भारत में अगर आप सार्वजनिक वितरण प्रणाली (PDS) के तहत 2 रुपये प्रति किलो गेहूं और 3 रुपये किलो चावल खरीदते हैं, तो क्या आपने कभी सोचा है कि असल में सरकार को इसकी कितनी कीमत चुकानी पड़ती है? इस रिपोर्ट में हम आपको समझाते हैं कि सरकार कैसे करोड़ों लोगों तक सस्ता अनाज पहुंचाती है और इसके पीछे क्या आर्थिक गणित छुपा है।
कितना खर्च करती है सरकार?
सरकार जिस चावल को आपको 3 रुपये किलो में देती है, उसकी असल लागत 42.94 रुपये प्रति किलो तक पहुंच जाती है। इसी तरह, 2 रुपये किलो मिलने वाला गेहूं सरकार को 29.94 रुपये प्रति किलो की लागत से उपलब्ध होता है। बाकी की राशि सरकार अपनी जेब से भरती है, जिसे फूड सब्सिडी कहा जाता है।
किसानों से कितने में खरीदा जाता है अनाज?
- धान की खरीद:
2020-21 में सरकार ने किसानों से सामान्य धान 1868 रुपये प्रति क्विंटल के न्यूनतम समर्थन मूल्य (MSP) पर खरीदा। औसतन 60 किलो चावल एक क्विंटल धान से निकलता है, यानी 31 रुपये किलो की दर से चावल की खरीद होती है। - गेहूं की खरीद:
2021-22 में गेहूं की खरीद MSP पर 1975 रुपये प्रति क्विंटल की दर से हुई, जिससे उसकी औसत लागत बढ़ जाती है।
इन आंकड़ों में भंडारण, परिवहन, वितरण और अन्य खर्च भी जुड़ते हैं, जिससे अंतिम लागत और बढ़ जाती है।
2-3 रुपये में अनाज कैसे मिल जाता है?
खाद्य सुरक्षा विशेषज्ञों के अनुसार, सरकार हर साल लगभग 2 लाख करोड़ रुपये से अधिक की फूड सब्सिडी देती है। इसके जरिए किसानों से अनाज खरीदा जाता है और 80 करोड़ गरीब लोगों को सस्ती दरों पर उपलब्ध कराया जाता है। विशेषज्ञ संदीप दास के मुताबिक, यदि यह सब्सिडी न दी जाए तो गरीबों तक अनाज पहुंचाना लगभग असंभव हो जाएगा।
साथ ही, यह स्कीम किसानों को एमएसपी की गारंटी भी देती है, जिससे उनकी आय में स्थिरता आती है।
कितना है फूड सब्सिडी का बजट?
वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण ने वित्त वर्ष 2021-22 के लिए 2,42,836 करोड़ रुपये की फूड सब्सिडी का प्रावधान किया था। कोरोना काल के दौरान यह सब्सिडी और बढ़ गई थी, जब फ्री राशन वितरण की योजना चलाई गई थी। 2020-21 में यह आंकड़ा बढ़कर 4,22,618 करोड़ रुपये तक पहुंच गया था।
गरीबों को राशन कैसे मिलता है?
2013 में लागू हुए राष्ट्रीय खाद्य सुरक्षा अधिनियम (NFSA) के तहत जरूरतमंदों को रियायती दरों पर अनाज दिया जाता है। शुरुआत में यह स्कीम तीन वर्षों के लिए थी, लेकिन समय-समय पर समीक्षा के बाद इसे लगातार बढ़ाया जा रहा है। इस योजना का लाभ केवल राशन कार्ड धारकों को ही मिलता है।
क्या सस्ते अनाज की दरें बढ़ेंगी?
फिलहाल सरकार का 2 रुपये किलो गेहूं और 3 रुपये किलो चावल की दरें बढ़ाने का कोई इरादा नहीं है। हालांकि, हर पांच साल में केंद्रीय निर्गम मूल्य (CIP) की समीक्षा का प्रावधान है, लेकिन अब तक इसमें कोई बदलाव नहीं किया गया है। हालिया आर्थिक सर्वेक्षण में खाद्य सब्सिडी के बोझ को देखते हुए CIP में संशोधन की सलाह जरूर दी गई थी।
निष्कर्ष: गरीबों के लिए राहत, किसानों के लिए सहारा
सरकार की इस योजना से दोहरे फायदे मिलते हैं। एक ओर किसानों को उनकी उपज का उचित मूल्य मिलता है, वहीं दूसरी ओर देश के करोड़ों गरीब लोगों को सस्ता अनाज मिलता है। हालांकि, यह योजना सरकार पर आर्थिक बोझ जरूर डालती है, लेकिन देश की खाद्य सुरक्षा और सामाजिक संतुलन बनाए रखने में इसकी अहम भूमिका है।
संबंधित सवाल जो लोग पूछते हैं (FAQs)
1. क्या पीडीएस में मिलने वाले गेहूं-चावल की दरें आगे बढ़ सकती हैं?
फिलहाल ऐसा कोई निर्णय नहीं लिया गया है, लेकिन भविष्य में समीक्षा संभव है।
2. क्या यह योजना केवल गरीबी रेखा से नीचे (BPL) वाले लोगों के लिए है?
जी हां, मुख्य रूप से राशन कार्ड धारकों को ही इसका लाभ मिलता है।
3. सरकार हर साल अनाज पर कितनी सब्सिडी देती है?
2021-22 में फूड सब्सिडी का बजट करीब 2.43 लाख करोड़ रुपये था।
4. सस्ते अनाज की योजना क्यों जरूरी है?
गरीबों को पौष्टिक भोजन सुनिश्चित करने और किसानों को उचित दाम देने के लिए।
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