BY: Yoganand Shrivastva
ठाणे की एक अदालत ने वर्ष 2018 के चर्चित हत्या मामले में आरोपी एक महिला को बरी करते हुए बेहद अहम टिप्पणी की—“शक चाहे जितना भी गहरा हो, वह ठोस सबूत का विकल्प नहीं हो सकता।” यह फैसला न्यायपालिका की उस मूल भावना को दोहराता है, जिसमें हर आरोपी को दोषी साबित होने तक निर्दोष माना जाता है।
कोर्ट का स्पष्ट रुख:
प्रमुख जिला एवं सत्र न्यायाधीश एस.बी. अग्रवाल ने सोमवार को दिए अपने आदेश में कहा कि अभियोजन पक्ष आरोपित महिला रूमा बेगम अनवर हुसैन लश्कर के खिलाफ हत्या के पर्याप्त और विश्वसनीय सबूत पेश करने में असफल रहा है। उन्होंने कहा कि परिस्थितिजन्य साक्ष्यों के आधार पर केवल संदेह उत्पन्न होता है, परंतु यह अपराध साबित करने के लिए पर्याप्त नहीं है।
क्या था मामला?
घटना 19 मार्च 2018 की है, जब ठाणे के साईं नगर, घोड़बंदर रोड स्थित एक मकान में मकान मालिक ने चादर में लिपटा हुआ एक शव देखा। शव की हालत बेहद क्षत-विक्षत थी और उसकी पहचान कबीर अहमद लश्कर के रूप में हुई। बाद में जांच में यह सामने आया कि आरोपी महिला बेंगलुरु में रह रही थी, जहां से उसे हिरासत में लिया गया।
बीते रिश्ते से जुड़ा शक
अभियोजन पक्ष के अनुसार, मृतक और आरोपी महिला के बीच 2016 से 2018 तक संबंध थे, जो शादी को लेकर विवाद के चलते बिगड़ गए थे। उन्होंने यह भी दावा किया कि महिला बेंगलुरु से ठाणे आई और अंतिम बार कबीर के साथ देखी गई।
हत्या में शामिल कथित तरीकों में कपड़े से गला घोंटना, धारदार हथियार से गुप्तांग पर हमला करना और सिर पर ईंट से वार करना शामिल था।
परिस्थितिजन्य साक्ष्य पर टिका था केस
मुकदमा पूरी तरह परिस्थितिजन्य साक्ष्यों पर आधारित था। इसमें मोबाइल कॉल रिकॉर्ड, मकान मालिक और उसकी पत्नी के बयान, और कुछ फोरेंसिक प्रमाण शामिल थे।
हालांकि कोर्ट ने पाया कि:
- किसी भी प्रत्यक्षदर्शी ने महिला को घटनास्थल पर नहीं देखा।
- लगभग 6 साल बाद पहली बार मकान मालिक ने कोर्ट में महिला की पहचान की, जिसे विश्वसनीय नहीं माना गया।
- हत्या में उपयोग किए गए चाकू, चादर, और अन्य वस्तुओं पर भले ही मानव रक्त पाया गया, लेकिन ये सबूत आरोपी से सीधे नहीं जुड़ पाए।
अंततः कोर्ट का फैसला
कोर्ट ने कहा कि इस मामले में संदेह भले ही गहरा हो, लेकिन अभियोजन पक्ष यह साबित करने में नाकाम रहा कि आरोपी महिला ने ही हत्या की। इस कारण IPC की धारा 302 (हत्या) के तहत दायर आरोपों से महिला को बरी किया गया।
महत्वपूर्ण टिप्पणी
“शक चाहे कितना भी गहरा हो, सबूत की जगह नहीं ले सकता।”
– न्यायाधीश एस.बी. अग्रवाल
न्यायपालिका का यह फैसला उस मूलभूत सिद्धांत को दोहराता है कि कानून केवल अनुमान नहीं, बल्कि ठोस और अपुष्ट साक्ष्यों पर चलता है।