटिकेशन होता है, तो सिस्टम अलर्ट करता है और व्यक्ति को बायोमेट्रिक वेरिफिकेशन के लिए केंद्र पर बुलाया जाता है।
UIDAI के अनुसार, वार्षिक डिएक्टिवेशन डाटा ट्रैक नहीं किया जाता है।
क्या है आधार सैचुरेशन और उसके खतरे?
कुछ राज्यों में आधार सैचुरेशन (प्रत्याशित जनसंख्या के मुकाबले आधार धारकों का प्रतिशत) 100% से अधिक पाया गया है। उदाहरण:
- किशनगंज: 126%
- कटिहार और अररिया: 123%
- पूर्णिया: 121%
- शेखपुरा: 118%
इसके पीछे कारण हो सकते हैं:
- डुप्लिकेट आधार नंबर
- माइग्रेशन के कारण गलत जनसंख्या अनुमान
- मृत व्यक्तियों के आधार नंबर का निष्क्रिय न होना
UIDAI ने स्पष्ट किया कि जब मृत व्यक्तियों के आधार समय पर निष्क्रिय नहीं होते, तो आंकड़ों में वास्तविक जनसंख्या से अधिक आधार धारक दिखाई देते हैं।
RTI से मिले आंकड़े इस बात की ओर इशारा करते हैं कि आधार प्रणाली में मृतकों के डाटा को निष्क्रिय करने की गंभीर कमी है। इससे न केवल डाटा की विश्वसनीयता पर सवाल उठते हैं, बल्कि फर्जीवाड़ा, लाभों की दोहराई गई वसूली, और धोखाधड़ी जैसे गंभीर खतरे भी उत्पन्न होते हैं।





