लगातार एक दशक से चुनावी हार का सामना कर रही कांग्रेस पार्टी अब एक बार फिर से खुद को पुनर्जीवित करने की कोशिश कर रही है। 2024 के लोकसभा चुनाव में 99 सीटें जीतकर कांग्रेस ने इसे ‘नैतिक जीत’ बताया, लेकिन जमीनी सच्चाई यह है कि पार्टी की संगठनात्मक नींव अब भी कमज़ोर बनी हुई है।
राहुल गांधी ने 3 जून को भोपाल से संगठन सृजन अभियान की शुरुआत की है — लेकिन क्या यह बदलाव की शुरुआत है या बस एक और दिखावटी प्रयास?
2024 की ‘नैतिक जीत’ की हकीकत
पिछले लोकसभा चुनावों की तुलना में कांग्रेस की सीटें भले ही बढ़ी हों, लेकिन विशेषज्ञ मानते हैं कि इसे पुनरुत्थान मानना जल्दबाजी होगी।
- आंकड़ों से भ्रम: 44 (2014) और 52 (2019) की तुलना में 99 (2024) बेहतर ज़रूर है, लेकिन ये सीटें मुख्य रूप से गठबंधनों और विरोधी लहरों की देन थीं।
- नेतृत्व की अस्पष्टता: राहुल गांधी का नेतृत्व अब भी सवालों के घेरे में है — वे कभी सक्रिय दिखते हैं तो कभी दूरी बना लेते हैं।
- संगठन की कमजोरी: कई राज्यों में पार्टी की जमीनी पकड़ कमजोर है, कार्यकर्ताओं में ऊर्जा की कमी है।
संगठन सृजन अभियान: असली सुधार या दिखावटी कोशिश?
राहुल गांधी का नया अभियान पार्टी को जमीनी स्तर से फिर से खड़ा करने की मंशा लेकर आया है, लेकिन कांग्रेस पहले भी कई बार इस तरह के सुधारों की बात कर चुकी है।
अभियान के मुख्य उद्देश्य:
- आंतरिक चुनावों के ज़रिए जमीनी कार्यकर्ताओं को सशक्त बनाना।
- डिजिटल माध्यमों से संगठन को जोड़ना।
- राज्यों के लिए अलग-अलग रणनीतियाँ बनाना।
- वंशवाद की बजाय योग्यता को प्राथमिकता देना।
मुख्य चुनौतियाँ:
- गुटबाज़ी: राज्य इकाइयों में आपसी कलह से केंद्रीय दिशा कमजोर पड़ती है।
- गठबंधन पर निर्भरता: पार्टी की पहचान सहयोगी दलों में घुलती जा रही है।
- नेतृत्व की निष्क्रियता: जब तक केंद्रीय नेतृत्व पूरी प्रतिबद्धता नहीं दिखाता, कोई भी सुधार कागज़ पर ही रह जाएगा।
राज्यवार संगठन की स्थिति: कांग्रेस की कमजोर कड़ी
उत्तर प्रदेश:
- नेतृत्व अस्थिर, जमीनी कार्यकर्ता हताश।
- कोई करिश्माई स्थानीय चेहरा नहीं जो भाजपा को चुनौती दे सके।
हरियाणा:
- आंतरिक फूट और दिशाहीनता।
- क्षेत्रीय दलों और भाजपा-जेजेपी गठबंधन के आगे पिछड़ती कांग्रेस।
मध्य प्रदेश:
- सिंधिया के पार्टी छोड़ने का असर अब भी जारी।
- वरिष्ठ नेताओं का वर्चस्व, लेकिन युवा मतदाताओं से दूरी।
गठबंधन या गुमनाम पहचान?
INDIA गठबंधन ने जहां भाजपा को कई राज्यों में चुनौती दी, वहीं कांग्रेस की भूमिका कई बार सहयोगी दलों के साये में दबकर रह गई।
- सीटों का बंटवारा: समझौते के कारण कांग्रेस को कई बार कमजोर सीटों पर लड़ना पड़ा।
- स्वतंत्र पहचान की कमी: कुछ राज्यों में कांग्रेस सिर्फ सांकेतिक भूमिका निभा रही है।
क्या कांग्रेस के पास पुनरुत्थान का रास्ता है?
राजनीतिक विश्लेषकों का मानना है कि अगर कांग्रेस को फिर से राष्ट्रीय स्तर पर प्रासंगिक बनना है, तो उसे सिर्फ घोषणा नहीं, बल्कि ठोस क्रियान्वयन करना होगा।
आवश्यक कदम:
- राज्य इकाइयों को सशक्त बनाना: नेतृत्व और रणनीति में स्वायत्तता।
- स्पष्ट नेतृत्व: राहुल गांधी को पूरी तरह नेतृत्व स्वीकार करना होगा या स्पष्ट मना करना होगा।
- जनसंवाद में सुधार: कांग्रेस को मतदाताओं को स्पष्ट और प्रेरक वैकल्पिक दृष्टिकोण देना होगा।
निष्कर्ष: कांग्रेस के लिए निर्णायक समय
संगठन सृजन अभियान कांग्रेस के लिए एक ऐतिहासिक अवसर हो सकता है, लेकिन इसके लिए निरंतरता, पारदर्शिता और समर्पण ज़रूरी है। आधे-अधूरे कदमों से पार्टी को कोई फायदा नहीं होगा।
अगर कांग्रेस वाकई बदलाव चाहती है, तो उसे अपनी रणनीति, संगठन और नेतृत्व तीनों स्तरों पर सशक्तिकरण की दिशा में साहसिक फैसले लेने होंगे। वरना वह धीरे-धीरे भारतीय लोकतंत्र में एक अप्रासंगिक ताकत बनकर रह जाएगी।
अक्सर पूछे जाने वाले सवाल (FAQs)
संगठन सृजन अभियान क्या है?
यह राहुल गांधी द्वारा शुरू की गई पहल है, जिसका उद्देश्य कांग्रेस संगठन को जमीनी स्तर से मजबूत करना है।
2024 के बाद भी कांग्रेस क्यों संघर्ष कर रही है?
पार्टी अब भी आंतरिक गुटबाज़ी, कमजोर राज्य नेतृत्व और स्पष्ट दिशा की कमी से जूझ रही है।
क्या कांग्रेस दोबारा उभर सकती है?
अगर वह जमीनी कार्यकर्ताओं को सशक्त बनाए, स्पष्ट नेतृत्व दे और जनता से जुड़ाव बढ़ाए — तो हां।