हैदराबाद के जंगल का सच: कटाई, भ्रष्टाचार और सत्ता का खेल!”

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हैदराबाद के कंचा गाचीबोवली जंगल में हाल ही में हुई बड़े पैमाने पर वनों की कटाई ने स्थानीय लोगों, छात्रों और पर्यावरण प्रेमियों के बीच गुस्सा और चिंता पैदा कर दी है। यह क्षेत्र, जो हैदराबाद सेंट्रल यूनिवर्सिटी (एचसीयू) के पास स्थित है, लगभग 400 एकड़ में फैला हुआ एक हरा-भरा जंगल है। तेलंगाना सरकार ने इस जंगल को कथित तौर पर एक आईटी पार्क बनाने के लिए साफ करने का फैसला किया, जिसके बाद यह मामला सुर्खियों में आ गया। लेकिन इस विवाद में एक नया मोड़ तब आया जब भ्रष्टाचार के गंभीर आरोप सामने आए, जिसने इसे और जटिल बना दिया। आइए, इस पूरे विवाद को शुरू से अंत तक समझते हैं।

विवाद की शुरुआत

यह मामला 31 मार्च, 2025 से शुरू हुआ, जब 50 से अधिक बुलडोजरों ने कंचा गाचीबोवली जंगल में पेड़ों को काटना शुरू किया। यह इलाका जैव विविधता से भरपूर है, जहां मोर, हिरण और कई अन्य वन्यजीवों के साथ-साथ अनोखी चट्टानी संरचनाएं, जैसे 2.5 अरब साल पुराना “मशरूम रॉक”, मौजूद हैं। सरकार का कहना है कि यह जमीन तेलंगाना स्टेट इंडस्ट्रियल इन्फ्रास्ट्रक्चर कॉरपोरेशन (टीजीआईआईसी) को आईटी विकास के लिए दी गई थी। लेकिन पर्यावरणविदों और छात्रों का दावा है कि यह कदम अवैध है और वन संरक्षण अधिनियम, 1980 का उल्लंघन करता है।

भ्रष्टाचार का नया विवाद

जंगल की कटाई शुरू होने के कुछ ही दिनों बाद एक चौंकाने वाला खुलासा हुआ। सोशल मीडिया और कुछ स्थानीय समाचार पोर्टलों ने दावा किया कि इस परियोजना के पीछे तेलंगाना के एक वरिष्ठ मंत्री और एक बड़े रियल एस्टेट डेवलपर के बीच गुप्त सौदा हुआ है। आरोप है कि आईटी पार्क के नाम पर जंगल की जमीन को सस्ते दामों में डेवलपर को बेचने की योजना थी, जिसमें से एक हिस्सा लग्जरी रिसॉर्ट और विला बनाने के लिए इस्तेमाल होना था। विपक्षी नेता केटी रामा राव ने इसे “हरित हत्या के साथ-साथ भ्रष्टाचार की साजिश” करार दिया और दस्तावेजों के साथ जांच की मांग की। सरकार ने इन आरोपों को खारिज करते हुए इसे राजनीतिक स्टंट बताया, लेकिन इसने जनता के बीच संदेह को और गहरा कर दिया।

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छात्रों और स्थानीय लोगों का विरोध

जैसे ही पेड़ काटे जाने की खबर फैली, हैदराबाद यूनिवर्सिटी के छात्र सड़कों पर उतर आए और विरोध शुरू कर दिया। 18 साल के बोवेनी युगेंदर, जो आईएमए हिंदी के पहले साल के छात्र हैं, ने यूनिवर्सिटी के मुख्य द्वार पर भूख हड़ताल शुरू की। सोशल मीडिया पर वायरल हुए वीडियो में मोरों की चीखें सुनाई दीं, जिसने लोगों का ध्यान और आक्रोश बढ़ाया। भ्रष्टाचार के आरोपों के बाद प्रदर्शन और तेज हो गए। पुलिस ने प्रदर्शनकारियों को हिरासत में लिया, जिससे स्थिति और तनावपूर्ण हो गई। पर्यावरण संगठन “वाटा फाउंडेशन” और यूनिवर्सिटी के छात्र संघ ने इस मुद्दे को तेलंगाना हाई कोर्ट में उठाया और दो जनहित याचिकाएं (पीआईएल) दायर कीं।

कानूनी लड़ाई

2 अप्रैल को तेलंगाना हाई कोर्ट ने सरकार को मौखिक रूप से पेड़ों की कटाई रोकने का निर्देश दिया, लेकिन आरोप है कि इसके बावजूद कुछ गतिविधियां जारी रहीं। 3 अप्रैल को सुप्रीम कोर्ट ने स्वत: संज्ञान लेते हुए इस मामले में हस्तक्षेप किया। कोर्ट ने तेलंगाना सरकार को सभी गतिविधियां तुरंत रोकने का आदेश दिया और मुख्य सचिव को यह सुनिश्चित करने को कहा कि आगे कोई पेड़ न काटा जाए। सुप्रीम कोर्ट ने यह भी नोट किया कि इस जंगल में 8 प्रकार की संरक्षित प्रजातियों के जानवर रहते हैं और यह क्षेत्र जैव विविधता का महत्वपूर्ण हिस्सा है। कोर्ट ने तेलंगाना हाई कोर्ट के रजिस्ट्रार को मौके का निरीक्षण कर रिपोर्ट सौंपने का निर्देश दिया। भ्रष्टाचार के आरोपों पर कोर्ट ने अभी कोई टिप्पणी नहीं की, लेकिन इसने मामले को और गंभीर बना दिया है।

सरकार का रुख

तेलंगाना के मुख्यमंत्री रेवंत रेड्डी की सरकार ने इस मुद्दे पर ज्यादा टिप्पणी नहीं की है। हालांकि, 3 अप्रैल को सरकार ने घोषणा की कि कंचा गाचीबोवली जमीन विवाद को सुलझाने के लिए मंत्रियों का एक समूह गठित किया जाएगा। भ्रष्टाचार के आरोपों पर सरकार ने कहा कि यह विपक्ष की साजिश है और सभी प्रक्रियाएं पारदर्शी हैं। लेकिन जनता और विपक्ष इसे मानने को तैयार नहीं हैं।

सेलिब्रिटी और जनता की प्रतिक्रिया

बॉलीवुड और टॉलीवुड के कई सितारों ने इस मुद्दे पर अपनी आवाज उठाई। जॉन अब्राहम, रश्मिका मंदाना, रेणु देसाई, रवीना टंडन, दिया मिर्जा, अदिवि शेष और मृणाल ठाकुर जैसे सितारों ने सरकार से इस कदम को वापस लेने की अपील की। भ्रष्टाचार के खुलासे के बाद कुछ सेलिब्रिटीज़ ने इसे “प्रकृति और नैतिकता दोनों का अपमान” बताया। सोशल मीडिया पर #SaveKanchaGachibowli और #ExposeCorruption जैसे हैशटैग ट्रेंड करने लगे। लोगों ने सरकार पर पर्यावरण के प्रति असंवेदनशील होने के साथ-साथ भ्रष्टाचार में लिप्त होने का आरोप लगाया।

पर्यावरण पर प्रभाव

कंचा गाचीबोवली जंगल हैदराबाद के लिए एक महत्वपूर्ण “फेफड़ा” है। यह हवा की गुणवत्ता को बेहतर करता है, तापमान को नियंत्रित करता है और भूजल को रिचार्ज करता है। इसकी कटाई से प्रदूषण बढ़ सकता है, गर्मी में वृद्धि हो सकती है और पानी की कमी की समस्या गहरा सकती है। विशेषज्ञों का कहना है कि यह क्षेत्र शहर की पारिस्थितिकी और सांस्कृतिक धरोहर के लिए अनमोल है।

बड़े मीडिया हाउस क्यों चुप हैं?

इस मुद्दे पर बड़े मीडिया हाउसों की चुप्पी ने कई सवाल खड़े किए हैं। ऐसा क्यों है कि राष्ट्रीय स्तर के समाचार चैनल और अखबार इस खबर को प्रमुखता से नहीं दिखा रहे? इसके पीछे कई कारण हो सकते हैं। पहला, यह खबर बड़े मीडिया की तात्कालिक प्राथमिकताओं—जैसे ब्रेकिंग न्यूज़, राजनीतिक विवाद या अंतरराष्ट्रीय घटनाएं—से मेल नहीं खाती। पर्यावरण से जुड़े मुद्दे अक्सर तब तक सुर्खियों में नहीं आते, जब तक वे बड़े जन आंदोलन का रूप न ले लें या कोई चर्चित हस्ती इसमें लगातार शामिल न हो। दूसरा, यह घटना लंबे वीकेंड के दौरान शुरू हुई, जब न्यूज़रूम में कर्मचारियों की संख्या कम हो सकती थी या उनका ध्यान दूसरी ओर रहा हो। तीसरा, कुछ लोगों का मानना है कि तेलंगाना में कांग्रेस की सरकार होने और भ्रष्टाचार के आरोपों के कारण राजनीतिक दबाव या पक्षपात इसकी वजह हो सकता है, हालांकि यह साबित नहीं हुआ है। चौथा, इस मुद्दे की जटिलता—कानूनी लड़ाई, भ्रष्टाचार के दावे, स्थानीय विरोध और पर्यावरणीय चिंताएं—बड़े मीडिया के लिए त्वरित और सनसनीखेज़ रिपोर्टिंग के अनुकूल नहीं हो सकती। फिर भी, सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म्स जैसे एक्स और छोटे समाचार पोर्टलों ने इस मुद्दे को जिंदा रखा है, जो दर्शाता है कि जनता का गुस्सा बढ़ने पर बड़े मीडिया को भी इसे कवर करना पड़ सकता है।

आगे क्या?

सुप्रीम कोर्ट ने इस मामले की अगली सुनवाई 7 अप्रैल, 2025 के लिए तय की है। तब तक कोई भी विकास कार्य रुका रहेगा। छात्रों ने अपनी भूख हड़ताल खत्म कर दी है, लेकिन वे सरकार से स्थायी समाधान और भ्रष्टाचार की जांच की मांग कर रहे हैं। पर्यावरण मंत्रालय ने भी तेलंगाना सरकार से इस मामले पर रिपोर्ट मांगी है। यह विवाद न केवल हैदराबाद, बल्कि पूरे देश में विकास, पर्यावरण संरक्षण और राजनीतिक जवाबदेही पर बहस छेड़ सकता है।

कंचा गाचीबोवली जंगल की कटाई से प्रत्यक्ष लाभार्थी कौन हैं?

कंचा गाचीबोवली जंगल की कटाई से जुड़े विवाद में यह सवाल उठना स्वाभाविक है कि इस विनाश से सबसे ज्यादा फायदा किसे हो रहा है। इस मामले में कई पक्षों को प्रत्यक्ष लाभार्थी के रूप में देखा जा सकता है, जो नीचे विस्तार से बताए गए हैं:

  1. तेलंगाना सरकार और टीजीआईआईसी (TGIIC)
    तेलंगाना सरकार, विशेष रूप से तेलंगाना स्टेट इंडस्ट्रियल इन्फ्रास्ट्रक्चर कॉरपोरेशन (TGIIC), इस परियोजना के पीछे मुख्य ताकत है। सरकार का दावा है कि 400 एकड़ जमीन को आईटी पार्क और शहरी बुनियादी ढांचे के लिए विकसित करने से 50,000 करोड़ रुपये का निवेश और 5 लाख नौकरियां आएंगी। इस नीलामी से सरकार को 10,000 से 15,000 करोड़ रुपये की आय की उम्मीद है। इसका मतलब है कि सरकार आर्थिक विकास और राजस्व के मामले में सबसे बड़ा प्रत्यक्ष लाभार्थी है।
  2. आईटी कंपनियां और डेवलपर्स
    इस जमीन पर प्रस्तावित आईटी पार्क से सूचना प्रौद्योगिकी क्षेत्र की कंपनियां लाभान्वित होंगी। हैदराबाद, जो पहले से ही एक प्रमुख आईटी हब है, इस परियोजना से अपनी स्थिति को और मजबूत कर सकता है। इसके अलावा, रियल एस्टेट डेवलपर्स, जिन्हें कथित तौर पर जमीन सस्ते दामों पर दी जा सकती है (जैसा कि भ्रष्टाचार के आरोपों में दावा किया गया है), भी बड़े लाभार्थी हो सकते हैं। अगर लक्जरी रिसॉर्ट या विला बनाने की योजना सच है, तो ये डेवलपर्स भारी मुनाफा कमा सकते हैं।
  3. राजनीतिक हस्तियां (कथित तौर पर)
    भ्रष्टाचार के आरोपों के अनुसार, तेलंगाना के एक वरिष्ठ मंत्री और कुछ प्रभावशाली नेता इस सौदे से व्यक्तिगत लाभ उठा सकते हैं। यह दावा किया गया है कि जंगल की कटाई के पीछे निजी हितों को फायदा पहुंचाने की साजिश है, जिसमें कुछ नेताओं को रियल एस्टेट डेवलपर्स से आर्थिक लाभ मिल सकता है। हालांकि, ये आरोप अभी साबित नहीं हुए हैं, लेकिन ये इस विवाद का एक महत्वपूर्ण हिस्सा बन गए हैं।
  4. निवेशक और उद्योगपति
    नीलामी में हिस्सा लेने वाले निवेशक और उद्योगपति, जो इस जमीन पर भविष्य में परियोजनाएं शुरू करेंगे, भी प्रत्यक्ष लाभार्थी होंगे। सरकार का कहना है कि यह विकास तेलंगाना और हैदराबाद की आर्थिक प्रगति को बढ़ावा देगा, जिससे इन निवेशकों को लंबे समय तक मुनाफा मिलेगा। हालांकि, विपक्षी नेता केटी रामा राव ने चेतावनी दी है कि अगर उनकी पार्टी सत्ता में लौटी, तो यह जमीन वापस ली जाएगी, जिससे निवेशकों के लिए जोखिम भी बढ़ गया है।

निष्कर्ष

कंचा गाचीबोवली जंगल का यह मामला एक बार फिर हमें सोचने पर मजबूर करता है कि क्या आर्थिक विकास और व्यक्तिगत लाभ की कीमत पर प्रकृति का विनाश उचित है? छात्रों, नागरिकों और कोर्ट की सक्रियता ने इस मुंटे को राष्ट्रीय स्तर पर पहुंचा दिया है। अब यह सरकार की जिम्मेदारी है कि वह पारदर्शिता और संवेदनशीलता के साथ इस संकट का समाधान करे और भ्रष्टाचार के आरोपों की निष्पक्ष जांच करवाए, ताकि हैदराबाद का यह हरा कोना बच सके।

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