उत्तर प्रदेश सरकार ने एक ऐतिहासिक कदम उठाते हुए पीलीभीत जिले के 25 गांवों में बसे 2,196 बांग्लादेशी शरणार्थी परिवारों को जमीन का मालिकाना हक देने का निर्णय लिया है। छह दशकों से अधिक समय से चली आ रही इन परिवारों की मांग अब पूरी होने वाली है।
यह कदम न सिर्फ इन परिवारों को कानूनी अधिकार देगा, बल्कि उन्हें सरकारी योजनाओं का भी पूरा लाभ मिल सकेगा।
1960 से जमीन पर कब्जा, पर अधिकार नहीं
- 1960 में भारत आए ये शरणार्थी पूर्वी पाकिस्तान (अब बांग्लादेश) से विस्थापित हुए थे।
- सरकार ने उन्हें पीलीभीत के विभिन्न गांवों में रहने और खेती के लिए जमीन तो दी थी, लेकिन मालिकाना हक कभी नहीं दिया गया।
- इस कारण वे सरकारी सुविधाओं और योजनाओं से वंचित रह गए थे।
अब मिलेगा कानूनी दस्तावेज
मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने हाल ही में आदेश जारी कर औपचारिक प्रक्रिया पूरी करने के निर्देश दिए हैं।
पीलीभीत के डीएम ज्ञानेंद्र सिंह ने जानकारी दी:
“अंतिम दिशा-निर्देश मिलते ही प्रशासन दस्तावेज देने की प्रक्रिया शुरू कर देगा। हमारा प्रयास है कि यह कार्य जल्द से जल्द पूरा हो।”
स्थानीय नेताओं और प्रशासन की प्रतिक्रिया
- प्रभारी मंत्री बलदेव सिंह औलाख ने मुख्यमंत्री का धन्यवाद किया।
- बीजेपी जिलाध्यक्ष संजीव प्रताप सिंह और पूर्व जिला पंचायत सदस्य मनजीत सिंह ने इस फैसले को ऐतिहासिक और न्यायसंगत बताया।
- उनका कहना है कि ये फैसला उन परिवारों के बलिदान और संघर्ष को मान्यता देता है, जो 60 वर्षों से अधिकार की लड़ाई लड़ रहे थे।
अब तक क्या हुआ सत्यापन में?
- कुल 2,196 शरणार्थी परिवारों में से 1,466 परिवारों का सत्यापन पूरा हो चुका है।
- इनके दस्तावेज राज्य सरकार को भेजे जा चुके हैं।
- बहुत जल्द इन्हें मालिकाना हक के दस्तावेज मिलना शुरू हो जाएंगे।
किन गांवों को मिलेगा लाभ?
यह लाभ कालीनगर और पुरानपुर तहसील के 25 गांवों में रहने वाले परिवारों को मिलेगा। इनमें शामिल हैं:
- तातरगंज
- बमनपुर
- बैला
- सिद्ध नगर
- शास्त्री नगर
- नेहरू नगर
…और अन्य ग्रामीण क्षेत्र।
फैसले से क्या होंगे बड़े बदलाव?
- शरणार्थी परिवारों को कानूनी मान्यता
- सरकारी योजनाओं तक पहुंच आसान
- सामाजिक और आर्थिक स्थिरता में वृद्धि
- परिवारों में सुरक्षा और सम्मान की भावना
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60 वर्षों का इंतजार अब खत्म
उत्तर प्रदेश सरकार का यह निर्णय न केवल एक प्रशासनिक घोषणा है, बल्कि यह हजारों लोगों के जीवन में बदलाव की शुरुआत है।
इन शरणार्थी परिवारों को जो अधिकार अब मिलने जा रहा है, वह उन्हें आर्थिक, सामाजिक और कानूनी रूप से सशक्त बनाएगा।