by: vijay nandan
Singrauli News: दिल्ली में प्रदेश कांग्रेस ने सिंगरौली जिले के धिरौली कोल ब्लॉक में बड़े पैमाने पर हो रही पेड़ों की कटाई और खनन गतिविधियों को लेकर प्रेस कॉन्फ्रेंस कर गंभीर सवाल उठाए। प्रदेश कांग्रेस का आरोप है कि धिरौली कोल ब्लॉक में खनन और उत्पादन एक बड़े कॉरपोरेट समूह द्वारा किया जा रहा है और इसके बदले जमीन-जंगल देने पर सरकार ने महज 204 करोड़ रुपये का मुआवजा तय किया है, जबकि भू-वैज्ञानिक सर्वे के अनुसार यहां मौजूद कोयले की अनुमानित कीमत 11 लाख करोड़ रुपये से अधिक बताई जा रही है।

प्रदेश कांग्रेस का कहना है कि यदि कोयले की औसत कीमत 2,000 रुपये प्रति टन भी मानी जाए, तो 558 मिलियन टन कोयले का मूल्य ही लाखों करोड़ रुपये बैठता है। ऐसे में इतने बड़े प्राकृतिक संसाधन को बेहद कम कीमत पर सौंपना न सिर्फ प्रदेश बल्कि देश की अर्थव्यवस्था के साथ भी अन्याय है।
Singrauli News: वन भूमि, खनन और दोहरी नीति के आरोप
धिरौली और उससे लगे कोल ब्लॉकों में खनन को अलग-अलग तरीके से मंजूरी दी गई है। एक तरफ वन क्षेत्र से जुड़े ब्लॉक में भूमिगत खनन की अनुमति दी गई, वहीं दूसरी ओर धिरौली में ओपन कास्ट माइनिंग को हरी झंडी दी गई। इससे हजारों हेक्टेयर वन भूमि प्रभावित हो रही है और लाखों पेड़ काटे जा रहे हैं।
प्रदेश कांग्रेस के अनुसार, खदान का कुल क्षेत्रफल 2672 हेक्टेयर है, जिसमें निजी, सरकारी और वन भूमि शामिल है। आरोप है कि लगभग 6 लाख पेड़ चरणबद्ध तरीके से काटे जा रहे हैं और उनके बदले दूसरे जिलों में पौधारोपण की योजना बनाई जा रही है, जबकि जिस क्षेत्र के जंगल नष्ट हो रहे हैं, वहीं पर्यावरणीय संतुलन बिगड़ रहा है।

Singrauli News: आदिवासी जीवन पर असर और विस्थापन का संकट
प्रदेश कांग्रेस ने कहा कि इस पूरे मामले में सबसे ज्यादा असर आदिवासी समुदाय और जंगल पर निर्भर लोगों पर पड़ा है। आरोप है कि वर्षों से रह रहे ग्रामीणों को बिना समुचित पुनर्वास, मुआवजा और वैकल्पिक व्यवस्था के बेदखल किया जा रहा है। विरोध करने वालों पर मुकदमे दर्ज किए जा रहे हैं और भारी पुलिस बल की तैनाती के बीच पेड़ों की कटाई हो रही है।
प्रदेश कांग्रेस का दावा है कि खनन क्षेत्र के आसपास के गांवों में हालात इतने खराब हैं कि रोजमर्रा की जिंदगी मुश्किल हो गई है। सड़कों पर भारी ट्रकों की आवाजाही से दुर्घटनाएं बढ़ रही हैं, मेडिकल इमरजेंसी में समय पर अस्पताल पहुंचना मुश्किल हो गया है और प्रदूषण का स्तर लगातार बढ़ रहा है।
Singrauli News: ज्वालामुखी के ढेर पर बसा सिंगरौली
सिंगरौली को अक्सर “ऊर्जा राजधानी” कहा जाता है, लेकिन यह शहर एक तरह से कोयले और प्रदूषण के ज्वालामुखी पर बसा हुआ है। ऐतिहासिक रूप से सिंगरौली एक आदिवासी बहुल, घने जंगलों और नदियों से घिरा शांत क्षेत्र था। माना जाता है कि सिंगरौली क्षेत्र का विकास औद्योगिक रूप से 1960–70 के दशक में कोयला खदानों और बिजली परियोजनाओं के आने के बाद तेज हुआ।
आज स्थिति यह है कि कोयला खदानों, थर्मल पावर प्लांट्स और औद्योगिक गतिविधियों के कारण सिंगरौली देश के सबसे प्रदूषित इलाकों में गिना जाता है। हवा में कोयले की धूल, पानी में राख और जमीन पर लगातार बढ़ता औद्योगिक दबाव यहां के लोगों के स्वास्थ्य और जीवन पर भारी पड़ रहा है। स्थानीय लोगों का कहना है कि भोजन, कपड़े और घर तक कोयले की परत से अछूते नहीं हैं।

नया सिंगरौली बसाने की योजना
लगातार बढ़ते प्रदूषण और विस्थापन के कारण सरकार की ओर से समय-समय पर “नया सिंगरौली” बसाने की योजनाओं की बात सामने आती रही है। योजना यह है कि खनन और औद्योगिक क्षेत्रों से दूर, बेहतर बुनियादी सुविधाओं के साथ एक नया शहर विकसित किया जाए। हालांकि, जमीनी स्तर पर इन योजनाओं की रफ्तार धीमी बताई जाती है और प्रभावित परिवारों को अब तक स्थायी समाधान नहीं मिल पाया है। प्रदेश कांग्रेस का कहना है कि जब तक पर्यावरण, आदिवासी अधिकार और स्थानीय लोगों के जीवन को केंद्र में रखकर नीति नहीं बनेगी, तब तक सिंगरौली का संकट और गहराता जाएगा।
अडाणी पावर कंपनी का पक्ष
वहीं, खदान संचालन से जुड़ी कंपनी का कहना है कि धिरौली खदान से ऊर्जा आत्मनिर्भरता को बढ़ावा मिलेगा, बिजली उत्पादन की लागत कम होगी और युवाओं के लिए रोजगार के नए अवसर पैदा होंगे। कंपनी के अनुसार, यह खदान सालाना 6.5 मिलियन टन कोयला उत्पादन करेगी और आने वाले दशकों तक बिजलीघरों को ईंधन उपलब्ध कराएगी।





