BY: Yoganand Shrivastva
इंदौर: शहर में कुत्ते के काटने से एक मजदूर की मौत ने प्रशासनिक लापरवाही और गरीब परिवारों की हालात पर गंभीर सवाल खड़े कर दिए हैं। मृतक गोविंद पैवाल के पास अंतिम संस्कार तक के लिए पैसे नहीं थे। ऐसे में एक एनजीओ आगे आया और शव वाहन से लेकर चिता की व्यवस्था तक हर मदद की।
ब्रिज के नीचे गुजर-बसर करता है परिवार
गोविंद पैवाल का परिवार लंबे समय से चार इमली के पास एक ब्रिज के नीचे रहता है। चाहे गर्मी हो, बारिश या सर्दी, उनका जीवन वहीं बीतता रहा। गोविंद नगर निगम के ठेकेदार के अधीन मजदूरी और बेलदारी का काम करके परिवार का खर्च चलाते थे। परिवार में उनकी पत्नी संगीता, दो बेटे अजय और छोटा बेटा, और शादीशुदा बेटी है। रोजाना का भोजन जुटाना भी उनके लिए संघर्ष भरा था।
पत्नी ने अस्पताल में निभाई आखिरी सेवा
गोविंद को कुत्ते के काटने के बाद रेबीज संक्रमण हो गया था। डॉक्टरों ने पहले ही बचने की संभावना बेहद कम बताई थी। इसके बावजूद संगीता ने एमवाय अस्पताल के आइसोलेशन यूनिट में पति की पूरी सेवा की। उन्होंने दर्द और तकलीफ में जूझते पति को सांत्वना दी, गाने सुनाए और अंतिम समय तक उनका साथ निभाया।
NGO ने किया अंतिम संस्कार का इंतजाम
गोविंद की मौत के बाद परिवार के पास अंतिम संस्कार के लिए पैसे नहीं थे। इस मुश्किल घड़ी में एक एनजीओ ने फ्री शव वाहन उपलब्ध कराया और चिता की पूरी व्यवस्था की। बेटे अजय ने पिता को मुखाग्नि दी और मां व भाई को फिर ब्रिज के नीचे छोड़कर अन्य जरूरी इंतजाम करने में जुट गया।
चेहरे पर काटने से तेजी से फैला संक्रमण
हुकुमचंद अस्पताल के सुपरिटेंडेंट डॉ. आशुतोष शर्मा ने बताया कि एंटी-रेबीज वैक्सीन के शुरुआती डोज के बाद ही एंटीबॉडी टाइटर वायरस से लड़ने में मदद करता है।
“इस केस में कुत्ते ने चेहरे और होंठ पर हमला किया था, जिससे संक्रमण तेजी से दिमाग तक पहुंच गया। ऐसे मामलों में मौत का खतरा अधिक रहता है। पैर या हाथ पर काटने के मामलों में वैक्सीन का असर बेहतर होता है,”
डॉ. शर्मा के मुताबिक, पोस्टमॉर्टम रिपोर्ट आने के बाद स्थिति और स्पष्ट होगी।
प्रशासन पर उठे सवाल
यह घटना नगर निगम और स्वास्थ्य व्यवस्था की लापरवाही को उजागर करती है। सुप्रीम कोर्ट ने वर्षों पहले आदेश दिया था कि आवारा कुत्तों की संख्या नियंत्रित करने के लिए नसबंदी अभियान चलाया जाए और कुत्तों को पकड़कर उसी स्थान पर छोड़ा जाए। इंदौर में नसबंदी अभियान चलने के बावजूद डॉग बाइट के मामले थमने का नाम नहीं ले रहे।
हर दिन 150+ डॉग बाइट केस
सरकारी हुकुमचंद अस्पताल में रोजाना 150 से ज्यादा डॉग बाइट के मरीज पहुंचते हैं। कई मामलों में घाव इतने गंभीर होते हैं कि इलाज मुश्किल हो जाता है। समय पर इंजेक्शन देने की निगरानी व्यवस्था स्पष्ट नहीं है।
परिवार को अब भी मदद का इंतजार
गोविंद की मौत के बाद परिवार पूरी तरह बेसहारा हो गया है। पत्नी संगीता को बच्चों की देखभाल और रोजमर्रा का खर्च चलाना बेहद चुनौतीपूर्ण हो गया है। परिवार अब प्रशासन से मदद की उम्मीद कर रहा है।





