ट्रेड वॉर की आँच में भारत के लिए संभावनाओं की आहट
By: Vijay Nandan
दिल्ली: डोनाल्ड ट्रम्प की अगुवाई में अमेरिका द्वारा शुरू किया गया नया टैरिफ युद्ध केवल अमेरिका और चीन के बीच की रस्साकशी नहीं है, बल्कि इसका असर पूरी वैश्विक अर्थव्यवस्था पर पड़ेगा। अमेरिका ने हाल ही में चीन से आयात होने वाले इलेक्ट्रिक वाहनों पर 145% तक का टैरिफ लगा दिया है। इस टैरिफ युद्ध से उत्पन्न वैश्विक तनाव अब भारत सहित सभी उभरती अर्थव्यवस्थाओं के लिए एक नई चुनौती और साथ ही एक संभावित अवसर बनकर सामने आ रहा है।
भारत के सामने अवसर भी, चेतावनी भी
इस तरह की भू-आर्थिक खींचतान वैश्विक बाजारों को झटका तो देती है, लेकिन उसमें छिपे अवसरों को तलाशना और उनका फायदा उठाना किसी भी समझदार देश की रणनीति होनी चाहिए। भारत को चाहिए कि वह इस स्थिति पर संतुलित और दूरदर्शी प्रतिक्रिया दे—ना कि जल्दबाज़ी में कोई नासमझी भरा पलटवार करे, जैसा 2019 में स्टील और एल्युमिनियम पर अमेरिकी टैरिफ के जवाब में देखने को मिला था।
भारत को अपनी घरेलू अर्थव्यवस्था को मज़बूत करने, वैश्विक व्यापार साझेदारी को विविध बनाने और खुद को एक स्थिर, भरोसेमंद विकल्प के रूप में प्रस्तुत करने पर जोर देना चाहिए।

चीन-अमेरिका युद्ध: भारत के लिए छिपी संभावनाएं
चीन अमेरिका से सीधी टक्कर ले सकता है क्योंकि उसकी अर्थव्यवस्था भारत से कहीं अधिक मज़बूत और निर्यात-आधारित है। लेकिन अमेरिका और चीन के बीच यह आर-पार की जंग वैश्विक मांग को कमजोर, सप्लाई चेन को बाधित और बहुराष्ट्रीय कंपनियों को अपने निवेश के गंतव्य पर पुनर्विचार करने को विवश कर सकती है। और यही वो पल है, जहां भारत अपनी रणनीति और कौशल से बाज़ी मार सकता है।
‘ईज़ ऑफ डूइंग बिजनेस’ में भारत को चाहिए बड़ी छलांग
भारत के कॉर्पोरेट क्षेत्र में एक हद तक आत्मसंतुष्टि आ गई है। देश में कुछ कैप्टिव बाजारों और बड़े कॉरपोरेट घरानों का दबदबा इनोवेशन और गुणवत्ता में सुधार की रफ्तार को धीमा कर रहा है। इसके अलावा, श्रम कानूनों की जटिलता, ‘इंस्पेक्टर राज’, बुनियादी ढांचे की खामियां और व्यापार नियमों की जटिलता अब भी बाधाएं बनी हुई हैं।
भारत 2020 के ग्लोबल ईज़ ऑफ डूइंग बिजनेस इंडेक्स में 63वें और 2024 के वैश्विक प्रतिस्पर्धात्मकता सूचकांक में 39वें स्थान पर है। यह इंगित करता है कि सुधार की गुंजाइश अब भी बहुत अधिक है। उत्पादन-लिंक्ड प्रोत्साहन (PLI) योजनाएं एक अच्छा प्रयास हैं, लेकिन इनसे आगे बढ़कर भारत को नीतिगत स्पष्टता, कानूनी सादगी और लॉजिस्टिक्स सुधारों की दिशा में काम करना होगा।
महंगाई पर नियंत्रण का अप्रत्याशित मौका
इस टैरिफ युद्ध की एक दिलचस्प परिणति भारत में महंगाई को नियंत्रित करने के अवसर के रूप में भी सामने आ सकती है। अमेरिकी बाजारों में चीनी सामानों पर भारी शुल्क लगने के कारण, अब चीन को अपने उत्पादों के लिए नए बाजार तलाशने होंगे। ऐसे में भारत, जो एक विशाल उपभोक्ता वर्ग वाला देश है, एक प्रमुख लक्ष्य बन सकता है।
यदि चीन भारत में अपने उत्पाद सस्ते दामों पर डंप करता है, तो इसका असर यह हो सकता है कि भारत में उपभोक्ता वस्तुएं सस्ती हो जाएं, जिससे आम जनता को राहत मिले और महंगाई पर कुछ हद तक लगाम लगे। बेशक, इस पर सावधानीपूर्वक नीति नियंत्रण की ज़रूरत होगी, ताकि डंपिंग से घरेलू उद्योगों को नुकसान न हो।
विदेशी निवेश का भारत की ओर झुकाव
चीन में जो अमेरिकी और पश्चिमी कंपनियां लंबे समय से उत्पादन कर रही थीं, वे अब वहां से बाहर निकलने के विकल्प तलाश रही हैं। अमेरिका का उद्देश्य स्पष्ट है—वह अब चीनी सप्लाई चेन पर निर्भर नहीं रहना चाहता। ऐसे में भारत, जिसकी बड़ी युवा वर्कफोर्स, लोकतांत्रिक व्यवस्था और बढ़ती खपत क्षमता एक मजबूत आधार हैं, वैश्विक निवेशकों के लिए स्वाभाविक विकल्प बनता जा रहा है।
हाल के वर्षों में भारत ने UAE और ऑस्ट्रेलिया जैसे देशों के साथ मुक्त व्यापार समझौते किए हैं। लेकिन अब इसे और आगे ले जाते हुए यूरोपीय संघ, अफ्रीका और लैटिन अमेरिका के साथ व्यापारिक रिश्ते गहराने की ज़रूरत है।
‘आत्मनिर्भर भारत’ अब सिर्फ नारा नहीं, रणनीति बनना चाहिए
‘आत्मनिर्भर भारत’ की अवधारणा अब केवल एक राजनीतिक नारा नहीं रहनी चाहिए, बल्कि इसे ठोस नीतियों और ज़मीनी सुधारों के साथ जोड़ा जाना चाहिए। इस चुनौतीपूर्ण वैश्विक परिदृश्य में, भारत को खुद को एक मजबूत, भरोसेमंद और प्रतिस्पर्धी विकल्प के रूप में स्थापित करना होगा।
यह वही वक्त है जब भारत को एक स्पष्ट, दीर्घकालिक आर्थिक रणनीति के साथ आगे बढ़ना चाहिए—जहां हर संकट में एक अवसर हो, और हर अवसर में राष्ट्रहित की स्थिरता हो।
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