पुलवामा के बाद फिर बड़ा खतरा, दिल्ली धमाके से उजागर हुआ आतंक का स्लीपर सेल नेटवर्क !
by: vijay nandan
दिल्ली: राजधानी के ऐतिहासिक लालकिला क्षेत्र में हुई कार ब्लास्ट घटना ने पूरे देश को झकझोर दिया है। भीड़भाड़ वाले इलाके में पुलवामा निवासी तारिक की कार में हुए विस्फोट ने एक बार फिर यह साफ कर दिया कि पाक-प्रायोजित आतंकवाद की साजिशें अब भारत की राजधानी तक अपनी पहुंच बना रही हैं। इस धमाके से दो दिन पहले फरीदाबाद (हरियाणा) और सहारनपुर (उत्तर प्रदेश) में दो डॉक्टर मुजामिल और आदिल के पास से घातक विस्फोटक सामग्री और असॉल्ट राइफलें (AK-47, AK-56) बरामद हुई थीं। ये दोनों डॉक्टर कश्मीर से जुड़े हैं। सुरक्षा एजेंसियों के अनुसार, यह नेटवर्क दिल्ली ब्लास्ट केस से भी जुड़ा है।
8 डॉक्टरों की आतंकी कड़ी: नई साजिश का पर्दाफाश
एनआईए और आईबी की शुरुआती जांच में सामने आया है कि देश के विभिन्न हिस्सों में सक्रिय 8 डॉक्टरों का एक नेटवर्क संदिग्ध गतिविधियों में लिप्त था। ये सभी पाक अधिकृत कश्मीर (PoK) से किसी न किसी रूप में जुड़े हैं। जांच एजेंसियों का मानना है कि यह नेटवर्क “ह्यूमैनिटेरियन कवर” (यानी सामाजिक या मेडिकल सेवा की आड़ में आतंक फैलाने) के मॉडल पर काम कर रहा था। इनमें से कुछ डॉक्टरों का संपर्क ऑनलाइन एन्क्रिप्टेड चैट ऐप्स के ज़रिए हुआ, जिनके सर्वर विदेशों में स्थित हैं। सूत्रों के मुताबिक, ये सभी “लो-की प्रोफाइल” बनाए रखते हुए स्लीपर सेल के रूप में काम कर रहे थे यानी सामान्य नागरिकों की तरह दिखते हैं, लेकिन आदेश मिलते ही सक्रिय हो जाते हैं।

पाक-प्रायोजित आतंकवाद का नया चेहरा
जहां पहले आतंकवादी PTPM (Pak-Trained Pak Militants) या PTIM (Pak-Trained Indian Militants) के रूप में सीधे हमलों में शामिल होते थे, वहीं अब आतंकवाद “स्लीपर सेल्स” और “मॉड्यूल-आधारित नेटवर्क” के फॉर्मेट में बदल गया है। इस संरचना की खासियत यह है कि हर मॉड्यूल को केवल अपना असाइनमेंट पता होता है। वे नहीं जानते हैं कि उनका हैंडलर कौन है और उनके बीच संपर्क भी वन-टाइम कोड्स या एन्क्रिप्टेड चैनलों के जरिए होता है। यह मॉडल पाकिस्तान के आईएसआई (ISI) और लश्कर-ए-तैयबा, जैश-ए-मोहम्मद जैसे संगठनों द्वारा विकसित किया गया है, ताकि हमले के बाद किसी एक व्यक्ति की गिरफ्तारी से पूरे नेटवर्क का खुलासा न हो सके।

‘हॉलीडे’ फिल्म जैसी हकीकत
बॉलीवुड की फिल्म ‘Holiday: A Soldier is Never Off Duty’ (अक्षय कुमार अभिनीत) में जिस स्लीपर सेल नेटवर्क का चित्रण दिखाया गया था, अब वही परिदृश्य असल दुनिया में साकार होता दिख रहा है। डॉक्टरों, इंजीनियरों और तकनीकी पेशेवरों का इस्तेमाल करके पाकिस्तान की खुफिया एजेंसियां भारत में “अदृश्य आतंकवाद” की नई रणनीति पर काम कर रही हैं, जहां हमला करने वाले की पहचान आखिरी पल तक रहस्य बनी रहती है।
एजेंसियों के लिए चुनौती
भारत की जांच एजेंसियों एनआईए, आईबी, एनटीआरओ, रॉ और राज्य स्तरीय इंटेलिजेंस यूनिट्स के सामने अब यह चुनौती है कि तकनीकी सर्विलांस और साइबर इंटेलिजेंस को और मज़बूत किया जाए। सोशल मीडिया व डार्क वेब पर सक्रिय इन नेटवर्क्स की पहचान समय रहते की जाए। विदेशों में सक्रिय भारत-विरोधी संगठनों पर रॉ (RAW) को अधिक प्रो-एक्टिव होना पड़ेगा। हालांकि, लोकतंत्र की उदारता बनाए रखते हुए यह कार्य आसान नहीं होगा। आम नागरिकों की निजता और अधिकारों का सम्मान करते हुए निगरानी को बढ़ाना संतुलन का कठिन कार्य है। सुरक्षा केवल सरकार या एजेंसियों का दायित्व नहीं है। जनता को भी सतर्क रहना होगा।
सतर्कता ही सबसे बड़ा हथियार
जनता को अपने आसपास किसी संदिग्ध गतिविधि, नई पहचान वाले व्यक्ति या असामान्य व्यवहार पर नजर रखें। सार्वजनिक स्थानों पार्किंग एरिया, मॉल, मेट्रो या धार्मिक स्थलों पर किसी असामान्य वाहन या छोड़ा गया बैग दिखे तो तुरंत सूचना दें। सोशल मीडिया पर उत्तेजक या विभाजनकारी सामग्री फैलाने वालों की रिपोर्ट करें। दिल्ली ब्लास्ट ने फिर से यह याद दिलाया है कि आतंकवाद सिर्फ सीमाओं पर नहीं, हमारे बीच भी पनप सकता है। इसलिए अब वक्त है कि देश की सुरक्षा एजेंसियां और नागरिक एक साथ जागरूक व जिम्मेदार भूमिका निभाएं। तकनीक और जागरूकता, यही आधुनिक भारत के लिए आतंक के खिलाफ सबसे मजबूत कवच हैं।
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