भारतीय राजनीति की नई तस्वीर, मतभेद तो हैं, पर मनभेद नहीं…!
BY: VIJAY NANDAN
दिल्ली: भारतीय राजनीति में भले ही रोज़ मतभेद दिखाई देते हों, लेकिन आज संसद परिसर से जो तस्वीर सामने आई है, वो भारतीय लोकतंत्र की परिपक्वता और गरिमा की मिसाल बन गई है। बाबा साहेब भीमराव अंबेडकर की जयंती के मौके पर सत्ता पक्ष और विपक्ष के नेता जब एक साथ एक मंच पर आए, तो ना सिर्फ बाबा साहेब को श्रद्धांजलि देकर याद किया. बल्कि उनके बताए सिद्धांतों को भी चरितार्थ किया, ये सिर्फ एक कार्यक्रम नहीं था, ये एक संदेश था — कि हमारे नेताओं के बीच मतभेद हो सकते हैं, लेकिन मनभेद नहीं है. शिष्टाचार बस ही सही हमारे नेताओं का ये प्रदर्शन भारतीय जनमानस को सुकून देने के लिए काफी है. पढि़ए और देखिए भी ये बेहद खास रिपोर्ट पर…

भारतीय लोकतंत्र की यह तस्वीर निश्चित रूप से सबसे सशक्त और प्रेरणादायक क्षणों में से एक कही जा सकती है। ऐसे दृश्य विरले ही देखने को मिलते हैं, जब सत्ता पक्ष और विपक्ष के नेता एक मंच पर इस आत्मीयता, शिष्टाचार और सौहार्द के साथ एक-दूसरे के साथ व्यवहार करते दिखें.. मानो किसी एक ही विचारधारा से जुड़े हों।
वीडियो हाईलाइट्स
- प्रेरणा स्थल पर नेताओं की ‘प्रेरणा’
- अंबेडकर जयंती पर एकजुट दिखे नेता
- सत्तापक्ष-विपक्ष ने दिखाया लोकतांत्रिक सौहार्द
- संसद परिसर में शिष्टाचार की प्रेरणादायक तस्वीर
- राजनीतिक मतभेदों से ऊपर उठा लोकतंत्र !
- बाबा साहेब को नमन, लोकतंत्र को सम्मान !
- नेताओं की एकता ने पेश की लोकतंत्र की मिसाल
- अंबेडकर की सोच के सामने विचारधारा झुकी !
- हमारे लोकतंत्र की सबसे खूबसूरत तस्वीर !
- मतभेद तो हैं, पर मनभेद नहीं…!
- क्या भारत की राजनीति बदल रही है..?
- ये तस्वीर, आपका भी दिल छू लेगी ?
मौका था डॉ. भीमराव अंबेडकर की जयंती का। संसद भवन परिसर स्थित प्रेरणा स्थल पर देश भर के प्रमुख राजनेताओं ने ‘भारत रत्न’ बाबा साहेब अंबेडकर को श्रद्धांजलि अर्पित की। इस पावन अवसर पर सत्ता पक्ष और विपक्ष के बड़े नेता एक साथ एक मंच पर दिखे. इनमें केंद्रीय मंत्री किरण रिजिजू, केंद्रीय मंत्री केंद्रीय मंत्री अर्जुन राम मेघवाल, नेता प्रतिपक्ष राहुल गांधी, सांसद सोनिया गांधी, कांग्रेस अध्यक्ष मल्लिकार्जुन खरगे, दिल्ली की मुख्यमंत्री रेखा गुप्ता समेत अन्य कई सांसद और नेता मौजूद थे। लेकिन जो दृश्य सबसे अधिक ध्यान खींचता है, वह था इन नेताओं के बीच दिखा आपसी सम्मान, शिष्टाचार और लोकतांत्रिक मर्यादा। हाथ जोड़कर एक-दूसरे का अभिवादन, मुस्कान के साथ हाथ मिलाना, और मंच पर ससम्मान बैठने के लिए आग्रह — यह सब भारतीय लोकतंत्र की परिपक्वता और गरिमा का उदाहरण था। इस पल ने न केवल भारतीय राजनीति की गरिमा को बढ़ाया, बल्कि यह भी दर्शाया कि वैचारिक मतभेदों के बावजूद, जब बात देश की साझा विरासत और महान विचारकों के सम्मान की हो, तो सभी एक मंच पर आ सकते हैं। यह दृश्य आने वाली पीढ़ियों को यह सीख देता है कि लोकतंत्र की असली ताकत केवल बहस और मतभेद में नहीं, बल्कि आपसी सम्मान और संवाद में है। हमारे नेताओं का ये व्यवहार ये दिखाता है कि हमारे संविधान निर्माताओं ने जिस भारत की कल्पना की थी — एक ऐसा देश जो विविधताओं में एकता को गले लगाता है — वह सपना आज भी जीवित है। भले ही राजनीतिक मंचों पर मतभेद और वाद-विवाद आम हो, लेकिन बाबा साहेब अंबेडकर की वह सोच — जो समाज को जोड़ने, समानता स्थापित करने और सभी को संविधान के एक सूत्र में पिरोने की बात करती है — वह आज भी नेताओं की संवेदना में झलकती है। यह दृश्य आने वाली पीढ़ियों के लिए एक सबक है — कि लोकतंत्र की असली ताकत केवल विचारों की लड़ाई में नहीं, बल्कि विचारों के सम्मान और संवाद में है। हम उम्मीद करते हैं कि आने वाले समय में भी हमारे राजनेता इस तरह की मिसाल पेश करते रहेंगे.
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