BY: Yoganand Shrivastva
ठाणे (महाराष्ट्र), राज ठाकरे की पार्टी महाराष्ट्र नवनिर्माण सेना (MNS) एक बार फिर विवादों में आ गई है। ठाणे जिले में एक गुजराती दुकानदार से केवल इसलिए मारपीट की गई क्योंकि उसने सवाल किया था—“मराठी बोलना जरूरी क्यों है?” इस सवाल पर भड़के एमएनएस कार्यकर्ताओं ने उसे घेरकर थप्पड़ मारे, गालियां दीं और धमकाया कि वह यहां व्यापार नहीं कर पाएगा।
इस पूरी घटना का वीडियो सोमवार को सोशल मीडिया पर तेजी से वायरल हुआ। इसके बाद मंगलवार को काशीमीरा पुलिस स्टेशन में सात एमएनएस कार्यकर्ताओं के खिलाफ मामला दर्ज किया गया।
घटना का वीडियो: धमकी और मारपीट
वायरल वीडियो में देखा जा सकता है कि दुकानदार को एमएनएस के कई कार्यकर्ता चारों ओर से घेर लेते हैं। एक कार्यकर्ता उससे सवाल करता है:
“तूने पूछा कि मराठी क्यों बोलनी चाहिए? जब तुझे दिक्कत थी तो तू हमारे (MNS) ऑफिस आया था, तब मराठी की जरूरत नहीं पड़ी?”
दुकानदार शांत स्वर में जवाब देता है कि उसे यह नहीं पता था कि मराठी अब जरूरी हो गई है। इसी पर एक कार्यकर्ता उसे गाली देता है और कहता है:
“अगर तू यहां रहना चाहता है तो मराठी बोलनी ही पड़ेगी। ये महाराष्ट्र है!”
जब दुकानदार कहता है कि उसे मराठी सीखनी पड़ेगी, तो कार्यकर्ता उसे कहते हैं कि ऐसा कहना ठीक है, लेकिन सवाल क्यों किया कि मराठी क्यों सीखनी चाहिए। दुकानदार जब जवाब देता है—“यहां सभी भाषाएं बोली जाती हैं,”—तो कार्यकर्ता बौखला जाते हैं और लगातार कई थप्पड़ मारते हैं।
पुलिस कार्रवाई: सात कार्यकर्ताओं पर केस
ठाणे पुलिस ने वायरल वीडियो और शिकायत के आधार पर सात एमएनएस कार्यकर्ताओं पर एफआईआर दर्ज की है। फिलहाल किसी की गिरफ्तारी नहीं हुई है, लेकिन पुलिस ने मामले की जांच शुरू कर दी है।
MNS का पुराना रुख और राज ठाकरे की मांग
हाल ही में एमएनएस प्रमुख राज ठाकरे ने राज्य सरकार से मांग की थी कि प्राथमिक स्कूलों में केवल मराठी और अंग्रेज़ी पढ़ाई जाए। उन्होंने हिंदी भाषा को अनिवार्य बनाए जाने का विरोध किया था। ठाकरे का कहना था कि महाराष्ट्र की पहचान मराठी भाषा है और उसे प्राथमिकता दी जानी चाहिए।
तीन भाषा नीति पर विवाद और सरकार का फैसला
महाराष्ट्र सरकार ने 16 अप्रैल 2025 को राष्ट्रीय शिक्षा नीति (NEP 2020) के तहत पहली से पांचवीं कक्षा तक के लिए हिंदी को अनिवार्य तीसरी भाषा बनाने का निर्णय लिया था। इस पर विपक्ष और संगठनों ने कड़ा विरोध जताया।
विवाद बढ़ता देख, राज्य सरकार ने 22 अप्रैल को यह फैसला वापस ले लिया। मुख्यमंत्री देवेंद्र फडणवीस ने स्पष्ट किया कि अब छात्र अपनी तीसरी भाषा स्वेच्छा से चुन सकते हैं, हिंदी अनिवार्य नहीं होगी।
सरकारी दफ्तरों में भी मराठी जरूरी
इसके अलावा महाराष्ट्र सरकार ने हाल ही में आदेश जारी किया कि सभी सरकारी, अर्ध-सरकारी और स्थानीय निकायों के दफ्तरों में मराठी भाषा का प्रयोग अनिवार्य होगा। सभी सूचना पट्ट, नोटिस और आधिकारिक दस्तावेज मराठी में ही तैयार किए जाएंगे। नियमों का उल्लंघन करने वालों पर कार्रवाई का प्रावधान भी रखा गया है।
एमएनएस कार्यकर्ताओं की यह हरकत ना सिर्फ असंवैधानिक है, बल्कि राज्य में भाषाई असहिष्णुता को बढ़ावा देने वाली है। भाषाई पहचान महत्वपूर्ण हो सकती है, लेकिन उसकी आड़ में गुंडागर्दी और हिंसा को किसी भी हाल में जायज नहीं ठहराया जा सकता। पुलिस और प्रशासन पर अब जिम्मेदारी है कि वह ऐसे मामलों में कठोर कार्रवाई करे ताकि भविष्य में कोई भी नागरिक अपनी भाषा, जाति या क्षेत्रीय पहचान के कारण उत्पीड़न का शिकार न हो।