महाराष्ट्र की राजनीति में एक ऐतिहासिक दिन आया है। बीस सालों की राजनीतिक दूरी के बाद उद्धव ठाकरे और राज ठाकरे एक ही मंच पर नजर आएंगे। यह मंच साझा किया गया है ‘मराठी विजय दिवस’ के तहत आयोजित एक संयुक्त रैली में। शिवसेना (UBT) प्रमुख उद्धव ठाकरे और महाराष्ट्र नवनिर्माण सेना (MNS) प्रमुख राज ठाकरे ने पहली बार इतने वर्षों बाद एकजुट होकर मराठी अस्मिता की आवाज बुलंद की है।
रैली की पृष्ठभूमि: थ्री लैंग्वेज पॉलिसी का विरोध
- महाराष्ट्र सरकार ने अप्रैल 2025 में हिंदी को स्कूलों में अनिवार्य करने का आदेश जारी किया था।
- इसके खिलाफ दोनों ठाकरे बंधुओं ने 5 जुलाई को संयुक्त रैली का ऐलान किया था।
- विवाद गहराने के बाद, 29 जून को सरकार ने यह आदेश रद्द कर दिया।
- इसी फैसले को ‘विजय’ मानते हुए आज की रैली का आयोजन किया गया।
राजनीतिक संकेत: क्या बन रहा है नया गठजोड़?
इस संयुक्त मंच को लेकर राजनीतिक गलियारों में चर्चा तेज है:
- क्या यह नई राजनीतिक ताकत का संकेत है?
- क्या आगामी BMC चुनावों के मद्देनज़र दोनों भाई साथ आ रहे हैं?
- क्या राज ठाकरे की गिरती राजनीतिक पकड़ को फिर से उभारने की कोशिश है?
हालांकि, कांग्रेस इस रैली में शामिल नहीं हो रही है। वहीं बीजेपी ने तंज कसा है कि यह सिर्फ चुनावी मजबूरी का गठबंधन है।
ठाकरे बंधुओं के विचार: हिंदी बनाम मराठी
नेता | विचार |
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उद्धव ठाकरे | हिंदी थोपना गलत है, तीन भाषा नीति का विरोध |
राज ठाकरे | यह नीति मराठी भाषा को कमजोर करने का प्रयास है, निरंकुश शासन की साजिश |
क्या बदलेगा महाराष्ट्र का राजनीतिक परिदृश्य?
- शिवसेना UBT और MNS के नेता मानते हैं कि इस एकता से महाराष्ट्र में एक नई राजनीतिक लहर उठ सकती है।
- संजय राउत ने इसे “राजनीतिक उत्सव” बताया है।
प्रतीकात्मक मंच या रणनीतिक गठबंधन?
भले ही यह रैली एक भाषाई मुद्दे पर आधारित हो, लेकिन इसके राजनीतिक निहितार्थ गहरे हैं। ठाकरे भाइयों की यह साझेदारी एक नई शुरुआत भी हो सकती है, या सिर्फ एक अवसरवादी कदम।
आने वाले हफ्तों में दोनों नेताओं की चालें बताएंगी कि यह एक दिन की रैली थी या राजनीतिक समीकरणों का नया अध्याय।