वीरता की वो कहानी जो इतिहास में दब गई
“बड़े लड़ैया महोबा मारे इनकी मार सही ना जाए। एक को मारे दुई मर जाए, तीजा खौफ खाए मर जाए।”
यह पंक्तियाँ महोबा के उन वीरों की याद दिलाती हैं, जिन्होंने न सिर्फ इतिहास रचा, बल्कि वीरता की परिभाषा भी गढ़ दी। यह कहानी है बुंदेलखंड के शूरवीर आला और उदल की—दो ऐसे नाम जिनका उल्लेख आज भी युद्ध गीतों और बुंदेलखंड की लोकगाथाओं में गर्व से होता है।
पृष्ठभूमि: 12वीं सदी का बुंदेलखंड और चंदेल वंश
- राजा परमालदेव चंदेल वंश के शक्तिशाली शासक थे, जिनका शासन क्षेत्र कालिंजर, महोबा, अजयगढ़ और चंदेरी तक फैला था।
- यह काल चंदेलों के शौर्य और सांस्कृतिक वैभव का चरम था।
- पृथ्वीराज चौहान के नेतृत्व में चौहान वंश की शक्ति पूरे उत्तर भारत में फैल रही थी, लेकिन चंदेलों ने झुकने से इनकार किया।
राजा परमाल और मलहना की प्रेम कथा
राजा परमालदेव महोबा की राजकुमारी मलहना को पसंद करते थे। प्रेम इतना गहरा था कि राजा ने सेना सहित बारात लेकर महोबा का रुख कर लिया।
लेकिन मलहना के भाई राजकुमार माहिल ने यह प्रस्ताव ठुकरा दिया और युद्ध छेड़ दिया।
युद्ध में परमालदेव विजयी रहे और इसके बाद मलहना से विवाह किया।
प्रतिज्ञा और विराम: राजा परमाल का युद्ध से संन्यास
विवाह के बाद राजा परमाल ने शस्त्र न उठाने की प्रतिज्ञा ले ली। उनका उत्तराधिकारी बना बेटा ब्रह्मकुमार, जबकि राज्य की रक्षा का जिम्मा सौंपा गया दो वीर सेनापतियों—दक्षराज और बखशराज को।
गद्दारी और युद्ध का बीज: माहिल की साजिश
- माहिल, जो पहले पराजित हो चुका था, बदला लेने की नीयत से करिया राय (मांडवगढ़ के राजा) को भड़काता है।
- करिया राय ने महोबा पर हमला कर दिया, और धोखे से दक्षराज और बखशराज को बंदी बना लिया।
- उनके कटे हुए सिर मांडवगढ़ के बरगद पर लटकवा दिए गए और चंदेलों को चुनौती दी गई।
उदल का जन्म और परवरिश: वीरता की शुरुआत
- दक्षराज की पत्नी देवल ने शोक में डूबकर नवजात बेटे उदल को अपनाने से इनकार कर दिया।
- रानी मलहना ने उदल को गोद लिया और महल में पाला, जहाँ वह बाकी राजकुमारों के साथ बड़ा हुआ।
बचपन की शरारत से युद्ध का आह्वान
एक बार उदल माहिल के बाग में मस्ती करने पहुंच गया और खुद को “महोबा का उदल” कहकर घोषित किया।
माहिल ने इस पर गुस्से में परमालदेव को पत्र लिखा और उदल को चुनौती दी—”अगर दम है तो मांडवगढ़ जाकर अपने पिता-चाचा की खोपड़ियां वापस ला।”
सच्चाई का पता और प्रतिशोध की ज्वाला
जब उदल को रानी मलहना से अपने पिता और चाचा की मृत्यु की सच्चाई पता चली, तो उसके भीतर प्रतिशोध की ज्वाला भड़क उठी।
उदल और बाकी राजकुमारों ने साधु वेश में मांडवगढ़ किले में घुसकर किले का मुआयना किया।
योजना और विजय: मांडवगढ़ पर चढ़ाई
- किले में राजकुमारी विजय को उदल पर शक हो गया, लेकिन वह कुछ कर नहीं सकीं।
- नौलखा हार मिलने पर करिया राय को शक हुआ और वह सतर्क हो गया।
- उसी समय महोबा की सेना ने हमला कर दिया।
युद्ध में उदल ने करिया राय का सिर काटकर अपनी मां देवल के चरणों में रखकर प्रतिशोध पूरा किया।
अंतिम युद्ध: पृथ्वीराज चौहान के खिलाफ
1182 ईस्वी में पृथ्वीराज चौहान ने बुंदेलखंड पर चढ़ाई की।
- इस युद्ध में उदल वीरगति को प्राप्त हुए।
- आला ने शौर्य के साथ युद्ध किया और पृथ्वीराज को बुरी तरह घायल किया।
- इसके बाद आला ने युद्ध त्याग दिया और देवी शारदा की भक्ति में लीन हो गए।
आला-उदल की गाथा: इतिहास, संगीत और प्रेरणा
- “आला गायन” आज भी बुंदेलखंड और उत्तर भारत के कई हिस्सों में युद्ध गीत के रूप में गाया जाता है।
- झांसी की रानी, महाराणा प्रताप, और ब्रिटिश सेना तक इस गीत को सुनकर प्रेरित हुए।
- यह न सिर्फ वीरता की मिसाल है, बल्कि भारतीय लोकसंस्कृति की अमूल्य धरोहर भी है।
निष्कर्ष: वीरता जो सदियों तक गूंजती रही
आला और उदल की यह गाथा केवल युद्धों की नहीं, संस्कृति, स्वाभिमान और बलिदान की भी कहानी है।
बुंदेलखंड की माटी से निकले इन वीरों ने इतिहास में अपनी एक अमिट छाप छोड़ी, जो आज भी गांव-गांव के गीतों और लोककथाओं में जिंदा है।
📌 FAQs
Q. आला और उदल कौन थे?
आला और उदल बुंदेलखंड के महोबा राज्य के वीर योद्धा थे जिन्होंने चंदेल वंश की रक्षा के लिए कई युद्ध लड़े।
Q. मांडवगढ़ युद्ध में क्या हुआ था?
इस युद्ध में उदल ने अपने पिता की मौत का बदला करिया राय का सिर काटकर लिया।
Q. क्या पृथ्वीराज चौहान से युद्ध में भी शामिल थे?
हाँ, 1182 ईस्वी में पृथ्वीराज चौहान से युद्ध में उदल वीरगति को प्राप्त हुए।