BY: MOHIT JAIN
हिंदू धर्म में शरद पूर्णिमा सबसे शुभ मानी जाती है। इसे कोजागरी पूर्णिमा, रास पूर्णिमा और कोजागरी लक्ष्मी पूजा के नाम से भी जाना जाता है। इस दिन चंद्रमा अपनी 16 कलाओं से पूर्ण होकर पृथ्वी पर प्रकाश बिखेरता है। इसलिए इसे ‘अमृत वर्षा’ वाली रात भी कहा जाता है।
शुभ तिथि और मुहूर्त
साल 2025 में शरद पूर्णिमा 6 अक्टूबर, सोमवार को मनाई जाएगी।
- आरंभ: 6 अक्टूबर दोपहर 12:23 बजे
- समापन: 7 अक्टूबर सुबह 9:16 बजे
इस रात को खुले आसमान के नीचे खीर रखना और चंद्रमा की पूजा करना अत्यंत शुभ माना जाता है।
अर्घ्य देने के लाभ
- मानसिक शांति: तनाव कम और मन स्थिर होता है
- स्वास्थ्य लाभ: शरीर और मन में ठंडक का असर
- सुख-शांति: परिवार में शांति और मधुर संबंध
- सुख-समृद्धि: जीवन में धन, वैभव और सकारात्मक ऊर्जा
- चंद्र दोष का शमन: मानसिक अस्थिरता और चिंता कम होती है
- सौभाग्य में वृद्धि: जीवन में शुभ अवसर और प्रेम बढ़ता है
चंद्रमा की किरणें और अर्घ्य

चंद्रमा की रोशनी इस रात अमृत समान पवित्र मानी जाती है। खीर को इस चांदनी में रखना शुभ माना जाता है, और सुबह इसका सेवन करने से शरीर और मन को शीतलता, शांति और संतुलन मिलता है।
अर्घ्य देने की विधि:
- एक कलश या लोटे में जल भरें, इसमें दूध, चावल, मिश्री, चंदन और सफेद फूल डालें।
- स्नान करके स्वच्छ वस्त्र पहनें।
- चंद्र उदय के समय मुख करके जल अर्पित करें।
- मंत्र जप: “ऊं श्रीं ह्रीं क्लीं त्रिभुवन महालक्ष्म्यै अस्माकं दारिद्र्य नाशय प्रचुर धनं देहि देहि क्लीं ह्रीं श्रीं ऊं” – 108 बार
शरद पूर्णिमा की खासियत
शरद पूर्णिमा, जिसे कोजागरी पूर्णिमा और रास पूर्णिमा भी कहा जाता है, आश्विन मास की पूर्णिमा को आती है। इस रात चंद्रमा अपनी 16 कलाओं से पूर्ण होकर धरती पर अमृत वर्षा करता है। मान्यता है कि इस रात चंद्रमा की किरणों में औषधीय और स्वास्थ्यवर्धक गुण होते हैं। इसलिए परंपरा है कि खीर को खुले आकाश में रखकर सुबह उसका सेवन किया जाए। यह स्वास्थ्य, सौभाग्य और समृद्धि का प्रतीक माना जाता है।
मान्यता: मां लक्ष्मी का पृथ्वी भ्रमण

शरद पूर्णिमा की रात को मां लक्ष्मी धरती पर आती हैं और अपने भक्तों को धन-धान्य और समृद्धि का आशीर्वाद देती हैं। इस रात जागरण करके माता लक्ष्मी की पूजा करना अत्यंत शुभ माना जाता है। खासतौर से व्यापारी वर्ग इस दिन को लक्ष्मी की कृपा पाने का उत्तम अवसर मानता है।
भगवान श्रीकृष्ण का महारास

धार्मिक मान्यताओं के अनुसार, आज से करीब 5200 वर्ष पूर्व, भगवान श्रीकृष्ण ने शरद पूर्णिमा पर 16108 गोपियों के साथ वृंदावन में महारास किया था। इसे रासलीला भी कहा जाता है। कहा जाता है कि इस रासलीला को देखने के लिए चंद्रमा भी ठहर गया था।
भगवान शिव का गोपी रूप
पुराणों में वर्णन है कि भगवान शिव भी इस अद्भुत महारास के दर्शन करने आए। लेकिन महारास में पुरुषों का प्रवेश वर्जित था। इसलिए भगवान शिव ने श्रृंगार कर गोपेश्वर बनकर रासलीला का दर्शन किया।
शरद पूर्णिमा केवल एक धार्मिक त्यौहार नहीं, बल्कि स्वास्थ्य, मानसिक शांति और परिवारिक समृद्धि का प्रतीक भी है। इस रात जागरण कर चंद्रमा की पूजा करने से घर में लक्ष्मी का वास होता है और सकारात्मक ऊर्जा का प्रवाह बढ़ता है।