रिपोर्टर: संदीप रणपिसे, मुंबई
मुंबई लोकल ट्रेन हादसे के 2006 के सिलसिलेवार बम धमाकों मामले में बॉम्बे हाईकोर्ट द्वारा 12 आरोपियों को बरी किए जाने पर महाराष्ट्र सरकार ने फैसला सुप्रीम कोर्ट में चुनौती दी थी। लेकिन आज सुप्रीम कोर्ट ने तुरंत गिरफ्तारी या रिहाई रोकने से साफ इनकार कर दिया है। अदालत ने बताया कि ऐसे मामलों में रोक “बहुत ही दुर्लभ” स्थिति में ही दी जाती है। साथ ही, सुप्रीम कोर्ट ने यह भी कहा कि फिलहाल आठ आरोपी पहले ही बरी होकर रिहा किए जा चुके हैं और उन्हें दुबारा जेल भेजने की किसी बात पर विचार नहीं किया जाएगा। यह आदेश चीफ़ जस्टिस बी.आर. गवई और अन्य जस्टिसों की पीठ ने सुनाया। यह कदम न्याय प्रणाली के बीच संतुलन बनाए रखने का स्पष्ट संकेत है कि मुद्दों की जल्दबाजी में सुनवाई विवेकपूर्ण नहीं हो सकती।
बॉम्बे हाईकोर्ट की 11 जुलाई, 2025 को सुनाई गई उसी विशेष पीठ—जस्टिस अनिल किलोर और श्याम चांदक—ने 2006 के धमाकों के आरोपियों को बरी किया था। हाईकोर्ट ने जांच में गवाहों की बयानबाजी, पहचान-पैटर्न की प्रक्रियाओं और गिरफ्तारी के बाद पूछताछ में अभ甸्धतियों के कारण अभियोजन पक्ष द्वारा आरोप “संदेह से परे” साबित न होने की वजह से फैसले को पलट दिया था। इस निर्णय से पांच आरोपियों की फांसी और सात को उम्रकैद की सजा रद्द हो गई थी।
सुप्रीम कोर्ट का दृष्टिकोण:
- रिहाई रोकने से इनकार: अदालत का कहना है कि रिहाई को रोकने के लिए आवश्यक शर्तें पूर्ण नहीं हैं, इसलिए स्वतः अभियौग रोकने का कोई औचित्य नहीं।
- पहले जारी आदेशों की रक्षा: आठ बचे आरोपियों को अब दोबारा जेल भेजना संभव नहीं—उनकी रिहाई वैध और स्थायी मानी जाएगी।
- शासन को चुनौती: राज्य सरकार को इस फैसले को सुप्रीम कोर्ट में चुनौती देने की अनुमति दी गई है, और अब आगे का कानूनी रास्ता सीधा सुप्रीम कोर्ट ही होगा।
7/11 धमाकों की पृष्ठभूमि:
11 जुलाई 2006 को शाम 6.24 से 6.42 बजे के बीच मुंबई की पश्चिम रेलवे की सात लोकल ट्रेनें सिलसिलेवार बम धमाकों की चपेट में आई थीं। इस हमले में 189 लोग मारे गए और करीब 800 लोग घायल हुए थे—जिसने मुंबई की जीवन रेखा कही जाने वाली लोकल ट्रेनों को हिलाकर रख दिया था। धमाकों में RDX, टाइमर और आत्मघाती जूट बैग शामिल थे। शुरूआती जांच के बाद आरोपित पांचों को फांसी और सात को उम्रकैद की सजा दी गई थी। अब हाईकोर्ट का फैसला पूरी स्वतंत्र जांच पर सवाल खड़ा करता है।
आगे की संभावनाएँ:
- अब राज्य सरकार द्वारा दी गई याचिका की समीक्षा सुप्रीम कोर्ट करेगा।
- यदि राज्य का पक्ष ठोस ठहरा, तो उच्च न्यायपालिका रिहाई आदेश को पलट सकती है—लेकिन फिलहाल ऐसा कोई संकेत नहीं है।
- सुप्रीम कोर्ट ने स्पष्ट किया है कि इस मामले में किसी जल्दबाजी की जरूरत नहीं है, और न्यायिक विवेक के अनुसार कार्यवाही होगी।