BY: Yoganand Shrivastva
ग्वालियर: ग्वालियर हाईकोर्ट ने भूमि मुआवजे के लिए दायर एक रिट पिटीशन को खारिज कर दिया और अपीलकर्ता त्रिवेणी बाई पर 25,000 रुपये का जुर्माना भी लगाया। कोर्ट ने निर्देश दिए कि यह राशि दो माह के भीतर जुवेनाइल जस्टिस फंड में जमा की जाए।
राज्य सरकार की ओर से यह बताया गया कि विवादित भूमि पहले ही सार्वजनिक प्रयोजन के लिए अधिग्रहित की जा चुकी है और मुआवजा भी प्रदान किया जा चुका है। कोर्ट ने सुप्रीम कोर्ट के दो अहम फैसलों का हवाला देते हुए कहा कि इस तरह के मामलों में एक बार मुआवजा मिलने के बाद नया दावा स्वीकार नहीं किया जा सकता। कोर्ट ने पाया कि अपीलकर्ता तकनीकी आधारों का इस्तेमाल करके बार-बार लाभ उठाने की कोशिश कर रही हैं, इसलिए यह अपील कानून का दुरुपयोग है।
मामला और पृष्ठभूमि
यह विवाद भिंड जिले के गोहद क्षेत्र से जुड़ा है। 1959 से वहां चारागाह के रूप में दर्ज भूमि पर 1977-78 में सड़क और सरकारी स्कूल का निर्माण कर दिया गया था। 1978 में त्रिवेणी बाई के पूर्वज देवीराम ने इस भूमि पर स्वामित्व का दावा किया था। प्रारंभिक ट्रायल कोर्ट ने उनका दावा खारिज कर दिया, लेकिन 1979 में अपील के दौरान डिक्री देवीराम के पक्ष में गई।
मुआवजे का निर्धारण
हाईकोर्ट ने 2010 में भूमि के मुआवजे का निर्धारण करने के निर्देश दिए। सीमांकन के बाद 5.96 लाख रुपए की राशि तय की गई और यह मुआवजा 2011 और 2015 में त्रिवेणी बाई को भुगतान किया जा चुका है।
इसके बावजूद त्रिवेणी बाई ने नए भूमि अधिग्रहण कानून 2013 के आधार पर पुनः मुआवजे की मांग की। ग्वालियर हाईकोर्ट ने इसे स्वीकार नहीं किया और अपीलकर्ता पर जुर्माना लगाते हुए मामला खारिज कर दिया।