BY: Yoganand Shrivastva
भोपाल: 6 अक्टूबर को बिजली उपभोक्ता संगठन (एमईसीए) के बैनर तले प्रदेशभर से लोग डॉ. अंबेडकर पार्क में जुटेंगे। यह प्रदर्शन स्मार्ट मीटर लगाए जाने के विरोध में होगा। उपभोक्ताओं की प्रमुख मांग है कि सरकार 200 यूनिट बिजली मुफ्त दे, बिजली के रेट कम करे और स्मार्ट मीटर की अनिवार्यता को वापस ले। संगठन की बैठक शुक्रवार को हुई, जिसमें आंदोलन की रूपरेखा तैयार की गई।
उपभोक्ताओं का कहना है-
संगठन की प्रदेश संयोजक रचना अग्रवाल और लोकेश शर्मा ने बताया कि यह आंदोलन न तो औपचारिक है और न ही किसी राजनीतिक स्वार्थ से जुड़ा है, बल्कि आम जनता की रोजमर्रा की जिंदगी और आर्थिक बोझ से जुड़ा प्रश्न है। हाल ही में स्मार्ट मीटर से जुड़े कई नकारात्मक अनुभव सामने आए हैं, जिनसे उपभोक्ता परेशान हैं। बैठक में मुदित भटनागर, सतीश ओझा और आरती शर्मा सहित कई पदाधिकारी मौजूद रहे।
बढ़े हुए बिजली बिलों से हाहाकार
प्रदेशभर से उपभोक्ताओं ने बताया कि स्मार्ट मीटर लगने के बाद उनके बिजली बिल असामान्य रूप से बढ़ गए हैं। भोपाल में कई परिवारों को 10, 20 और 29 हजार तक के बिल आए। ग्वालियर में एक छोटे घर का मासिक बिल 5 हजार रुपये तक पहुंच गया, जबकि कुछ उपभोक्ताओं को एक ही महीने में दो-दो बार 6-6 हजार के बिल मिले। गुना, सीहोर, सतना, इंदौर, देवास, दमोह, जबलपुर और विदिशा में भी ऐसी शिकायतें मिल रही हैं। यहां तक कि गुना जिले के एक किसान को 2 लाख से ज्यादा का बिल थमा दिया गया। लोग मजबूरी में गहने-बर्तन बेचकर बिल भर रहे हैं।
क्यों हो रहा विरोध?
- स्मार्ट मीटर प्री-पेड सिस्टम पर चलते हैं, यानी मोबाइल रीचार्ज की तरह पहले पैसे जमा करने होंगे।
- मीटर का कंट्रोल केंद्रीय सर्वर से होता है, जिससे उपभोक्ताओं की यूनिट बदलने की आशंका बनी रहती है।
- टाइम ऑफ डे (TOD) प्रणाली से दिन और रात के हिसाब से अलग-अलग रेट लागू होते हैं।
- खराबी आने पर उपभोक्ता को नया मीटर लगवाने का पूरा खर्च उठाना पड़ता है।
- बिल न भरने पर बिजली तुरंत काट दी जाती है और दोबारा जोड़ने पर 350 रुपये अतिरिक्त देने पड़ते हैं, जबकि पहले से जमा सिक्योरिटी राशि का उपयोग नहीं किया जाता।
- उपभोक्ताओं को बिजली बिल की हार्ड कॉपी नहीं दी जाती, जिससे ग्रामीण और तकनीकी जानकारी न रखने वाले लोग परेशानी में पड़ जाते हैं।
- हर किसी के पास स्मार्टफोन नहीं है, ऐसे में सिर्फ बिजली का बिल भरने के लिए मोबाइल खरीदना मजबूरी बन सकता है।
- उपभोक्ता और बिजली कंपनी के बीच अनुबंध पोस्टपेड मीटर के लिए है, लेकिन अब बिना सहमति के प्रीपेड मीटर थोपे जा रहे हैं।
कांग्रेस भी कर चुकी है विरोध
इससे पहले कांग्रेस भी स्मार्ट मीटर को लेकर आंदोलन कर चुकी है। संगठन का कहना है कि यह सिर्फ तकनीकी सुधार का मामला नहीं है, बल्कि आम उपभोक्ताओं की जेब और रोजमर्रा की जिंदगी से सीधा जुड़ा मसला है।