बिहार में चल रही स्पेशल इंटेंसिव रिविजन (SIR) प्रक्रिया को लेकर सियासत तेज हो गई है। जहां विपक्ष इसे लेकर पहले से ही सवाल उठा रहा है, वहीं अब भाजपा की सहयोगी पार्टी तेलुगु देशम पार्टी (TDP) ने भी चुनाव आयोग को पत्र लिखकर प्रक्रिया के दायरे को स्पष्ट करने की मांग की है।
TDP ने साफ कहा है कि यह प्रक्रिया नागरिकता सत्यापन से संबंधित न मानी जाए और आयोग इस भ्रम को दूर करे। यह मुद्दा अब चुनावी राजनीति का एक अहम विषय बनता जा रहा है।
🔍 TDP ने क्या लिखा है अपने पत्र में?
TDP के संसदीय नेता लवू श्री कृष्ण देवरायलु द्वारा चुनाव आयोग के प्रमुख ज्ञानेश कुमार को लिखे गए पत्र में कहा गया:
“SIR प्रक्रिया का दायरा स्पष्ट रूप से परिभाषित होना चाहिए। यह मतदाता सूची के अद्यतन और समावेशन तक सीमित होनी चाहिए। इसमें नागरिकता सत्यापन का कोई स्थान नहीं होना चाहिए।”
पत्र पर TDP के पांच अन्य वरिष्ठ नेताओं के हस्ताक्षर भी हैं, और इसे 5 जुलाई 2025 को मुख्य चुनाव अधिकारियों को भेजे गए निर्देशों के जवाब में तैयार किया गया है।
📢 पार्टी प्रवक्ता ने क्या कहा?
TDP की राष्ट्रीय प्रवक्ता ज्योत्सना तिरुनागरी ने मीडिया से कहा:
“बिहार में चल रही SIR प्रक्रिया और हमारे सुझावों का कोई सीधा संबंध नहीं है। हमने सिर्फ चुनाव प्रक्रिया की पारदर्शिता बनाए रखने के लिए सुझाव दिए हैं।”
उन्होंने यह भी जोड़ा कि TDP एक लोकतांत्रिक पार्टी है जो चुनाव प्रणाली को पारदर्शी और निष्पक्ष बनाए रखने के पक्ष में है।
📋 TDP की मुख्य मांगें:
TDP द्वारा उठाए गए कुछ प्रमुख बिंदु:
- SIR प्रक्रिया को नागरिकता से न जोड़ा जाए।
- चुनावी सूची में कोई बड़ा संशोधन प्रमुख चुनाव से छह महीने पहले न किया जाए।
- SIR प्रक्रिया में पर्याप्त समय और पारदर्शिता होनी चाहिए।
- पहले से सूची में शामिल मतदाताओं को दोबारा पात्रता सिद्ध करने की आवश्यकता नहीं होनी चाहिए।
- CAG की निगरानी में तीसरे पक्ष से ऑडिट की मांग।
📌 आखिर क्यों है SIR प्रक्रिया पर विवाद?
SIR यानी Special Intensive Revision, चुनावों से पहले मतदाता सूची को अद्यतन करने की प्रक्रिया होती है। हालांकि, जब इसका नागरिकता से संबंध जोड़ दिया जाता है, तब यह संवेदनशील मुद्दा बन जाता है। विपक्ष इसे “डिसक्रिमिनेशन का टूल” मानता है, जबकि सत्तारूढ़ दल इसे चुनाव सुधार बताता है।
अब जब BJP की सहयोगी पार्टी TDP भी इस पर आपत्ति दर्ज कर रही है, तो यह संकेत है कि SIR की प्रक्रिया को लेकर राजनीतिक सहमति नहीं बन पा रही है।
🗳️ चुनाव आयोग की भूमिका पर उठते सवाल
चुनाव आयोग, जो आमतौर पर निष्पक्ष संस्थान माना जाता है, इस विवाद में दबाव में आता दिख रहा है। आयोग ने अभी तक इस पर कोई स्पष्ट बयान नहीं दिया है, लेकिन विशेषज्ञ मानते हैं कि राजनीतिक दलों के सुझावों को गंभीरता से लेना आयोग के लिए आवश्यक है।





