BY: Yoganand Shrivastva
लातूर : जब पैसे की किल्लत हो और खेत जोतने के लिए बैल या ट्रैक्टर खरीदने का जुगाड़ न हो, तो मजबूरी ही व्यक्ति को चौका देती है। लातूर जिले के अहमदपुर में अंबादास पवार (बुज़ुर्ग किसान) और उनकी पत्नी मुक्ताबाई की वो तस्वीर और वीडियो सामने आया है जिसे देख हर इंसान का दिल पसीज जाएगा। इस जोड़ी ने जिदंगी की कठिन परीक्षा खुद पार करने का फैसला लिया।
खेत जोतने में दोनों परिवार
- बैलों और ट्रैक्टर की कमी: बेमौसम बारिश और सूखे की मार से पिछली फसल बर्बाद हो चुकी थी, जिससे उनके पास खेती का खर्च निकालने के लिए बैल या मशीन लेने तक के पैसे नहीं बचे।
- धरती से जुड़े दिन: अंबादास खुद हल थामे खेत में कदम से कदम मिलाकर धीमी गति में जुताई कर रहे हैं, जबकि पीछे उनकी पत्नी हल संभालते हुए चल रही है। इस दृश्य ने देखने वालों की आंखों में आंसू ला दिए।
परिवार की कहानी
- खेत की हालत: अंबादास के पास कुल 2.5 एकड़ जमीन है। खेती के लिए न बैल है, न ट्रैक्टर, न मजदूर तक की व्यवस्था।
- परिवार का सहारा: उनका बेटा सेल्फी मजदूरी के लिए शहर में गया हुआ है। खेत की हर जिम्मेदारी अब उनके कंधों पर आ गई है—हल चलाने से लेकर कटाई तक का सारा काम।
- राहत की उम्मीद: उनके साथ अब बहू और दो पोते रहते हैं। उनकी एक बेटी शादीशुदा है, जो अपने ससुराल में रहकर गांव को कम से कम बोझ लगे—ऐसा परिवार ने विचार किया।
जब मजबूरी ने मजबूर किया
युवावस्था में खेत जोतना उम्मीदों का काम होता है, लेकिन वृद्धावस्था में ये मजबूरी बन चुकी है। अंबादास खुद कहते हैं कि उनकी हिम्मत मिट्टी से जुड़ी है। कृषि को प्राथमिक जीवन का हिस्सा समझते हुए उन्होंने यह सब किया—यह उनकी अदम्य इच्छाशक्ति का परिचायक है।
क्या दे सकते हैं आप?
इस कहने को सोशल मीडिया पर शेयर करें, ताकि यह छोटा पर महत्वपूर्ण उदाहरण लोगों तक पहुंचे:
- सरकार और संस्थाओं से मदद की अपील की जा सकती है—खेती के कर्ज माफी, फसल बीमा या सहकारी बैलों की व्यवस्था।
- स्थानीय NGOs और किसान सहायता योजना के जरिए उनका डेटा दर्ज कर उनकी मदद की जा सकती है।