BY: Yoganand Shrivastava
नई दिल्ली। सुप्रीम कोर्ट के निर्देश के बाद दिल्ली क्राइम ब्रांच ने केंद्रीय जांच ब्यूरो (CBI) के दो पूर्व अधिकारियों—विनोद कुमार पांडे (तत्कालीन निरीक्षक) और नीरज कुमार (तत्कालीन संयुक्त निदेशक)—के खिलाफ एफआईआर दर्ज की है। यह मामला 1999 से 2001 के बीच व्यापारी विजय कुमार अग्रवाल और उनके सहयोगियों से जुड़े एक पुराने प्रकरण से संबंधित है। आरोप है कि इन अधिकारियों ने पद का दुरुपयोग करते हुए जांच के दौरान सबूतों में हेरफेर की, दस्तावेजों को गलत तरीके से तैयार किया और धमकाने जैसी हरकतें कीं। सुप्रीम कोर्ट ने सितंबर 2025 में इस मामले की जांच को फिर से शुरू करने और एफआईआर दर्ज करने के निर्देश दिए थे, यह कहते हुए कि इतने गंभीर आरोपों की जांच दो दशक से लंबित रहना न्याय के साथ खिलवाड़ है।
क्राइम ब्रांच द्वारा दर्ज एफआईआर संख्या 281 में शिकायतकर्ता शीश राम सैनी ने आरोप लगाया कि 1999-2000 में नारायणा स्थित उनके कार्यालय पर छापे के दौरान अधिकारियों ने बिना वैध दस्तावेज के कंपनी के रिकॉर्ड जब्त किए और बाद में सरकारी रिकॉर्ड में जालसाजी कर फर्जी दस्तावेज तैयार किए। इस एफआईआर में आईपीसी की धारा 166, 218, 463, 465, 469 और 120बी के तहत केस दर्ज हुआ है। वहीं, एफआईआर संख्या 282, जिसे व्यापारी विजय कुमार अग्रवाल ने दर्ज कराया, 2001 की एक घटना पर आधारित है। इसमें कहा गया है कि नीरज कुमार और विनोद पांडे ने सीबीआई कार्यालय में उन्हें धमकाया, गाली-गलौज की और उनके भाई को कानूनी मामला वापस लेने के लिए दबाव बनाया। इस एफआईआर में आईपीसी की धारा 166, 341, 342 और 506 के तहत अपराध जोड़े गए हैं।
सुप्रीम कोर्ट ने इस मामले में स्वतंत्र जांच का आदेश देते हुए कहा कि यदि पूछताछ के दौरान आवश्यकता हो, तो अधिकारी गिरफ्तारी कर सकते हैं। कोर्ट ने इसे गंभीर पेशेवर दुराचार मानते हुए कहा कि प्रारंभिक साक्ष्य संज्ञेय अपराधों को दर्शाते हैं। फिलहाल दिल्ली क्राइम ब्रांच ने जांच शुरू कर दी है और आरोपियों को सहयोग करने के निर्देश दिए हैं। यह कार्रवाई सीबीआई जैसे प्रतिष्ठित संस्थान में कथित भ्रष्टाचार और सत्ता के दुरुपयोग के एक लंबे समय से अटके मामले को दोबारा खोलने की दिशा में बड़ा कदम मानी जा रही है।