भारत जल्द ही रेयर अर्थ मेटल (Rare Earth Metals) के उत्पादन और प्रोसेसिंग में बड़ा कदम उठाने जा रहा है। सरकारी कंपनी IREL (Indian Rare Earths Limited) जापान और दक्षिण कोरिया की कंपनियों के साथ मिलकर रेयर अर्थ मैग्नेट का व्यावसायिक उत्पादन शुरू करने की योजना बना रही है।
इस साझेदारी का मुख्य उद्देश्य चीन पर निर्भरता घटाना और वैश्विक सप्लाई चेन में भारत की स्थिति मजबूत करना है।
रेयर अर्थ पर चीन का दबदबा और भारत की चुनौती
वर्तमान में, दुनिया में रेयर अर्थ खनन और प्रोसेसिंग पर चीन का बड़ा नियंत्रण है।
- अप्रैल 2025 में चीन ने रेयर अर्थ और मैग्नेट का निर्यात रोक दिया।
- इस कदम से ऑटोमोबाइल, एयरोस्पेस और सेमीकंडक्टर जैसी कई इंडस्ट्रीज की सप्लाई चेन प्रभावित हुई।
भारत के पास अभी बड़े पैमाने पर रेयर अर्थ को उच्च-शुद्धता (High Purity) स्तर पर रिफाइन और अलग करने की पर्याप्त सुविधा नहीं है। यही वजह है कि विदेशी साझेदारों की मदद जरूरी हो गई है।
जापान और साउथ कोरिया के साथ टेक्नॉलॉजी साझेदारी
IREL जापान और दक्षिण कोरिया से उन्नत प्रोसेसिंग तकनीक लाने की योजना बना रही है।
- दोनों देशों की सरकारों के बीच बातचीत की संभावना है।
- कंपनी इस साल अपने बोर्ड से व्यावसायिक उत्पादन की मंजूरी लेने वाली है।
- लक्ष्य है कि तकनीकी साझेदारी को औपचारिक रूप दिया जाए और खनन क्षमता बढ़ाई जाए।
जापानी कंपनी के साथ बातचीत
IREL ने Toyotsu Rare Earths India (Toyota Tsusho की यूनिट) से भी संपर्क किया है।
- उद्देश्य: जापान की प्रोसेसिंग तकनीक तक सीधी पहुंच बनाना।
- शुरुआती चर्चाओं में भारत में जापानी कंपनी द्वारा प्लांट लगाने पर भी बात हुई है।
उत्पादन योजना:
IREL अपने तकनीकी साझेदार को नियोडिमियम ऑक्साइड उपलब्ध कराएगी।
- साझेदार इस कच्चे माल से मैग्नेट बनाएगा और भारत को वापस भेजेगा।
- वर्तमान क्षमता: 400–500 मीट्रिक टन नियोडिमियम प्रति वर्ष।
- साझेदारी के बाद उत्पादन क्षमता और बढ़ाई जा सकती है।
अन्य देशों में खनन के अवसर
IREL न केवल भारत में बल्कि अंतरराष्ट्रीय स्तर पर भी खनन के अवसर तलाश रही है।
- संभावित देश: अर्जेंटीना, ऑस्ट्रेलिया, मलावी, म्यांमार।
- भारत में रेयर अर्थ खनन का अधिकार सिर्फ IREL के पास है, जो परमाणु ऊर्जा और रक्षा जरूरतों के लिए सामग्री उपलब्ध कराती है।
जापान और साउथ कोरिया के साथ यह रणनीतिक साझेदारी भारत को रेयर अर्थ मेटल का ग्लोबल हब बनाने की दिशा में बड़ा कदम साबित हो सकती है। इससे न केवल चीन पर निर्भरता घटेगी बल्कि भारत की हाई-टेक इंडस्ट्रीज को भी स्थिर सप्लाई मिलेगी।





