1978 का कानून अब क्यों बना मुसीबत? अरुणाचल में मचा घमासान

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1978 का कानून

ईसाई समुदाय का विरोध

6 मार्च को अरुणाचल प्रदेश के ईसाई समुदाय ने एक ऐसे कानून के खिलाफ प्रदर्शन किया, जो जल्द ही लागू होने वाला है और धर्मांतरण पर रोक लगाता है। अरुणाचल क्रिश्चियन फोरम (ACF) ने बोरोम में, जो राज्य की राजधानी ईटानगर के पास है, एक रैली निकाली और अरुणाचल प्रदेश फ्रीडम ऑफ रिलीजन एक्ट (APFRA) 1978 का विरोध किया। प्रदर्शनकारियों का कहना था कि यह कानून इस आदिवासी राज्य में धार्मिक मतभेदों को और बढ़ाएगा, जो चीन की सीमा से सटा है और अभी तक शांत रहा है।

ACF के अध्यक्ष तारह मिरी के मुताबिक, बोरोम में दो लाख से ज्यादा सभी संप्रदायों के ईसाई जमा हुए। उनका आरोप है कि यह कानून राज्य के ईसाइयों को नुकसान पहुंचाएगा और उनकी धार्मिक आजादी को छीनेगा। ACF इस कानून को लागू करने के खिलाफ लंबे समय से लड़ाई लड़ रहा है। सितंबर 2024 में गौहाटी हाई कोर्ट की ईटानगर बेंच ने एक याचिका पर सुनवाई के बाद सरकार को छह महीने में नियम बनाने का निर्देश दिया था। यह याचिका राज्य सरकार की ओर से इस कानून को लागू न करने की “नाकामी” के खिलाफ थी।


कानून का इतिहास और ACF की मांग

1978 में राज्य के पहले मुख्यमंत्री पी.के. थुंगोन ने इस कानून को पास किया था, लेकिन बाद की सरकारें इसे लागू नहीं कर पाईं। अब मार्च के आखिर तक की समय सीमा तय होने के साथ ACF ने इसे रद्द करने की मांग तेज कर दी है। मिरी ने राज्य के गृह और स्वदेशी मामलों के मंत्री मामा नतुंग से मुलाकात के बाद कहा, “मंत्री ने बताया कि राष्ट्रपति की मंजूरी के कारण कानून को रद्द करना मुश्किल है और कोर्ट के आदेश के चलते इसे लागू करना जरूरी है। हालांकि, उन्होंने एक समावेशी कमेटी बनाने का भरोसा दिया। उन्होंने 6 मार्च की रैली रोकने को कहा, लेकिन हम इसे जारी रखेंगे।”

मिरी ने चेतावनी दी, “अगर इस महीने के अंत तक APFRA रद्द नहीं हुआ, तो हम एक जनमत संग्रह रैली करेंगे। अगर इसे रद्द नहीं किया गया, तो इसे पहले की तरह निष्क्रिय ही रखा जाए।” ACF के महासचिव जेम्स टेची तारा ने कहा, “आस्था बदलना हर किसी का निजी फैसला है।” उनका कहना है कि इस कानून से दुश्मनी बढ़ेगी।


सरकार का रुख

अरुणाचल प्रदेश की बीजेपी सरकार का कहना है कि यह कानून किसी खास धर्म के खिलाफ नहीं है। मंत्री नतुंग ने कहा कि राज्य प्रशासन सभी धार्मिक नेताओं और हितधारकों के साथ “सलाह-मशविरे वाली बैठकें” करेगा। मुख्यमंत्री पेमा खांडू ने भी लोगों से APFRA को गलत न समझने की अपील की और कहा कि हाई कोर्ट के निर्देश के मुताबिक इसके नियम तैयार किए जा रहे हैं। उन्होंने कहा, “संबंधित विभाग और राज्य सरकार कोर्ट के आदेश का पालन कर रही है और शुरुआती ड्राफ्ट तैयार हो रहा है।”

ACF के प्रतिनिधियों से बात करते हुए पूर्व गृह मंत्री जेम्स लोवांगचा वांगलट ने कहा, “APFRA का पुनर्जनन चिंता का विषय है, खासकर अरुणाचल जैसे रणनीतिक राज्य में, जो भारत-चीन-म्यांमार की सीमाओं के संगम पर है। जब चीन अरुणाचल को ‘दक्षिणी तिब्बत’ कहकर अपना दावा ठोक रहा है, तो स्थानीय परिस्थितियों को संवेदनशीलता और दूरदर्शिता से संभालना जरूरी है।”

शिक्षा मंत्री और सरकारी प्रवक्ता पीडी सोना ने कहा, “लोगों में इस कानून को लेकर भ्रम है, हर कोई अपनी कहानी बना रहा है। कोर्ट के निर्देश के चलते सरकार एक कमेटी बनाएगी, जिसमें हमारे विधायक, अलग-अलग धर्मों के नेता और गृह मंत्री शामिल होंगे। यह कमेटी नियम ऐसे बनाएगी कि किसी के साथ भेदभाव न हो।”


ACF की अगुआई में आंदोलन

17 फरवरी को ACF ने इस कानून के खिलाफ आठ घंटे की भूख हड़ताल शुरू की थी। चार दिन बाद नतुंग के साथ उनकी बैठक “बेनतीजा” रही।


स्वदेशी समूह का समर्थन

जहां ACF इस कानून का विरोध कर रहा है, वहीं इंडिजिनस फेथ एंड कल्चरल सोसाइटी ऑफ अरुणाचल प्रदेश (IFCSAP) इसका समर्थन कर रही है और इसे जल्द लागू करने की मांग कर रही है। उन्होंने ACF की रैलियों के जवाब में समर्थन रैलियां निकालीं। IFCSAP के अध्यक्ष डॉ. एमी रूमी ने पिछले हफ्ते एक रैली में कहा, “यह कानून स्वदेशी आस्था की रक्षा और संरक्षण के लिए है, किसी धर्म के खिलाफ नहीं। मेरे कई ईसाई दोस्त और परिवार वाले भी इसके खिलाफ नहीं हैं।”

रूमी ने तुरंत लागू करने की मांग करते हुए कहा, “मुख्यमंत्री पेमा खांडू को चिंता करने की जरूरत नहीं, क्योंकि राज्य के ज्यादातर लोग इसके पक्ष में हैं।” IFCSAP के मुताबिक, APFRA राज्य की स्वदेशी आस्था और सांस्कृतिक धरोहर को बचाने के लिए जरूरी है।

1978 का कानून

APFRA क्या है?

APFRA “बल, प्रलोभन या धोखे” से धर्मांतरण पर रोक लगाता है और “किसी को जबरदस्ती एक धर्म से दूसरे में बदलने या कोशिश करने” की सजा के तौर पर अधिकतम 10,000 रुपये जुर्माना या दो साल की जेल तय करता है। यह भी जरूरी करता है कि हर धर्मांतरण की सूचना जिले के डिप्टी कमिश्नर को दी जाए, वरना इसमें शामिल शख्स को सजा होगी।

1957 में राज्य में पहला चर्च बनने के बाद से ईसाई आबादी तेजी से बढ़ी है, जिससे “स्वदेशी धर्म और संस्कृति” के लिए खतरे की चर्चा शुरू हुई। 1971 की जनगणना में ईसाइयों की हिस्सेदारी 0.79% थी, जो 2011 में बढ़कर 30.26% हो गई।


स्वदेशी आस्था का पक्ष

ईसाई समुदाय जहां APFRA का विरोध कर रहा है, वहीं स्वदेशी आस्था के लोग इसका समर्थन कर रहे हैं। उन्होंने भी रैली निकाली और इसे जल्द लागू करने की मांग की। दोइमुख में “सद्भावना पद यात्रा” निकालकर उन्होंने सरकार के फैसले का समर्थन किया।

IFCSAP की महासचिव माया मुर्तेम ने कहा, “यह कानून किसी धर्म के खिलाफ नहीं है। यह हम पर भी लागू होता है। नियम सिर्फ जबरदस्ती और लालच से होने वाले धर्मांतरण के खिलाफ होंगे। जो इसका विरोध कर रहे हैं, वे गलत इरादे दिखा रहे हैं। हमें इसकी जरूरत है, क्योंकि अभी धर्मांतरण का कोई रिकॉर्ड नहीं रखा जा रहा। यह कानून हर धर्मांतरण को दर्ज करने की जरूरत बनाएगा।”

संगठन के अध्यक्ष पई दावे ने शिकायत की, “यह कानून 1978 में स्वदेशी आदिवासी समाज के भले के लिए लाया गया था। बार-बार मांग के बावजूद इसे लागू नहीं किया गया।” वहीं, रंगफ्रा फेथ प्रमोशन सोसाइटी (RFPS) के सचिव कमजई ताइस्म ने कहा, “यह कानून अरुणाचल के सभी धर्मों के लोगों के लिए है। यह सबकी भलाई करेगा। यह असंवैधानिक नहीं है।”


अरुणाचल की धार्मिक विविधता

अरुणाचल की कई जनजातियां प्रकृति पूजा, पूर्वज पूजा से लेकर महायान और थेरवाद बौद्ध धर्म तक विभिन्न मान्यताएं और रीति-रिवाज मानती हैं। समय के साथ डोनी पोलो की पूजा इन प्रथाओं का एक संस्थागत हिस्सा बन गई है। राज्य में मुख्य रूप से बौद्ध, ईसाई और स्वदेशी आस्था के लोग रहते हैं।

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